काका हरिओम्
स्वामी राम के ब्रह्मलीन होने के बाद उनके शिष्यों और प्रशंसकों ने स्वामी जी के उपदेशों और संदेशों को संजोने और उन्हें जनसामान्य तक पहुंचाने के लिए उनकी जन्मभूमि पर वेदान्त सम्मेलन का आयोजन शुरू किया। इसमें देश-विदेश से स्वामी जी के अनुयायी और प्रशंसक विद्वान-सन्त पधारते और ऋषियों द्वारा प्रतिपादित वेदान्त की चर्चा करते।
स्वामी जी भगवान आद्य शंकराचार्य की अद्वैतनिष्ठ विचारधारा को मानने वाले संन्यासी थे, इसलिए उन्होंने विज्ञान का पुट देकर उसकी जो व्याख्या की, उसकी देश-विदेश के बुद्धिजीवियों-यहां तक कि सनातन धर्म को न मानने वालों ने भी प्रशंसा की।
यह सम्मेलन स्वामी हरिॐ जी महाराज के सद्गुरुदेव स्वामी गोविन्दानन्द जी महाराज की उपस्थिति एवं देखरेख में हुआ करता था। 1947 में जब भारत का बंटवारा हुआ-पाकिस्तान बना, तो उसी निरन्तरता को बरकरार रखते हुए स्वामी हरिॐ जी महाराज ने देहरादून में विराट वेदान्त सम्मेलन का शुभारंभ किया। इसमें भी सनातन धर्म के प्रति समर्पित महान व्यक्तियों एवं विद्वान सन्तों तथा समूचे भारत के विभिन्न नगरों से रामप्रेमियों की उपस्थिति हुआ करती थी। इसे यदि ‘वेदान्त ज्ञान’ का महाकुंभ कहा जाए, तो अतिशयोक्ति न होगी।
पूज्य स्वामी जी के शिष्यों ने अपने सद्गुरुदेव की आज्ञा का पालन करते हुए अमृतसर, जालंधर, जम्मू, कलकत्ता, शिवपुरी (मध्य प्रदेश), दिल्ली, अलीगढ़ आदि नगरों में स्वामी राम के विचारों को पहुंचाने के लिए हरिॐ सत्संग सभाओं की स्थापना की, जिनमें से कुछ स्थानों पर इन्हीं सभाओं ने स्वामी रामतीर्थ मिशन का रूप ले लिया।
एक बार उत्तराखंड की पावन भूमि में-जहां बादशाह राम ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण दिन बिताए थे, जिसे उनकी तपःस्थली भी कहा जा सकता है और जहां मां गंगा की लहरों में उन्होंने अपने पार्थिव शरीर का परित्याग कर ब्राह्मी स्थिति को प्राप्त किया था, मिशन के लिए भूमि की तलाश में निकले, तो देहरादून से मसूरी मार्ग की ओर चल दिए। लोगों ने बताया कि इसी मार्ग से स्वामी राम ने गंगोत्री आदि की यात्रा की थी। आखिर उन्हें एक स्थान ने आकर्षित किया, जिसे आस-पास के ग्रामीण ‘मेम की कोठी’ के नाम से पुकारते थे। स्वामी जी के भक्तों ने इसे खरीदा और यहीं सन् 1948 में स्वामी रामतीर्थ मिशन की स्थापना की गई। तभी से यह मिशन के मुख्य केन्द्र के रूप में विविध प्रकल्पों द्वारा ‘सर्वभूतहितेरता:’ के अपने आदर्श को साकार रूप देने में सतत रूप से तत्पर है।
किसी से बिना किसी अपेक्षा के, बिना किसी भेदभाव के, आज जबकि समय के परिवर्तन के साथ बड़ी-बड़ी संस्थाओं ने अपने मूलरूप में, आर्थिक संदर्भों में, परिवर्तन कर लिया है, ‘स्वामी रामतीर्थ मिशन’ ने अपनी गौरवमयी परंपरा को छोड़ा नहीं है, वह उसे पूरी तरह से निभा रहा है।