हिमशिखर खबर ब्यूरो।
नारद जी और विष्णु जी से जुड़ी कहानी है। नारद जी ने एक दिन विष्णु जी से कहा, ‘मेरा मन घर बसाने का हो रहा है।’
विष्णु जी ने कहा, ‘बताइए, इसमें मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं?’
नारद जी बोले, ‘एक बहुत सुंदर कन्या का स्वयंवर हो रहा है। वह मुझे तब ही पसंद करेगी, जब मेरा रूप सुंदर होगा। आप कुछ देर के लिए अपना सौंदर्य मुझे दे दीजिए।’
विष्णु जी ने सोचा कि ये ब्रह्मचारी हैं, साधु है। इन्हें मार्ग भटकने से बचाना चाहिए। उन्होंने नारद जी का मुंह बंदर की तरह बना दिया। नारद जी ने सोचा कि अब वे सुंदर दिख रहे हैं और तुरंत ही उस स्वयंवर में पहुंच गए और सबसे आगे जाकर बैठ गए। उनके पीछे भी कई और राजा बैठे थे और वे सभी भी स्वयंवर में विवाह करने के लिए आए हुए थे।
स्वयंवर विश्वमोहिनी नाम की राजकुमारी का था। विश्वमोहिनी वरमाला लेकर आई और उसने उस पंक्ति को देखा, जिसमें नारद मुनि सबसे आगे बैठे थे। नारद जी का चेहरा विकृत था तो राजकुमारी ने उन्हें देखते ही नजर हटा ली और पूरी वह पूरी पंक्ति ही छोड़ दी, जिसमें नारद जी बैठे थे। नारद मुनि के पीछे बैठे राजा रास्ता ही देखते रह गए, लेकिन राजकुमारी वहां से आगे बढ़ गई।
कुछ समय बाद वहां विष्णु जी और महालक्ष्मी पहुंचे। विश्वमोहिनी ने विष्णु जी को देखा तो उन्हें वरमाला पहना दी। उस समय नारद जी बहुत गुस्सा हो गए थे और उन्होंने विष्णु जी को शाप भी दिया था।
सीख – इस प्रसंग में विश्वमोहिनी ने वह पूरी पंक्ति ही छोड़ दी, जिसमें सबसे आगे नारद जी बैठे थे। हमारे लिए इसमें संदेश ये है कि अगर पहली पंक्ति के लोग सही नहीं होंगे तो पीछे के सभी लोगों को नुकसान हो सकता है। अगर हमें किसी के नेतृत्व में काम करने का मौका मिले तो ये जरूर देखें कि नेतृत्व करने वाला व्यक्ति गुणी है या नहीं। नेता या कप्तान योग्य नहीं है तो पूरी टीम को नुकसान होता है। अयोग्य व्यक्ति के पीछे चलने का कोई लाभ नहीं मिलता है।