कोरोना महामारी एक तूफान की तरह आई और गुजर गई, लेकिन संदेह छोड़ गई कि तूफान फिर लौटकर आ सकता है। तूफान का सामना करना हो तो इसके दो तरीके हैं। पहला, तूफान के सामने तूफान बन जाओ, और दूसरा तरीका है तिनका हो जाओ। श्रीकृष्ण ने एक तीसरा तरीका बताया है कि तूफान की तबाही के बाद धैर्य और दूरदर्शिता काम आएगी।
जरासंध उनके जीवन में तूफान की तरह आया था। सत्रह बार श्रीकृष्ण ने उसे हराया, लेकिन अठारहवीं बार जब फिर आया तो मैदान छोड़कर भागे और रणछोड़ कहलाए। पर, इस रणछोड़ में धैर्य और दूरदर्शिता थी तो एक दिन जरासंध को पराजित भी कर सके। इस दौर में हम सबके जीवन में तूफान नहीं भी आया हो, लेकिन आंधी तो जरूर आई।
आंधी में भी तेज हवा होती है, पर धूल ज्यादा पानी कम। तूफान की तेज हवा में पानी ज्यादा, धूल कम होती है। धूल और पानी को मिलकर तो कीचड़ बनना ही है। फिर इस महामारी का तूफान तो ऐसा था कि कीचड़ जमीन पर नहीं बना, बल्कि जैसे आसमान से ही बरस रहा था।
ऐसे समय जिन-जिन का भी सहारा लें, प्रकृति के पंंचतत्वों पर भरोसा और उनका सदुपयोग अवश्य करें। प्रकृति हमेशा ही हमारी मदद करती है। शाकाहार, सदाचार और योग प्रकृति की पसंद है। इन्हें अपनाकर उससे जुड़े रहिए। हर तूफान का सामना करने में सक्षम होंगे।