सुप्रभातम्: आज जगत के अराध्य सूर्य देव की उपासना का दिन

सूर्य देव को वेदों में जगत की आत्मा कहा गया है क्योंकि इनके बिना इस संसार पर जीवन संभव ही नहीं है। सूर्य की इतनी महत्ता के कारण ही सूर्य की आराधना पूरा संसार करता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र में सूर्य एक महत्वपूर्ण ग्रह है और सभी नौ ग्रहों में इन्हें राजा का दर्जा हासिल है। हर एक व्यक्ति की कुंडली में सूर्य ग्रह का प्रभाव बहुत ही प्रभावशाली माना जाता है। ज्योतिष में सूर्य ग्रह को ऊर्जा, आत्मा और पिता कारक माना जाता है। कुंडली में सूर्य की स्थिति शुभ होने पर जातक के जीवन में सुख-समृद्धि आती है। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अच्छे भाव और मजबूत स्थिति में हैं तो वह व्यक्ति अपने जीवन में अच्छे और ऊंचे मुकाम को हासिल करता है। ऐसे जातकों को हर एक क्षेत्र में कामयाबी, मान-सम्मान और यश की प्राप्ति होती है।

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  • जहां सूर्य देव ऊर्जा का एक परम स्रोत हैं वहीं उनके सात घोड़े सप्ताह के सात दिन और उनके रथ का पहिया समय का
  • चूंकि सूर्य देव प्रत्यक्ष देव हैं, तो लोग न केवल उन्हें जल अर्पित करते हैं बल्कि …

हिमशिखर धर्म डेस्क

सूर्य देव की उपासना के लिए कई महापर्व सनातन धर्म में मनाए जाते हैं लेकिन इन सबमें रथ सप्तमी का विशेष स्थान है। इस साल रथ सप्तमी आज 16 फरवरी, शुक्रवार को है। इस दिन सूर्योपासना करने से सूर्यदेव प्रसन्न होकर अपने भक्तों को समृद्धि, ऐश्वर्य और आरोग्य का आशीर्वाद देते हैं। सूर्य देव से जुड़ी सभी चीजें एक प्रतीक के रूप में हैं, चाहे वो उनका रथ हो या उनके घोड़े। जहां सूर्य देव ऊर्जा का एक परम स्रोत हैं वहीं उनके सात घोड़े सप्ताह के सात दिन और उनके रथ का पहिया समय। रथ के पहिये में लगी 12 तीलियाँ 12 महीने दर्शाती हैं। सूर्य देव के रथ सहित उनकी उपस्थिति मनुष्य के जीवन से लेकर उनके जीवनकाल तक से जुड़ी हुई हैं।

सप्तमी का धार्मिक महत्व

सप्तमी तिथि भगवान सूर्य को समर्पित है। माघ माह की शुक्ल पक्ष सप्तमी को रथ सप्तमी अथवा माघ सप्तमी के रूप में जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, भगवान सूर्य देव ने रथ सप्तमी के दिन से समस्त संसार को प्रकाशित करना प्रारम्भ किया था, जिसे भगवान सूर्य का जन्म दिवस माना जाता था। अतः रथ सप्तमी को सूर्य जयन्ती के रूप में भी जाना जाता है।

रथ सप्तमी अत्यधिक शुभः दिन है तथा इस पावन अवसर को सूर्यग्रहण के समान ही दान-पुण्य आदि गतिविधियों के लिये अत्यन्त शुभः माना जाता है। इस दिन सूर्यदेव की पूजा करने तथा व्रत का पालन करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति प्राप्त होती है। मान्यताओं के अनुसार, रथ सप्तमी के अवसर पर सूर्यदेव की पूजा करने से ज्ञात, अज्ञात, शाब्दिक, शारीरिक, मानसिक, वर्तमान जन्म तथा पूर्व जन्मों में किये हुये, यह सात प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं।

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रथ सप्तमी पर अरुणोदय काल में स्नान करना चाहिये। रथ सप्तमी स्नान महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है तथा इसे मात्र अरुणोदय काल में ही करने का सुझाव दिया गया है। अरुणोदय की अवधि सूर्योदय से पूर्व चार घटी के लिये होती है। यदि हम एक घटी की अवधि को 24 मिनट मानते हैं, तो भारतीय स्थानों के लिये अरुणोदय अवधि लगभग डेढ़ घण्टे की होती है। सूर्योदय से पूर्व अरुणोदय काल में स्नान करने से मनुष्य स्वस्थ एवं सभी प्रकार के रोगों से मुक्त रहता है। इसी मान्यता के कारण, रथ सप्तमी को आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। इस अवसर पर घर पर स्नान करने की अपेक्षा नदी, नहर आदि जलस्रोतों में स्नान करने को अधिक प्राथमिकता दी जाती है।

