सुप्रभातम्: स्वामी रामतीर्थ और काला नाग

गणित के शिक्षक प्रोफेसर तीर्थराम ने शिक्षण के बजाय आध्यात्म का जीवन जीना पसंद किया। मशहूर किताब ‘इन वुड्स ऑफ गॉड– रिएलाइजेशन’ के पांच खंडों में उनके कुछ प्रेरक प्रवचन संकलित हैं। स्वामी रामतीर्थ ने 1903 से 1906 तक अपने चमत्कारी व्यक्तित्व से भारत, जापान, मिस्र, अमेरिका सहित कई देशों को चमत्कृत कर दिया था। लाहौर के शासकीय महाविद्यालय के गणित के प्राध्यापक की नौकरी को तिलांजलि देकर वह प्राचीन भारत की संस्कृति और दर्शनों की व्याख्या करने के लिए विदेश भी गए थे। जापान के लिए वह वेदांत और बौद्ध धर्म के सच्चे उपदेशक थे, तो प्रशांत महासागर से अटलांटिक महासागर तक फैले अमेरिका के लिए वह पूर्वी दार्शनिक विचारों, करुणा और स्नेह के प्रतीक थे। स्वामी रामतीर्थ परब्रह्म तक पहुँच चुके थे। ऐसे ब्रह्मऋषि स्वामी रामतीर्थ के इशारे पर प्रकर्ति चला करती थी। लेकिन रामतीर्थ जी साधारण मानव की तरह हमेशा सिद्धि और चमत्कारों के प्रदर्शन से दूर ही रहे। 

Uttarakhand

हिमशिखर धर्म डेस्क

प्रोफेसर तीर्थराम के कमरे के गर्भगृह में एक भयंकर काला नाग रहा करता था। वह बिल में थोड़ा सा मुँह चमकाता था। जब भी प्रोफेसर तीर्थराम के भोजन का समय होता, ये अपने इस परम प्रिय काले नाग के लिए एक बेला भरकर दूध ठंडा करते। नाग बिल से निकलकर दूध पीता। फिर मस्ती में अपना फण फैला देता। प्रोफेसर तीर्थराम बड़े आनंद के साथ अतीव निर्भय भाव से उसके फण पर हाथ फेरते हुए कहते-तू काला है, वैसा ही मेरा प्रिय कृष्ण भी काला था। तुझे देख मेरे कृष्ण की स्मृति ताजी हो जाती है। ‘नाग उनका प्यार लेता हुआ बिल में प्रविष्ट हो जाता, तब प्रोफेसर तीर्थराम भोजन करते। यह प्रोफेसर तीर्थराम का नित्य नियम था। एक तीन दिन तक वह काला नाग बिल से मुंह तो थोड़ा सा चमकाता रहा, किंतु न तो बाहर ही आया और न दूध ही पीया। पर दूध नित्य नियम के अनुसार बेले में ठंडा कर रखा जाता। जो भोजन का नियत समय था, उस समय प्रोफेसर तीर्थराम नाग की प्रतीक्षा करते। वह जब नहीं निकलता तो स्वयं भी बिना भोजन किए ही उठ जाते।

‘उनके चाहने वालों में इसका हल्ला हो गया स्वभाव के प्रोफेसर साहिब तीन दिन से प्रतिदिन अपने प्रिय सर्प के दूध पीने की प्रतीक्षा करते हैं। लेकिन न वह दूध पीता है और न ये भोजन करते हैं।

‘चौथे दिन भोजन के समय सभी एकत्रित होकर प्रोफेसर तीर्थराम से कहने लगे प्रोफेसर साहब। यह तिर्यक योनि का तामसी प्राणी जो जहर मुख में लिए फिरता है, यह प्रेम को क्या जाने ? जिसके लिए आप तीन दिन से भोजन नहीं कर रहे हैं। घर में घूमकर रात-विरात में आहार कर लेता होगा। इस कारण आपके भोजन के समय दूध नहीं पीता। जब उनके प्यारे सर्प के लिए ऐसे अनेक वचन कहे तो स्वामी राम असह्य हो गए। वे बड़े दर्द भरे स्वर में कहने लगे-

अरे लोगों तुम्हें क्या है, या वे जाने या मैं जानूं।

वो मेरे खून का प्यासा, मैं उसके दर्द का मारा,

दोनों का पंथ है न्यारा, या वो जाने या मैं जानूं ।

इस प्रकार गाते-गाते शरीर में एक प्रकार की बिजली सनसनाती जाती थी। प्रेम का आवेग आखिर उस स्थिति तक पहुंच गया, जहाँ मृत्यु भी अमरत्व का चिह्न बन जाती है। झट यह मुख से निकला-

मुवा आशिक है द्वारे पर, अगर वाकिफ नहीं दिलवर।

 वो जाने या मैं जानूं।

‘फिर झट अपना सिर सर्प के बिल के सामने उसके मुख पर रख दिया-यदि तू नाराज है तो से अभी भले ही मेरा अंत कर दे, पर तू प्रसन्न हो जा।

‘यह तो स्वामी रामतीर्थ ही जाने कि वह सर्प उनका क्या था। भले ही वह संसार की दृष्टि में तिर्यक् योनि का प्राणी था। दुनिया क्या समझ सकती थी। जिसे अपना ही भेद नहीं मालूम, वह दूसरे का भेद क्या जान सकता है? मेरा यह अनुमान अवश्य है कि भगवान कृष्ण ही सर्प रूप धरकर उन्हें अपनी अखंड स्मृति की मस्ती दिया करते थे। जिस मस्ती में आकर वे उसके फण पर हाथ फेर-फेरकर उस समय तक कृष्ण को याद करते रहते थे, जब तक कि वह बिल में प्रविष्ट नहीं होता था। स्वामी रामतीर्थ के इस प्रेम भरे त्याग को नाग बर्दाश्त न कर सका। झट बिल से निकल उनके गले से लिपट उनके सिर पर अपने फण को छत्रस्थ कर लिया। यह एक प्रकार से बादशाही की सूचना थी। ठीक वैसा ही हुआ। उनके ग्रंथ – ‘रामबादशाह के हुक्मनामे’ इस शीर्षक से भी प्रकाशित हुए हैं। इस घटना के पश्चात् उनका यह प्रेम पात्र फिर कभी न रूठा, सदा समय पर दूध पिया करता, प्रोफेसर तीर्थराम से रोज फण पर हाथ फिरवाया करता और समय में बिल में चला जाता। किंतु जब प्रोफेसर तीर्थराम संन्यास लेने वाले थे, तो उसके चार दिन पहले घर से चला गया। इससे प्रतीत होता है कि यह कोई देवता था। जो स्वामी रामतीर्थ की रक्षा के लिए सर्प रूप धारण कर उनके पास रहता था।”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *