सुप्रभातम्: भगवान हमारी हर इच्छा पूरी क्यों नहीं करता?

भगवान में श्रद्धा रखने वाले के मन में अक्सर ये सवाल उठता है कि भगवान उनकी हर इच्छा पूरी क्यों नहीं करता, जबकि वो पूरे मन से भगवान की भक्ति करते हैं। लेकिन वो ये नहीं सोचते कि जैसे ही उनके मन में ये सवाल उठा, वैसे ही उनके मन में संदेह भी जागा और जहां संदेह है, वहां निस्वार्थ भक्ति कैसी।

Uttarakhand

हिमशिखर धर्म डेस्क

पूजा-पाठ करते समय हमें भगवान के सामने किसी तरह की शर्त नहीं रखनी चाहिए। निस्वार्थ भाव से की गई पूजा ही श्रेष्ठ मानी जाती है।जीवन में जो भी कुछ मिल रहा है, उसे भगवान का आशीर्वाद मानकर स्वीकार करना चाहिए और संतुष्ट रहना चाहिए। यही जीवन में सुख और शांति बनाए रखने का मूल मंत्र है।

मांगने वाले को हमेशा कम मिलता है, जबकि नहीं मांगने वाले को सब कुछ मिलता है। भक्ति में कभी भी मांग या अपेक्षा नहीं होती और जैसे ही यह आता है, वैसे ही वह भक्ति शुद्ध और पवित्र नहीं रह जाती है। भगवान की भक्ति अगर आप किसी ख़ास मनोकामना या इच्छा रखकर कर रहे हैं, तो हो सकता है कि भगवान उसे पूरी कर दे या पूरी ना भी करे। भगवान को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि आपने अपनी भक्ति में क्या शर्तें रखी हैं या आपने कितने मन से भक्ति की है, वो तो हमेशा आपके कर्मों के अनुसार और आपके लिए जो सही है, उसके अनुसार ही आपको फल प्रदान करते हैं।

भगवान हर इच्छा पूरी नहीं करते क्योंकि वे जानते हैं कि कौन सी इच्छा आपके लिए शुभ है और कौन सी नहीं। भगवान केवल वही इच्छाएँ पूरी करते हैं, जो आपके जीवन के लिए सही होती हैं। जब हम भगवान से कुछ मांगते हैं और वो इच्छा पूरी नहीं होती है, तो भगवान से शिकायत करने के बजाय ये सोचना चाहिए कि वो इच्छा हमारे लिए सही नहीं है। भगवान् अगर आपको बहुत पूजा- अर्चना के बाद भी कुछ नहीं दे रहे, तो इसका अर्थ है कि उसे प्राप्त करने का सही समय या तो अभी नहीं आया है या फिर आपकी वो मांग आपके लिए कल्याणकारी नहीं है।

 इसे एक उदाहरण से समझते हैं। जैसे कि अगर किसी बच्चे को चाकू से खेलना है लेकिन अगर उसकी माँ उसके हाथ से चाकू छीन लेती है, तो इसका अर्थ है कि वो नहीं चाहती कि बच्चे को चाकू से चोट लगे। वो उसके भले के लिए है लेकिन बच्चा ये सोचकर रूठ जाता है कि उससे उसकी मनपसंद चीज छीन ली गयी। जैसे ही आप ईश्वर को एक मनोकामना पूर्ति के स्रोत के रूप में देखना बंद कर देंगे, आपकी शिकायतें भी उनके लिए समाप्त हो जायेगी और आपको अपनी भक्ति से ही वो आनंद और इच्छायें पूर्ण होने लगेंगी, जिसकी आपको चाहत थी।

तू करता वही है, जो तू चाहता है
होता वही है, जो मैं चाहता हूँ
तू वही कर, जो मैं चाहता हूँ
फिर होगा वही, जो तू चाहता है..

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