राम नाम में ऐसी शक्ति है कि बुरे समय को शुभ समय में परिवर्तित कर जीवन में सौभाग्य, समृद्धि को बढ़ाता है। राम नाम न केवल इस लोक में बल्कि परलोक में भी काम आता है। धर्मशास्त्र के अनुसार हर व्यक्ति को अपनी कमाई का कुछ न कुछ भाग धार्मिक कार्यों, मानव सेवा, सार्वजनिक कार्यों अथवा गरीब याचकों की सहायता के रूप में अवश्य खर्च करने के साथ ही ईश्वर नाम स्मरण करना चाहिए। कहते हैं मानव के आड़े वक्त यानी कि बुरे समय में उसके किए गए सत्कर्म ही काम आते हैं। अक्सर ऐसा होता है कि किसी बड़ी दुर्घटना में महज छोटी सी ही खरोंंच आती है। खुद को भी यकीन नहीं होता कि बचेंगे लेकिन यह हमारे शुभ कर्मों का ही प्रताप होता है कि ईश्वर हमें बचा लेते हैं।
हिमशिखर धर्म डेस्क
“राम” अत्यन्त विलक्षण शब्द है। साधकों के द्वारा “बीज मन्त्र” के रूप में “राम” का प्रयोग अनादि काल से हो रहा है और न जाने कितने साधक इस मन्त्र के सहारे परमपद च्राप्त कर चुके हैं। आज “राम” कहते ही दशरथ पुत्र धनुर्धारी राम का चित्र उभरता है परन्तु “राम” शब्द तो पहले से ही था। तभी तो गुरु वशिष्ठ ने दशरथ के प्रथम पुत्र को यह सर्वश्रेष्ठ नाम प्रदान किया। राम शब्द में आखिर ऐसा क्या है? इस प्रश्न का यही उत्तर हो सकता है कि “राम” में क्या नहीं है?
“एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा, एक राम का सकल उजियारा, एक राम जगत से न्यारा”।।
हमारे शास्त्रों में सभी मंत्रों के अपने-अपने नाम हैं। राम नाम को ‘तारक मंत्र’ कहा जाता है। तारक शब्द का अर्थ है पार लगाने वाला। यह हमें ‘संसार’ के सागर से पार करने में मदद करता है। यह हमें जन्म और मृत्यु के चक्र को पार करने में मदद करता है।
सगुण उपासना (साकार रूप में पूर्ण सत्य की पूजा) में राम नाम को बिल्कुल वही महत्व मिलता है, जो निर्गुण उपासना (निराकार के रूप में पूर्ण सत्य की पूजा) में प्रणव (‘ओम’) मंत्र को मिलता है।
श्रीराम साक्षात् भगवान नारायण के मानव अवतार थे। विद्वानों ने राम के तीन अर्थ निकाले हैं। राम नाम का पहला अर्थ है ‘रमन्ते योगिन: यस्मिन् राम:।’ यानी ‘राम’ ही मात्र एक ऐसे विषय हैं, जो योगियों की आध्यात्मिक-मानसिक भूख हैं, भोजन हैं, आनन्द और प्रसन्नता के स्त्रोत हैं।
राम का दूसरा अर्थ है, ‘रति महीधर: राम:।’, ‘रति’ का प्रथम अक्षर ‘र’ है और ‘महीधर’ का प्रथम अथर ‘म’, राम। ‘रति महीधर:’ सम्पूर्ण विश्व की सर्वश्रेष्ठ ज्योतित सत्ता है, जिनसे सभी ज्योतित सत्ताएं ज्योति प्राप्त करती हैं।
‘राम’ नाम का का तीसरा अर्थ है, ‘रावणस्य मरणं राम:’। ‘रावण’ शब्द का प्रथम अक्षर है ‘रा’ और ‘मरणं’ का प्रथम अक्षर है ‘म’। रा+ म= राम यानी वह सत्ता, जिसकी शक्ति से रावण मर जाता है।
रामनाम का शाब्दिक अर्थ है – ‘राम का नाम’। ‘रामनाम’ से आशय विष्णु के अवतार राम की भक्ति से है या फिर निर्गुण निराकार परम ब्रह्म से। हिन्दू धर्म के विभिन्न संप्रदायों में राम के नाम का कीर्तन या जप किया जाता है। ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ एक प्रसिद्ध मंत्र है जिसे पश्चिमी भारत में समर्थ रामदास ने लोकप्रिय बनाया।
इस प्रकार हम देखते है कि जो कुछ भी जानने योग्य है, जो कुछ भी मनन योग्य है, वह सब “राम” शब्द में अन्तर्निहित है। योगियों और सिद्ध गुरुजनों ने संकेत दिया है कि “ज्ञान” बाहर से नहीं लिया या दिया जा सकता। यह तो अन्दर से प्रस्फुटित होता है। आत्मा “सर्वज्ञ” है साधना के प्रभाव से किसी भी शब्द में निहित सारे अर्थ स्वयं प्रकट हो जाते हैं।
इस विराट् अर्थवत्ता के कारण ही “राम नाम ” महामन्त्र है और उसके अनवरत जप से कालान्तर में उसमें निहित सार, अर्थ और सृष्टि के सारे रहस्य स्वतः प्रकट होकर साधक को जीवन्मुक्त का परमपद प्रदान करते हैं।
पढ़ते रहिए हिमशिखर खबर, आपका दिन शुभ हो…