मृत्यु अवश्यंभावी है। यह हर समय और हर परिवार में होता है। हालांकि, किसी के निधन पर शोक कैसे मनाया जाए, यह उनके धर्म और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के आधार पर भिन्न होता है। सनातन धर्म में, जैसा कि हम सभी जानते हैं, जब भी कोई गुजरता है, तो परिवार के पुरुष सदस्य अपना सिर मुंडवा लेते हैं। परिवार में मृत्यु के बाद हिंदू पुरुष अपना सिर क्यों मुंडवाते हैं? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब हम आज देने की कोशिश करेंगे। मुंडन कराने के पीछे कुछ धार्मिक और वैज्ञानिक कारण होते हैं, आइए जानते हैं-
हिमशिखर धर्म डेस्क
घर में किसी परिजन की मृत्यु हो जाती है, तो सिर मुंडवाया जाता है। मृतक के लिए बाल समर्पित करना उसके प्रति प्यार और सम्मान को दर्शाने के रूप में देखा जाता है। विशेष रूप से यह स्वच्छता को ध्यान में रखकर किया जाता है। बच्चे के जन्म और किसी व्यक्ति की मृत्यु के कारण परिवार में सूतक और पातक लगता है। यानी कि कुछ दिनों तक परिवार के लोगों को अशुद्ध माना जाता है। सिर मुंडवाने पर ही पातक पूरी तरह से खत्म होता है।
गरुड़ पुराण, हिन्दू धर्म में मृत्यु से जुड़ी कई रीति-रिवाजों पर प्रकाश डालता है और उनकी व्याख्या करता है। गरुड़ पुराण के अनुसार, जब आपका कोइ परिजन मृत्यु को प्राप्त करता है, तो उसकी आत्मा की मुक्ति के लिए सोलहवां संस्कार, जो कि सबसे अंतिम संस्कार है, उससे जुड़े नियमों को निभाना आवश्यक है। मृत्यु के पश्चात 13 दिन तक परिजन आत्मा की शान्ति और मुक्ति के लिए कई अलग-अलग विधान करते हैं और उन्हीं में से एक है ‘मुंडन संस्कार’।
मुंडन-संस्कार का आध्यात्मिक कारण
इस संस्कार से जुड़ी आध्यात्मिक मान्यता यह है कि मृतक के प्रति प्रेम और सम्मान जताने के लिए भी सिर मुंडवाना एक जरिया है क्योंकि बाल गर्व और अहंकार का चिन्ह माना जाता है। जब आप मुंडन करवाते हैं, तो किसी के प्रति समर्पण और त्याग दिखलाते हैं। तभी तो कई अवसरों पर देवताओं को भी बाल अर्पित किये जाते हैं। सिर का मुंडन यह दिखाने के लिए किया जाता है कि शोक से व्यथित परिवार अपने शोक को पीछा छोड़ना चाहता है। दरअसल, उस समय सिर और चेहरे पर मौजूद बाल प्रदूषित होते हैं, जो नकारात्मक विचार यानि दुःख, शोक और व्यथा के वाहक होते हैं। उन्हें शारीरिक रूप से हटाकर आप नए जीवन की तैयारी करते हैं। जैसे-जैसे नए बाल बढ़ते हैं, आपका दुःख और नकारात्मकता पीछे छूटती जाती है और नई उम्मीद जीवन में प्रवेश करने लगती है।
मुंडन-संस्कार का धार्मिक कारण
अगर धार्मिक मान्यताओं की बात करें, तो गरुड़ पुराण में बताया गया है कि बच्चे के जन्म पर सूतक लगता है और परिवार में किसी कि मृत्यु होती है, तो पातक लगता है। पातक के दौरान पूरा परिवार अशुद्ध माने जाते हैं और मान्यता है कि सिर मुंडवाने के बाद पातक खत्म हो जाता है और पुरुषों में मौजूद अशुद्धियाँ भीं।
यह भी माना जाता है कि जब परिवार के पुरुष सदस्य अपने परिजन के पार्थिव शरीर शमशान ले जाते हैं और उसे जलाते है, तो मृत शरीर के कुछ जीवाणु उनके शरीर में आकर चिपक जाते हैं। सिर में जो जीवाणु चिपकते हैं, उन्हें मुंडन कर्म द्वारा निकाला जाता है, क्योंकि ऐसा करने से वो जीवाणु पूरी तरह से बालों के साथ निकल जाते हैं। इसलिए, इस दिन नख, बाल और स्नान का विशेष महत्व है। अगर परिजन सिर मुंडवाते हैं ताकि आत्मा उनके मोह से मुक्त हो सके।
महिलाओं का सिर मुंडवाना टनिषेध
महिलाओं का सिर मुंडवाना हिन्दू धर्म में निषेध माना गया है। पहला कारण उनके सिर ना मुंडवाने का यह होता है कि वो शमशान नहीं जाती हैं और मृतक के दाह-संस्कार के समय उसके संपर्क में कम से कम रहती हैं। दूसरा कारण यह है कि हिंदू धर्म महिलाओं को दैवीय ऊर्जा का प्रतीक मानता है। कहते हैं कि बालों के सिरों से प्रसारित तरंगें महिलाओं को नकारात्मक ऊर्जा के हमलों से बचाती हैं।