जीवन में सुख-दुख आते-जाते रहते हैं। कुछ लोगों के जीवन में दुख ज्यादा समय तक रहता है, ऐसी स्थिति में निराशा से बचना चाहिए। वर्ना जीवन और बुरा लगने लगता है। सुख-दुख के संबंध में महाराष्ट्र के संत एकनाथ से जुड़ा एक किस्सा बहुत प्रसिद्ध है। एक व्यक्ति ने संत एकनाथ जी से पूछा था कि आपके जीवन में इतने दुख हैं, फिर भी आप प्रसन्न कैसे रहते हैं? पढ़िए पूरा किस्सा…
जब संत एकनाथ बहुत छोटे थे, तब ही उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था। उनके जन्म के कुछ समय बाद ही उनके पिता की मृत्यु होने से लोग इन्हें अशुभ मानने लगे थे।
एक व्यक्ति ने एकनाथ जी से पूछा प्रसन्नता का रहस्य
संत एकनाथ जैसे-जैसे बड़े हो रहे थे, अन्य लोगों की अपेक्षा उनकी समझ काफी विकसित हो रही थी, मृत्यु के संबंध में उनकी समझ एकदम स्पष्ट थी। संत एकनाथ के उपदेश सुनने के लिए काफी लोग उनके पास आते थे।
एक दिन एकनाथ जी का एक व्यक्ति उनके पास पहुंचा। वह एकनाथ जी के बारे में काफी कुछ जानता था। उस व्यक्ति ने संत एकनाथ से पूछा कि जन्म के बाद से ही आपके जीवन में बड़ी-बड़ी समस्याएं आती रही हैं, आपके जीवन में एक समस्या खत्म होती है तो तुरंत ही दूसरी समस्या आ जाती है। इतने बुरे हालातों में भी आप खुश कैसे रहते हैं? कृपया हमें भी कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे हम भी बुरे समय में सकारात्मक और प्रसन्न रह सके।
एकनाथ जी ने उस व्यक्ति की सारी बातें बहुत ध्यान से सुनी और जब वह व्यक्ति चुप हुआ तो उन्होंने कहा कि तुम्हारा प्रश्न तो सही है, लेकिन इस प्रश्न के उत्तर से ज्यादा जरूरी बात ये है कि आज से सातवें दिन तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।
मृत्यु की बात सुनते ही बदल गया उस व्यक्ति का व्यवहार
मृत्यु की बात सुनते ही वह व्यक्ति हैरान हो गया। उसे ऐसी बात की उम्मीद ही नहीं थी। एकनाथ जी जैसे बड़े संत ने ये बात कही थी तो शंका की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। वह व्यक्ति अपना प्रश्न भूल गया और चुपचाप वहां से अपने घर लौट आया।
घर पहुंचकर कुछ देर वह सोच-विचार में डूबा रहा। काफी विचार के बाद अगले दिन से उसका व्यवहार पूरी तरह बदल गया था। अब वह व्यक्ति घर-परिवार के साथ ही बाहरी लोगों के साथ ही बहुत प्रेम से मिलने लगा था। सभी को सम्मान देता और सभी की मदद के लिए तैयार रहता।
सात दिनों में उसके घर के और आसपास के लोग उसके बदले हुए व्यवहार की वजह से प्रसन्न थे। जब सातवें दिन वह व्यक्ति अच्छी तैयार हुआ और शांत रहकर आंगन में लेट गया। वह सोच रहा था कि आज सातवां दिन है और एकनाथ जी की बात के अनुसार आज ही मेरी मृत्यु होनी है। पता नहीं कब और कैसे मेरी मृत्यु हो जाएगी।
सातवें दिन एकनाथ पहुंचे उस व्यक्ति के घर
वह व्यक्ति आंगन में लेटा हुआ था और उसी समय संत एकनाथ उसके पास पहुंच गए। एकनाथ जी को देखकर वह व्यक्ति उठ खड़ा हुआ और प्रणाम करके उन्हें ऊंचे आसन पर बैठाया।
एकनाथ जी ने उससे पूछा कि तुम्हारे ये सात दिन कैसे रहे?
व्यक्ति ने उत्तर दिया कि ये सात दिन बहुत अच्छे रहे, ये मेरे जीवन का सबसे अच्छे समय रहा। मैंने सभी के साथ प्रेम से रहना शुरू कर दिया तो सभी मेरे साथ भी प्रेम से रहने लगे। मैंने सभी को सम्मान दिया तो बदले में मुझे भी सभी से सम्मान मिला। किसी से कोई विवाद नहीं किया, गुस्सा नहीं किया। इन दिनों में मैंने धन कमाने के लिए लालच भी नहीं किया, किसी से झूठ नहीं बोला। मेरा मन एकदम शांत था और मैं सोच रहा था कि मरना ही है तो बिना वजह से किसी के साथ रिश्ते क्यों खराब करूं।
एकनाथ जी बोले कि भाई तुमने मुझसे मेरी प्रसन्नता की वजह पूछी थी, इसलिए मैंने तुमसे ये कहा था कि सात दिन बाद तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। जब तुमने ये बात मान ली की सात दिन बाद मैं मर जाऊंगा तो तुम प्रसन्न रहने लगे। मेरी प्रसन्नता का भी यही रहस्य है। मैं ये जानता हूं कि मृत्यु अटल है। एक न एक दिन आएगी ही। तुम भी अगर ये मान लो कि आने वाले 50-60 साल ही सही, लेकिन मरना तो है ही, तो तुम हमेशा प्रसन्न रहोगे और सभी के साथ प्रेम से मिलोगे। तुम्हारा कोई दुश्मन नहीं होगा और तुम बुराइयों से दूर रहोगे। ये बातें हमेशा ध्यान रखोगे तो तुम भी मेरी ही तरह मुश्किल समय में भी प्रसन्न रहोगे।