हिमशिखर धर्म डेस्क
चन्द्रायण व्रत प्राचीन काल से ही चली आ रही है, हालांकि बेहद कम लोगों को इसके बारे में जानकारी है। पूर्णिमा चंद्रमा से जुड़ा होने के कारण ही इसे चन्द्रायण व्रत कहा जाता है। यह व्रत अत्यंत कठिन और तपस्या का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि यह व्रत पापों के नाश में समर्थ है। जब किसी पाप को कोई प्रायश्चित नहीं मिलता, तब चांद्रायण व्रत ही आपको उन पापों से मुक्ति दिला सकता है। इस व्रत का पालन चंद्रमा की कलाओं के अनुसार किया जाता है और यह व्रत एक महीने तक चलता है।
कथा के अनुसार, एक बार एक राजा ने अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए इस व्रत का पालन किया था। राजा ने अपने राज्य में बहुत अन्याय किया था और जब उसे अपनी गलतियों का एहसास हुआ, तो उसने ऋषियों से मार्गदर्शन मांगा। ऋषियों ने उसे चांद्रायण व्रत करने की सलाह दी। इस व्रत के पालन से राजा ने अपने पापों का प्रायश्चित किया और अपने राज्य में शांति स्थापित किया।
यह व्रत पूर्णमासी से पूर्णमासी तक किसी भी मौसम में कर सकते है। जो लोग शारीरिक रूप से बहुत मेहनत करते हैं या जो कमजोर या बीमार है, उन्हें यह व्रत करने से परहेज करना चाहिए। इस व्रत में व्यक्ति अपने खाने को 16 हिस्सों में विभाजित करते हैं।
चन्द्रायण व्रत को पूर्णमासी से आरम्भ करते है और एक माह बाद पूर्णमासी को ही समाप्त करतें है। इस व्रत में व्यक्ति अपनें खानें को १6 हिस्सों में विभाजित करतें है।
प्रथम दिन यानि पूर्णमासी को चन्द्रमा पूरा 16 कलाओं वाला होता है अतः भोजन भी पूरा लेते है। अगले दिन से भोजन का 16वां भाग प्रत्येक दिन कम करते जाते है और अमावस्या को चन्द्रमा शून्य (०) कलाओं वाला होता है अतः भोजन नही लेते है यानि पूर्ण व्रत करतें हैं।
अमावस्या के अगले दिन से पुनः भोजन की मात्रा में 16 वें भाग की बढ़ोतरी करते जाते है और पुनः पूर्णमासी को चन्द्रमा पूरा 16 कलाओं वाला होता है अतः भोजन भी पूरा लेते है। व्रत के साथ साथ गायत्री का अनुष्ठान भी चलता रहता है।
चंद्रायण व्रत को शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ किया जाता है। पहले दिन एक कौर भोजन लिया जाता है, द्वितीया को दो ग्रास, तृतीया को तीन ग्रास और इसी तरह पूर्णिमा को पंद्रह कौर भोजन ग्रहण किया जाता है। इसके बाद कृष्ण पक्ष की तिथि के घटते क्रम में भोजन के कौर घटने लगते हैं। कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी को एक ग्रास ग्रहण किया जाता है। अमावस्या को निराहार उपवास रहकर व्रत पूर्ण किया जाता है। इसके साथ ही व्रत के कई अन्य नियम भी हैं।