हिमशिखर धर्म डेस्क
गो-स्वामी तुलसी दास जी द्वारा रचित श्री राम चरित मानस की एक चौपाई में भगवान शिव माँ पार्वती से कहते हैं “ उमा कहऊँ मैं अनुभव अपना, सत हरि भजन जगत सब सपना” अर्थात केवल हरि का निरंतर स्मरण ही एक मात्र सत्य है बाकी इस जगत में सभी कुछ केवल स्वप्न के समान है।
जैसे अर्ध निद्रा की अवस्था में जब आप कोई स्वप्न देखते हैं तो, स्वप्न की स्थिति के अनुसार आप सुख या दुःख की अनुभूति करते हैं, किन्तु जैसे ही आप जाग्रत अवस्था में आते है तो वह सभी सुख और दुःख की अनुभूति समाप्त हो जाती है।
ठीक इसी प्रकार जब आप भगवान के नाम जाप के महत्व को समझ जाते हैं तो आप इस स्वप्न के संसार की वास्तविकता को समझ जाते हैं और आपका हृदय एक ऐसे आनंद की अनुभूति की और अग्रसर होता है जिसका कभी अंत नहीं हो सकता।
ऐसा नहीं है की इस जगत के क्षणिक होने के आभास, हमें अपने जीवन में नहीं होता है लेकिन हम वास्तविकता की और अपना ध्यान केन्द्रित ही नहीं करते हैं, हिन्दी के पृसिद्ध कवि जय शंकर प्रसाद ने कहा है “श्मशान संसार का सबसे बड़ा शिक्षक है।
श्मशान ही वह स्थल है जो हमें जीवन के सत्य से परिचित करवाता है किन्तु हम पुनः इसको नकार कर इस स्वप्नवत संसार में रम जाते हैं। जीवन में सबसे बड़ा भय मृत्यु का होता है यदि आप इस भय से मुक्त होना चाहते हैं तो अपने आप को पहचानने की आवश्यकता है।
जिस दिन यह विश्वास आपके हृदय में अपनी पैठ बना लेगा की “ईश्वर अंश जीव अविनाशी” और इस अंश का वास्तविक लक्ष्य उस अंश से मिलना है तो आपके हृदय में बैठा मृत्यु का भय आपसे कोसो दूर होगा, जिस दिन आप प्रभु के उस मनोहारी रूप सौंदर्य में खो जाएंगे और निरंतर उसका स्मरण करते रहेंगे तो आप उस आनंद की ओर अग्रसर होगे जिसको सचिदानंद सत चित आनंद कहा गया है।
मेरे राघवेंद्र सरकार तो बिना कारण ही अपनी करुणा बरसाते ऐसे में यदि उनकी कृपा मिल जाए तो जीवन में कुछ भी अप्राप्त नहीं रह जाएगा।
गो-स्वामी तुलसी दास जी ने श्री रामचरित्र मानस में लिखा है की जो प्रभु राम का नाम दुर्भावना के साथ भी लेता है उसका भी प्रभु कल्याण करते हैं, अजामिल ने जीवन भर दुष्कर्म किए किन्तु यमदूतों को देख कर भय वश अपने पुत्र नारायण को पुकारने लगा तो केवल इतने पर ही प्रभु ने उसको अपना लोक प्रदान किया।
ऐसे करुणामय प्रभु का एक क्षण भी विस्मरण क्या उचित है ? सोचिए समय तीव्र गति के साथ भागा जा रहा है; ऐसा न हो की जब आपकी चेतना जाग्रत हो तब तक समय समाप्त हो चुका हो।
इसलिए “ उठत बैठत सोवत जागत जपो निरंतर नाम। हमारे निर्बल के बल राम”।
एहिं कलिकाल न साधन दूजा। जोग जग्य जप तप ब्रत पूजा॥
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि। संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि॥
भावार्थ:-(तुलसीदासजी कहते हैं-) इस कलिकाल में योग, यज्ञ, जप, तप, व्रत और पूजन आदि कोई दूसरा साधन नहीं है। बस, श्री रामजी का ही स्मरण करना, श्री रामजी का ही गुण गाना और निरंतर श्री रामजी के ही गुणसमूहों को सुनना चाहिए॥