नई दिल्ली।
अपनी परंपरा के अनुसार पवित्र मंत्र ॐ से अंकित ध्वजा को फहराने के बाद रानीबाग मिशन के स्थापना दिवस के दूसरे दिन का शुभारंभ हुआ। प्रार्थना और भक्ति गीत ने रामप्रेमियों को भाव समाधि में स्थित कर दिया।
मंच से उद्बोधन करते हुए मानस मर्मज्ञ श्री प्रह्लाद मिश्र जी ने कहा कि कर्मयोगी हो, भक्त हो याकि ज्ञान का पथिक-सबको अपने बढ़ते कदमों के बारे में सदैव सजग रहने की आवश्यकता है कि उनकी दिशा तो ठीक है। यही है व्यवहार की शुद्धि अर्थात् व्यवहार में वेदान्त। मिश्रजी ने हनुमानजी के चरित्र के माध्यम से ज्ञान, भक्ति और ज्ञान के उन महत्वपूर्ण सूत्रों की चर्चा भी कि जिन्हें स्वामी राम ने सफलता के आध्यात्मिक नियम कहा है।
प्रह्लाद जी का कहना था कि सुन्दरकाण्ड में हनुमान जी के कार्यों को देख कर लगता नहीं है कि उन्होंने कोई धर्मनीति के अनुसार ऐसा कार्य किया हो जो सुंदरता की परिभाषा में आता हो। किसी की वाटिका को उजाड़ना, किसी के पुत्र को मारना, पूरे नगर को फूंक डालना, इतना ही नहीं, राक्षसियों के मन में इतना भय पैदा कर देना कि उनके गर्भ गिर जाएं-यह तो जघन्य अपराध, पाप की श्रेणी में आता है। लेकिन इस पाप को निष्पाप की सर्वोच्च स्थिति प्रदान करना उसी समझ का परिणाम है, जिसे वेदान्त के आचार्य आसक्ति रहित कर्म कहते हैं। श्री कृष्ण इसे प्रवृत्ति करते हुए निवृत्ति की कला कहते हैं।
इस अवसर पर काका हरिओम् जी ने महापुरुषों के उस सत्य संकल्प का विवेचन किया जिसके परिणामस्वरूप असंभव भी संभव हो जाता है। गोविन्द धाम के कण कण में महापुरुषों के विचारों की तरंगों का आज भी अनुभव किया जा सकता है। पूज्या माता मेलां देवी जी त्याग तथा स्वामी गोविन्द प्रकाश जी महाराज की प्रेरणा के पीछे एकमात्र यही सोच थी कि आनेवाली पीढ़ी सत्संग का लाभ उठा कर खुद भी सुखी रहें और प्राणिमात्र के बीच सुख बिखेरे।
काकाजी ने उस निष्ठा की बात भी की जो सामान्य रूप से किसी परंपरा को माननेवालों में देखने को नहीं मिलती, जिसका निर्वाह मल्होत्रा परिवार आज भी अपनी गरिमा से कर रहा है।
काकाजी का उपस्थित रामप्रेमियों से विशेष आग्रह था कि वह बादशाह राम के साहित्य को अपने जीवन में स्थान दें। इसी से स्वामी रामतीर्थ मिशन की विलक्षणता का पता चलेगा। ‘मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि इसका कोई सानी नहीं है।’
अपने समापन भाषण में स्वामी शिवचंद्र दास जी महाराज ने कहा कि बादशाह राम के इष्टदेव श्रीकृष्ण थे, जिन्हें प्रेम का साक्षात् विग्रह कहा जाता है। इसीलिए आत्म साक्षात्कार का फल स्वामी राम ने प्रेम को माना। प्रेम का जागरण जीव में तभी होता है, जब उसमें भक्ति परिपक्व हो जाती है और जब यह घटना होती है,तब जीव जीव नहीं रहता परमात्मा बन जाता है-स्वामी राम के शब्दों में, ‘जो तू है सो मैं हूं,जो मैं हूं सो तू है।’
इसी सिद्धांत को वैष्णव आचार्यों ने तस्यैवाहं और तवैवाहं -इन शब्दों द्वारा कहा है।
स्वामी जी ने उन सभी का विशेष रूप से धन्यवाद किया, जिन्होंने सक्रिय रूप से इस महोत्सव को सफल बनाने में अपना सहयोग दिया। स्वामी जी ने स्वामी रामतीर्थ मिशन, देहरादून के वर्तमान अध्यक्ष श्री ललित जी मल्होत्रा के समर्पण का जिक्र करते हुए दिल्ली मिशन की प्रधाना श्रीमती सुनीता जी मल्होत्रा को अपनी प्रेरणा का स्रोत बताया।
इस अवसर पर मंच का कुशल संचालन किया दिल्ली मिशन के उपप्रधान श्री रामप्रकाश जी ढींगरा ने।