कौन है ओशो? यह सवाल आज भी लाखों लोगों के मन में उठता है कोई ओशो को महान संत के नाम से जानता है तो कोई भगवान के नाम से। किसी के लिए ओशो महज एक दार्शनिक हैं तो किसी के लिए विचारक। किसी के लिए ओशो शक्ति हैं तो किसी के लिए व्यक्ति। कोई इन्हें संबुद्ध रहस्यदर्शी के नाम से संबोधित करता है। आइए जानते हैं उनके सफर के बारे में…
हिमशिखर धर्म डेस्क
आज हम एक ऐसे शख्स के बारे में जानेंगे, जिनके बारे में दुनिया का एक बड़ा हिस्सा परिचित है। विश्व प्रसिद्ध भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस ने इस शख्स के बारे में लगभग तीन सौ वर्ष पहले जो बातें बता दी थी, वो आगे चलकर शत प्रतिशत सच साबित हुई। वो पूरब दिशा से आएगा, उसके लोग लाल रंग का चोला पहनेंगे, उसको कैद किया जाएगा, उसका नाम चंद्रमा से संबंधित होगा। एक अद्भुत वक्ता, जो कि सारी दुनिया को अपने शब्दों से प्रभावित करेगा। एक ऐसा युवक जो स्वयं के भीतर निरंतर प्रचंड अग्नि की ज्वलनशीलता महसूस करेगा लेकिन दुनिया के लोगों को शीतलता प्रदान करेगा। वो भारत में जन्म लेगा। उसके संन्यासी गहरा लाल रंग का चोला धारण करेंगे। अमेरिका ने उन्हें कैद किया था, अमेरिका में हजारों एकड में उनका आश्रम बसा था, सीआईए ने यूएस सरकार को एक रिपोर्ट दी थी, जिसमें उन्हें श्रेष्ठ वक्ता बतलाया गया था। उनके कमरे में जो नए लोग जाते थे, वो ठंड से ठिठुरने लगते थे। क्योंकि उनके कमरे का तापमान बहुत कम रखा जाता था। उनके शब्दों की शैली मंत्रमुग्ध कर देती थी। आज हम बात करेंगे चंद्रमोहन जैन उर्फ आचार्य रजनीश या ओशो की।
अपने परिवार के सबसे बड़े पुत्र और बचपन से नाना-नानी के घर में रहने वाले ओशो बचपन से ही तीक्ष्ण बुद्धि के थे। उनके तर्क अकाट्य और निरूतर करने वाले होते थे। 5 वर्ष की उम्र में पहली बार अपने नाना के गुरु से उन्होंने ऐसे प्रश्न किए कि उनके नाना के गुरु निरुत्तर हो गए। उनके नाना ने एक बहुत मशहूर ज्योतिषी से उनकी कुंडली बनवाई। ज्योतिषी ने बताया कि या तो यह बालक जल्द ही मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा या फिर यह महान संत बनेगा।
विदित हो कि ओशो को भारत में मानने वालों की बड़ी संख्या है। बचपन से ही ओशो की अध्यात्म में बहुत गहरी रूचि थी। मगर उनका ढंग पारंपरिक न होकर क्रांतिकारी था, नवीन था। देश, दुनिया ओर समाज आज तक उसे पूरी तरह से आत्मसात नहीं कर सका है। ओशो की तार्किक शक्ति इतनी प्रबल थी कि बड़े बड़े विद्वान उनके सामने निरुत्तर हो जाते थे। एक बार उन्होंने अपनी शिक्षाकाल के दौरान वाद विवाद प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। उन्होंने एक विषय के पक्ष और विपक्ष दोनों में ही बोला, और दोनों ही स्थिति में उन्हें प्रथम पुरुस्कार मिला। काम ऊर्जा पर खुलेपन से बोलने और इसका उपयोग आध्यात्मिक विकास करने की सलाह देने के लिए ओशो एक विवादित गुरु बन गए। यदि ओशो की आध्यात्मिक यात्रा की बात करें तो उनके अनुभव बिल्कुल भिन्न आयाम पर खड़े दिखाई देते हैं। ओशो के जीवन के कुछ आध्यात्मिक अनुभवों को साझा किया जा रहा है।
एक बार ओशो के गांव के पास एक नदी थी। जिसमें वे अक्सर तैरने जाया करते थे। बारिश के मौसम में जब नदी विकराल रूप धारण कर देती थी, तब वे नदी के पुल से छलांग लगाया करते थे। ऐसी ही एक छलांग लगाने के बाद काफी देर तक वे तैरते रहे, चूंकि बरसात के मौसम में नदी का जलस्तर ओर चौड़ाई काफी ज्यादा हो गई थी। उनका शरीर काफी थक गया था, और उन्हें ऐसा लगा किवे मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे।