 सप्तमी तिथि भगवान सूर्य को अतिप्रिय है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान सूर्य की पूजा करने से लोगों को अक्षय फल की प्राप्ति होती है। पूर्ण श्रद्धा और भाव के साथ की गई पूजा से प्रसन्न होकर भगवान भास्कर अपने भक्तों को सुख, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद देते हैं। सूर्य की ओर मुख करके सूर्य स्तुति करने से त्वचा रोग आदि नष्ट हो जाते हैं और नेत्र की ज्योति बढ़ती है। इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास से रखने पर पिता-पुत्र में प्रेम बना रहता है।

सूर्य अपने मंडल का प्रमुख ग्रह है एवं आकार प्रकार से सबसे बड़ा। सूर्य जब कुंडली के कोई पद भाव जैसे पंचम, नवम, दशम या एकादश भाव का स्वामी के साथ मिलकर लग्न के कोई अंग को प्रभावित करें तो मनुष्य का आजीविका का आकार प्रकार बहुत बड़ा होता है विदेशों में या कई राज्य में फैला होता है। इस तरह का ग्रह योग मंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपालों की कुंडली में देखने को मिलता है। सूर्य और लग्न मध्य वाली होने पर केंद्र और राज्य सरकार के प्रशासनिक पद प्राप्त होता है। सूर्य खगोल विज्ञान भी है सूर्य जब दशम भाव का स्वामी हो तो खगोल (आकाश) विज्ञान का पक्का कारक बन जाता है। एक अन्य आकाश तत्व वाले ग्रह बृहस्पति तथा तृतीय भाव का स्वामी (अपने हाथों से किए गए कर्मों का) के साथ सम्मिलित रूप से यदि लग्न को प्रभावित करें तो हवाई जहाज चलाने का अवसर मिलता है। ऐसे व्यक्ति की आजीविका एरोप्लेन पायलट के रूप में होता है।

सूर्य का अस्तित्व वहां होने वाला निरंतर परमाणु विस्फोट से है इसलिए सूर्य परमाणु ऊर्जा का भी कारक है। सूर्य जब बलवान हो तथा अन्य अग्नि तत्व वाला ग्रह मंगल केतु तथा आकाश तत्व एवं भौतिक विज्ञान का कारक बृहस्पति के साथ मिलकर लग्न को प्रभावित करें तो परमाणु वैज्ञानिक या अंतरिक्ष विज्ञानिक या मिसाइल वैज्ञानिक बनने का अवसर प्राप्त होता है। इसी योग में सूर्य मंगल गुरु मध्य बली हो तथा शनि पंचमेश या नवमेश होकर तृतीयश के साथ मिलकर लग्न के अंगों को प्रभावित करें तो वायुयान अभियंता बनने का अवसर मिलता है। सूर्य समस्त प्रकार का ज्वलनशील गैस जैसे सी.एन.जी, एल. एन.जी, एल.पी.जी, ईथेन, मीथेन, डीए या अन्य ज्वलनशील गैस का कारक है। मंगल एवं केतु भी इन पदार्थों का सहकारक है। लग्न यदि सूर्य या मंगल का हो और सूर्या मंगल सप्तम या दशम भाव में होकर केतु के साथ मिलकर लग्न के अंगों को प्रभावित करें तो मनुष्य को किसी ज्वलनशील पदार्थ या गैस का करोबार होता है।

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सूर्य विद्युत भी है और प्रकाश भी, चंद्र भी प्रकाश है, केतु मृदु उजाला, यह तीनों जब एक अन्य आग्नेय ग्रह मंगल के साथ पंचमेश और नवमेश होकर आकाश तत्व के ग्रह बृहस्पति के साथ मिलकर लग्न के अंगों को प्रभावित करें तो विद्युत अभियंता बनने का अवसर प्राप्त होता है। यही ग्रह योग यदि हीन बली हो तो विद्युत संरचना या उपक्रमों का मिस्त्री आदि बनने का अवसर प्राप्त होता है। सूर्य ब्रह्मांड का राजा होने से लोक हितकारी गुणों से भी परिपूर्ण है। लोक हितकारी अर्थात औषधीय या वैद्यक गुण। बलवान पंचमेश और नवमेश के साथ लग्न का संबंध हो तथा अन्य औषधीय ग्रह विशेषकर शनि और राहु तथा षष्ठेश (रोग एवं रोगी) अष्टमेश (औषधि एवं चिकित्सकीय उपक्रम) द्वादशेश (हस्पताल या चिकित्सालय) एवं तृतीयेश (हाथों से किए गए कर्म) के साथ मिलकर लग्न को प्रभावित करें तो पढ़ लिखकर चिकित्सक बनने का अवसर प्राप्त होता है। उक्त योग यदि निर्बल हो तो नर्स, ओटी असिस्टेंट या कॉंपाउंडर बनने का अवसर मिलता है।

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