हिमशिखर धर्म डेस्क
हर व्यक्ति के जीवन में मां ही तो वह एकमात्र अस्तित्व है, जो हर परिस्थिति में संतान को समझने, सुरक्षित रखने और साथ खड़े होने का भरोसा देती है. वो अपने बच्चों के लिए काल से भी लड़ जाती है. हिंदू धर्म में गंगा नदी को मां की उपाधि दी गई है. लेकिन महाभारत के अनुसार मां गंगा ने अपने ही 7 पुत्रों को मौत के मुंह में धकेल दिया था. आइए जानते है मां गंगा ने आखिर क्यों अपने 7 पुत्रों को नदी में बहाया था-
महाभारत के आदि पर्व के अनुसार, एक बार पृथु पुत्र जिन्हें वसु कहा जाता था, वो अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत पर घूम रहे थे. वहां वशिष्ठ ऋषि का आश्रम भी था. वहां नंदिनी नाम की गाय थी. द्यो नामक वसु ने अन्य वसुओं के साथ मिलकर अपनी पत्नी के लिए उस गाय का हरण कर लिया. जब महर्षि वशिष्ठ को पता चला तो उन्होंने क्रोधित होकर सभी वसुओं को मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया.
वसुओं द्वारा क्षमा मांगने पर ऋषि ने कहा कि तुम सभी वसुओं को तो शीघ्र ही मनुष्य योनि से मुक्ति मिल जाएगी, लेकिन इस द्यौ नामक वसु को अपने कर्म भोगने के लिए बहुत दिनों तक पृथ्वीलोक में रहना पड़ेगा. इस श्राप की बात जब वसुओं ने गंगा को बताई तो गंगा ने कहा कि ‘मैं तुम सभी को अपने गर्भ में धारण करूंगी और तत्काल मनुष्य योनि से मुक्त कर दूंगी’. गंगा ने ऐसा ही किया. वशिष्ठ ऋषि के श्राप के कारण भीष्म को पृथ्वी पर रहकर दुख भोगने पड़े.
जब आठवें पुत्र को नदी में बहाने से रोक लिया शांतनु ने
जब गंगा ने शांतनु से विवाह किया था तो गंगा ने राजा के सामने एक शर्त रखी थी कि अगर जीवन में राजा शांतनु ने कभी भी गंगा को किसी काम को करने से रोका या टोका तो, वो तुंरत राजा शांतनु को छोड़कर चली जाएगी. 7 पुत्रों को बहा देने के बाद शांतनु ने आठवें पुत्र को बहाने से गंगा को रोक लिया. जिसके बाद गंगा ने शर्त का पालन करने पर शांतनु को छोड़ दिया. देवी गंगा आठवें पुत्र को लेकर अदृश्य हो गई.
जब लौट आई गंगा और आठवें पुत्र का नाम रखा गया भीष्म
एक दिन गंगा नदी के तट पर घूम रहे थे. वहां उन्होंने देखा कि गंगा में बहुत थोड़ा जल रह गया है और वह भी प्रवाहित नहीं हो रहा है. इस रहस्य का पता लगाने जब शांतनु आगे गए तो उन्होंने देखा कि एक सुंदर व दिव्य युवक अस्त्रों का अभ्यास कर रहा है और उसने अपने बाणों के प्रभाव से गंगा की धारा रोक दी है. यह दृश्य देखकर शांतनु को बड़ा आश्चर्य हुआ। तभी वहां शांतनु की पत्नी गंगा प्रकट हुई और उन्होंने बताया कि यह युवक आपका आठवां पुत्र है. उस युवक की बुद्धि और कौशल देखकर उसका नाम देवव्रत से ‘भीष्म’ रखा गया. अपने पुर्नजन्म के पाप के कारण भीष्म को जीवन भर दुख सहना पड़ा अर्थात उनका पूरा ही जीवन श्रापित था.