तैरने के दौरान उन्हें एक अभूतपूर्व अनुभव हुआ। उन्होंने देखा कि उनका शरीर नीचे तैर रहा है। मगर वो शरीर के ऊपर उड़ रहे हैं। उनका शरीर चांदी के एक धागे से कनेक्टेड था। सिर्फ चांदी का यही धागा जो उनकी नाभि से निकल रहा था। उनके सूक्ष्म शरीर को कनेक्ट करता था। तब पहली बार उन्होंने शरीर से खुद की दूरी के अनुभव को जाना। इसी प्रकार एक बार ओशो परिवार वालों से बचने के लिए पेडमें छुपकर ध्यान कर रहे थे। थोडी देर बाद उन्होंने देखा कि उनका शरीर नीचे जमीन पर पडा हुआ है। जबकि वे अभी भी पेड पर बैठे हुए थे। उन्होंने देखा कि उनकी नाभि से एक चांदी का तार निकला हुआ था। इसी के माध्यम से वे शरीर से जुड़े हुए थे।
अपने साक्षात्कार के विषय में ओशो कहते थे कि कई जन्मों से मैं साक्षात्कार के लिए प्रयास कर रहा था। कहीं न कहीं यह प्रयास ही बंधन बन गया था। इधर, कुछ समय से मेरी साक्षात्कार की इच्छा भी समाप्त हो गई। सारी आकांक्षाएं तिरोहित हो गई थी। फिर एक शाम ऊर्जा का ऐसा विशाल बवंडर अनुभव हुआ कि कमरे में बैठ पाना मुश्किल हो गया। जो कुछ हो रहा था, वह मन की समझ से परे था। ऐसी अनुभूति हो रही थी कि मैं जीवित नहीं बचूंगा। मध्य रात्रि के आस-पास जब ऊर्जा का दबाव सहन नहीं हुआ तो मैं घर के पास के एक बगीचे में चला गया। वहां एक वृक्ष के नीचे बैठ गया। उन्हें हर चीज प्रकाशवान नजर आ रही थी। इन्हीं अनुभवों के होते-होते साक्षात्कार घटित हो गया।
ओशो को अमीरों का गुरु भी कहते थे। लेकिन ओशो कहते थे कि जो व्यक्ति जीवन में धन, मान-सम्मान की तृष्णा मिटा चुका है, वह अध्यात्म के मार्ग पर शीघ्र अग्रसर हो सकता है। उनका कहना था कि भारत में अध्यात्म को गरीबी और फकीरी से जोड़कर देखा गया है। परंतु एक आम और खास दोनों ही व्यक्तित्व समान रूप से बुद्धत्व के अधिकारी हैं। अमीर होना या राजसी जीवन जीना ध्यान मार्ग में बाधक नहीं है। गरीबी और फकीरी में ईश्वर मिलता है, यह भीआवश्यक नहीं है। क्योंकि अगर गरीबी और फकीरी में ईश्वर मिलता तो अभी तक सारे गरीबों को बुद्ध होना चाहिए था, साक्षात्कारी होना चाहिए था। इसलिए ओशो ने अध्यात्म की गहनतम यात्रा करते हुए एक पूर्ण राजसी जीवन जीया।
उनके भक्तों ने उन्हें 93 रॉल्य रॉयल गाडियां भेंट की थी। लाखों की सुंदर घडियां और लाखों के सुंदर वस्त्र और पूर्ण राजसी वैभव युक्त जीवन। एक मशहूर आध्यात्मिक हस्ती अपने समय में कुछ न कुछ विवादास्पद रूप से रही होती है। हर किसी को स्वीकार करने में दुनिया को काफी समय लगाया। हमारी आस्था और विश्वास के आधार पर हमें हर जगह अच्छाई और बुराई दोनों ही मिलती है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम बगुला बनना चाहते हैं या हंस बनना चाहते है। क्योंकि चुनाव हमारा है। हर जगह हमें वहीं मिलेगा, जो हम चुनेंगे। ओशो के अनुसार विज्ञान भैरव तंत्र की ध्यान से सबंधित सभी विधियों पर एक बात कॉमन है, वह है साक्षी भाव। यदि आप साक्षी भाव के साथ ध्यान की विधियों को फॉलो करते हैं तो आपका सक्सेसफुल होना तय है। यानी निरंतर ध्यान के माध्यम से जितनी अधिक दूरी आपकी शरीर और अहंकार से होती जाती है, उतना अधिक आप अपने अस्तित्व ओर आत्मा की सच्चाई के करीब होते जाते हैं।