रावण की कैद में लंका स्थित वाटिका में सीता माता जिस वृक्ष के नीचे बैठती हैं, वहां वे अपने हाथ में घास का तिनका लेकर रखती हैं। जब भी रावण वहां आता है, सीता उस तिनके को उठा लेती हैं। बहुत सारे लोगों को इसका वास्तविक कारण पता नहीं होगा लेकिन हम आपको इसकी वजह बता रहे हैं। आप भी इसे पढ़ें और जानिये घास के तिनके का क्या रहस्य है।
हिमशिखर धर्म डेस्क
भगवती श्री सीता जी की महिमा अपार है। वेद, शास्त्र, पुराण, इतिहास तथा धर्मशास्त्रों में इनकी अनंत महिमा का वर्णन है। ये भगवान श्री राम की प्राणप्रिया आद्याशक्ति हैं। ये सर्वमंङ्गलदायिनी, त्रिभुवन की जननी तथा भक्ति और मुक्ति का दान करने वाली हैं। महाराज सीरध्वज जनक की यज्ञ भूमि से कन्या रूप में प्रकट हुई भगवती सीता ही संसार का उद्भव, स्थिति और संहार करने वाली पराशक्ति हैं। ये पतिव्रताओं में शिरोमणि तथा भारतीय आदर्शों की अनुपम शिक्षिका हैं।
माँ सीता ने सभी को खीर परोसना शुरू किया और भोजन शुरू होने ही वाला था की ज़ोर से एक हवा का झोका आया सभी ने अपनी अपनी पत्तलें सम्भाली सीता जी बड़े गौर से सब देख रही थी…
ठीक उसी समय राजा दशरथ जी की खीर पर एक छोटा सा घास का तिनका गिर गया जिसे माँ सीता जी ने देख लिया…
लेकिन अब खीर में हाथ कैसे डालें ये प्रश्न आ गया माँ सीता जी ने दूर से ही उस तिनके को घूर कर देखा वो जल कर राख की एक छोटी सी बिंदु बनकर रह गया सीता जी ने सोचा अच्छा हुआ किसी ने नहीं देखा। लेकिन राजा दशरथ माँ सीता जी के इस चमत्कार को देख रहे थे फिर भी दशरथ जी चुप रहे और अपने कक्ष पहुँचकर माँ सीता जी को बुलवाया। फिर उन्होंने सीताजी से कहा कि मैंने आज भोजन के समय आप के चमत्कार को देख लिया था…
आप साक्षात जगत जननी स्वरूपा हैं, लेकिन एक बात आप मेरी जरूर याद रखना। आपने जिस नजर से आज उस तिनके को देखा था उस नजर से आप अपने शत्रु को भी कभी मत देखना…
इसीलिए माँ सीता जी के सामने जब भी रावण आता था तो वो उस घास के तिनके को उठाकर राजा दशरथ जी की बात याद कर लेती थीं…
तृण धर ओट कहत वैदेही।
सुमिरि अवधपति परम् सनेही।। (रामचरितमानस)
यही है…उस तिनके का रहस्य।
इसलिये माता सीता जी चाहती तो रावण को उस जगह पर ही राख़ कर सकती थी लेकिन राजा दशरथ जी को दिये वचन एवं भगवान श्रीराम को रावण-वध का श्रेय दिलाने हेतु वो शांत रही।