काका हरिओम्
बहुत पुरानी उक्ति है यह. लेकिन कुछ के गले यह नहीं उतरती है. उन्हें अंधेरे में उजाले की किरन दिखाई देती है. पर यदि समाज में ऐसा कुछ हो जाए, तो वह चाहते हैं कि बिना अपराध सिद्ध हुए संबंधित को सजा दे दी जाए.
माना कि रावण विद्वान था, महर्षि का पुत्र था, ब्राह्मण था लेकिन उसने जो किया वह अपराध था और पाप भी. लोगों का तर्क है कि उसने सीता की इच्छा के विरुद्ध उससे कुछ नहीं किया, तो सबके सामने सीता को यह कहना कि ‘तुम यदि मेरी पटरानी बन जाओ, मैं मन्दोदरी को तुम्हारी दासी बना दूंगा, ‘के बारे में वह क्या सफाई देंगे. यहां एक बात और विचारणीय है कि वह ऐसा कहते समय इंद्रजीत की भी परवाह नहीं करता.
किसी की स्त्री को छलपूर्वक उठा ले जाना किसी भी दृष्टि से सत्य अर्थात् धर्म नहीं है.
सीता द्वारा रावण से अशोक वाटिका में पूछे गए सवालों को पढ़िए, पता चलेगा कि उसके पास इनका कोई उत्तर नहीं है.
रावण अपने तप के प्रभाव से अधर्म का आचरण निर्भय होकर कर रहा है.यह शक्ति का दुरुपयोग है. उसे परास्त करने के लिए ही श्रीराम ने शक्ति की आराधना की. इसी के साथ शुरू हुआ असत्य को पराजित करने का महा-अभियान.
माना असत्य पर सत्य की विजय होती है, लेकिन उसके लिए चाहिए श्रीराम-सा दृढ़ संकल्प, दिव्य पुरुषार्थ, धैर्य और धीर-गंभीर महान व्यक्तित्व.
जय श्रीराम!