सनातन धर्म में, हल्दी को बहुत पवित्र माना जाता है और कई शुभ अवसरों पर इसका प्रयोग किया जाता है लेकिन जब घर में किसी की मृत्यु हो जाती है, तो उस दौरान हल्दी का सेवन नहीं करने की मान्यता है। क्या आप इसके पीछे का मूल कारण जानते हैं? अगर नहीं, तो चलिए जानते हैं…
हिमशिखर धर्म डेस्क
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार मृत्यु के 13 दिन बाद तक शोक मनाया जाता है। तेरह दिन की इस अवधि को तेरहवीं के नाम से जाना जाता है। तेरहवें दिन ब्राह्मण को भोज कराने के बाद मृतक की आत्मा को शांति मिलती है। ऐसी मान्यता है कि तेरहवीं के बाद ही मृतक की आत्मा को परमात्मा के धाम में स्थान मिलता है।
मृत व्यक्ति के घर में जो भी खाना बनता है, उसमें हल्दी का प्रयोग नहीं किया जाता है। इस विषय पर भी गरुड़ पुराण में बताया गया है कि हिन्दू धर्म में हल्दी को बहुत ही पवित्र माना गया है। पूजा पाठ से लेकर शादी तक हल्दी का प्रयोग किया जाता है। कहा जाता है जिस घर में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए उस घर में 13 दिनों का शोक होता है। इसलिए उस घर में खाने में हल्दी और पूजा पाठ तब तक वर्जित होता है, जब तक मृत व्यक्ति के सारे क्रिया कर्म पूरे न हो जाएं।
गरुड़ पुराण के अनुसार, हल्दी का उपयोग पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक है। इसका उपयोग पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठानों और शुभ कार्यों में किया जाता है। जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उस घर में शोक का माहौल होता है और वह समय किसी भी व्यक्ति के लिए किसी शुभ चीजों से जुड़ा नहीं होता है। इसके अलावा हल्दी का पीला रंग भी खुशहाली और हर्षोल्लास कर रंग है। किसी की मृत्यु के बाद 13 दिन तक शोक ही मनाया जाता है और यही कारण है कि इस दौरान हल्दी का उपयोग वर्जित होता है, ताकि शोक की अवधि की पवित्रता भंग न हो।