वैदिक ज्योतिष शास्त्र में सूर्य एक महत्वपूर्ण ग्रह होता है और सभी नौ ग्रहों में इन्हें राजा का दर्जा हासिल है। हर एक व्यक्ति की कुंडली में सूर्य ग्रह का प्रभाव बहुत ही प्रभावशाली माना जाता है। ज्योतिष में सूर्य ग्रह को ऊर्जा, आत्मा और पिता कारक माना जाता है। कुंडली में सूर्य की स्थिति शुभ होने पर जातक के जीवन में सुख-समृद्धि आती है। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अच्छे भाव और मजबूत स्थिति में हैं तो वह व्यक्ति अपने जीवन में अच्छे और ऊंचे मुकाम को हासिल करता है। ऐसे जातकों को हर एक क्षेत्र में कामयाबी, मान-सम्मान और यश की प्राप्ति होती है।
हिमशिखर धर्म डेस्क
सूर्य अपने मंडल का प्रमुख ग्रह है एवं आकार प्रकार से सबसे बड़ा। सूर्य जब कुंडली के कोई पद भाव जैसे पंचम ,नवम, दशम या एकादश भाव का स्वामी के साथ मिलकर लग्न के कोई अंग को प्रभावित करें तो मनुष्य का आजीविका का आकार प्रकार बहुत बड़ा होता है विदेशों में या कई राज्य में फैला होता है। इस तरह का ग्रह योग मंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपालों की कुंडली में देखने को मिलता है। सूर्य और लग्न मध्य वाली होने पर केंद्र और राज्य सरकार के प्रशासनिक पद प्राप्त होता है। हीन बली होने पर राज्य कर्मचारी आदि का पद प्राप्त होता है। सूर्य खगोल विज्ञान भी है सूर्य जब दशम भाव का स्वामी हो तो खगोल (आकाश) विज्ञान का पक्का कारक बन जाता है। एक अन्य आकाश तत्व वाले ग्रह बृहस्पति तथा तृतीय भाव का स्वामी (अपने हाथों से किए गए कर्मों का) के साथ सम्मिलित रूप से यदि लग्न को प्रभावित करें तो हवाई जहाज चलाने का अवसर मिलता है। ऐसे व्यक्ति की आजीविका एरोप्लेन पायलट के रूप में होता है।
सूर्य का अस्तित्व वहां होने वाला निरंतर परमाणु विस्फोट से है इसलिए सूर्य परमाणु ऊर्जा का भी कारक है। सूर्य जब बलवान हो तथा अन्य अग्नि तत्व वाला ग्रह मंगल केतु तथा आकाश तत्व एवं भौतिक विज्ञान का कारक बृहस्पति के साथ मिलकर लग्न को प्रभावित करें तो परमाणु वैज्ञानिक या अंतरिक्ष विज्ञानिक या मिसाइल वैज्ञानिक बनने का अवसर प्राप्त होता है। इसी योग में सूर्य मंगल गुरु मध्य बली हो तथा शनि पंचमेश या नवमेश होकर तृतीयश के साथ मिलकर लग्न के अंगों को प्रभावित करें तो वायुयान अभियंता बनने का अवसर मिलता है। सूर्य समस्त प्रकार का ज्वलनशील गैस जैसे सी.एन.जी, एल. एन.जी, एल.पी.जी, ईथेन, मीथेन, डीए या अन्य ज्वलनशील गैस का कारक है। मंगल एवं केतु भी इन पदार्थों का सहकारक है। लग्न यदि सूर्य या मंगल का हो और सूर्या मंगल सप्तम या दशम भाव में होकर केतु के साथ मिलकर लग्न के अंगों को प्रभावित करें तो मनुष्य को किसी ज्वलनशील पदार्थ या गैस का करोबार होता है।
सूर्य विद्युत भी है और प्रकाश भी, चंद्र भी प्रकाश है, केतु मृदु उजाला, यह तीनों जब एक अन्य आग्नेय ग्रह मंगल के साथ पंचमेश और नवमेश होकर आकाश तत्व के ग्रह बृहस्पति के साथ मिलकर लग्न के अंगों को प्रभावित करें तो विद्युत अभियंता बनने का अवसर प्राप्त होता है। यही ग्रह योग यदि हीन बली हो तो विद्युत संरचना या उपक्रमों का मिस्त्री आदि बनने का अवसर प्राप्त होता है। सूर्य ब्रह्मांड का राजा होने से लोक हितकारी गुणों से भी परिपूर्ण है। लोक हितकारी अर्थात औषधीय या वैद्यक गुण। बलवान पंचमेश और नवमेश के साथ लग्न का संबंध हो तथा अन्य औषधीय ग्रह विशेषकर शनि और राहु तथा षष्ठेश (रोग एवं रोगी) अष्टमेश (औषधि एवं चिकित्सकीय उपक्रम) द्वादशेश (हस्पताल या चिकित्सालय) एवं तृतीयेश (हाथों से किए गए कर्म) के साथ मिलकर लग्न को प्रभावित करें तो पढ़ लिखकर चिकित्सक बनने का अवसर प्राप्त होता है। उक्त योग यदि निर्बल हो तो नर्स, ओटी असिस्टेंट या कॉंपाउंडर बनने का अवसर मिलता है।
सूर्य धार्मिक व सात्विक गुणों से भी परिपूर्ण है। सूर्य जब एक अन्य सात्विक ग्रह बृहस्पति व नवमेश (धर्म) द्वादशेश (नवम से चतुर्थ स्थान में होने के कारण ईश्वर का निवास स्थान जैसे मठ और मंदिर) के साथ मिलकर लग्न के अंगों को प्रभावित करें तो रोजगार का स्रोत पूजा मंत्र पाठ या मठ के व्यवस्थापक या कर्मचारी के रूप में होता है। सूर्य राजा है इसलिए उन्हें वाद विवाद पर फैसला सुनाने का अधिकार भी है। षष्ठ भाव विवाद का होता है अष्टम भाव व्यवहार विधि एवं कानून का है, द्वादश भाव न्यायालय का। बृहस्पति और शुक्र व्यवहार विधि एवं नियम कानून का ग्रह है, तृतीय भाव लेखन शक्ति का है, द्वितीय भाव वाक्य कौशल का, यदि उपरोक्त सब भावेश सूर्य के साथ मिलकर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लग्न के अंगों को प्रभावित करें तथा कुंडली में नवम पंचम का योग नवम दशम का योग भी स्थापित हो तो न्यायाधीश बनने का योग होता है। बलवान सूर्य जब अष्टमेश होकर तृतीय एवं तृतीय कारक मंगल तथा द्वादशेश (सरकार का रक्षा बल) के साथ मिलकर लग्न के अंगों को प्रभावित करें तो आजीविका सुरक्षा कर्मी के रूप में होता है। इस योग में यदि पंचमेश एवं नवमेश का संबंध लग्न के साथ स्थापित हो जाए तो पुलिस या आर्मी ऑफिसर के रूप में आजीविका होता है। सूर्य ठोस इमारती लकड़ी का भी कारक है शुक्र कलाकृति का यदि सूर्य चतुर्थ भाव का स्वामी होकर या चतुर्थ भाव के स्वामी एवं शुक्र के साथ मिलकर लग्न के अंगों को प्रभावित करें तो काम या अजीबिका फर्नीचर बनाने का या बेचने से होता है।
विस्तार भय से लेख को यहीं समाप्त करते हैं अगला लेख में कोई और नए विषय को लेकर उपस्थित होंगे तब तक के लिए नमस्कार।