काका हरिओम्
श्रीमद्भगवद्गीता में परमात्मा के साकार और निराकार दोनों रूपों तथा स्वरूप का वर्णन किया है। भगवान ने 12वें अध्याय में यह भी बताया है कि किस साधक-भक्त को किस उपासना को करना चाहिए। यहां भगवान का यह भी स्पष्ट संकेत है कि यदि चुनाव में चूक हो तो अनर्थ की संभावना को भी नकारा नहीं जा सकता। ऐसा हुआ भी है। अभी भी हो रहा है।
भगवान ने यहां स्पष्ट किया है कि निराकार की उपासना का अधिकारी कौन है। यह कसौटी है।
उनके अनुसार, यह उनके लिए अत्यन्त कठिन है,जो शरीर को आत्मा मानते हैं, अर्थात् देहाभिमानी की निराकार में गति नहीं है। इस दृष्टि से उन्हें आत्ममंथन करना चाहिए जो सगुण साकार को जड़ से नकारते हैं, जिन्होंने भगवान के मूर्ति रूप को नकारा है या फिर तोड़कर, नष्ट करके स्वयं को सच्चा उपासक होने का प्रमाणपत्र दिया है।
सगुण साकार की उपासना किये बिना अंत:करण की शुद्धि नहीं होती और उसके बिना निराकार में प्रवेश संभव नहीं है।