स्वामी रामतीर्थ मिशन: स्वामी हरिओम् जी और डा. किशोर दास स्वामी जी का स्मृति दिवस संपन्न, राम प्रेमियों ने भक्ति भाव से किया नमन

देहरादून।

Uttarakhand

अपने निश्चित कार्यक्रम के अनुसार वैदिक मंत्रोच्चारण की पवित्र ध्वनि के बीच ब्रह्मलीन स्वामी हरिओम् जी महाराज एवं स्वामी गोविन्द प्रकाश जी महाराज की समाधियों का वैदिक कर्मकांड के अनुसार अभिषेक और पूजन किया गया। रामप्रेमियों के द्वारा किए गए जयघोष से राजपुर आश्रम का परिसर गुंजायमान हो उठा। हवन तथा सुंदरकांड के पाठ और डाॅ किशोर दास जी महाराज के चित्र पर माल्यार्पण करने के बाद उपस्थित मातृमंडली ने अपने भक्तिभाव पूर्ण भजनों के द्वारा पुष्पांजलि सभा का आरंभ किया।

विदित हो कि ब्रह्मलीन स्वामी डाॅ किशोर दास जी महाराज के इष्ट अंजनीपुत्र विघ्नहर्ता हनुमान जी थे। योगाचार्य हरीश जौहर जी ने सुंदर भक्ति गीत के द्वारा स्वामी जी के साथ बीते अपने कुछ पलों का स्मरण करते हुए कहा कि ऐसे महान पुरुष, जिनमें किसी भी प्रकार का अहंकार न हो, इस धरा-धाम पर बहुत पुण्य के फल से प्राप्त होते हैं।

आचार्य काका हरिओम् जी ने अपने उद्बोधन में स्वामी हरिओम् जी महाराज के अंतिम दिनों की चर्चा करते हुए बताया कि स्वामी जी ने अपने सद्गुरुदेव की आज्ञा का पालन करते हुए परमहंस स्वामी रामतीर्थ जी महाराज के व्यावहारिक वेदांत का प्रचार-प्रसार करते हुए अपने संपूर्ण जीवन की आहुति दे दी। लगता है कि उनके जीवन का उद्देश्य ‘राम काज कीन्हे बिनु, मोहि कहां विश्राम’ था। चिकित्सकों के मना करने पर कि उन्हें अब मंच से भाषण नहीं देने चाहिए, कम से कम बोलना चाहिए, स्वामी जी ने रोहतक में जाकर वेदांत सम्मेलन में अपना उद्बोधन दिया। इसके बाद उनका गला पूरी तरह से जवाब दे गया। एक छोटा सा गले का आपरेशन निमित्त बना और किसी शायर की ये पंक्तियां मानो सिद्ध हो गईं- ‘बड़े शौक से सुन रहा था जमाना, तुम्हीं सो गए दास्तां कहते-कहते।’ यह घटना 4 दिसंबर सन् 1955 में घटी थी। इसके बाद 6 दिसंबर को स्वामी जी के पार्थिव शरीर को यहीं राजपुर आश्रम के परिसर में भू-समाधि दी गई। काका जी का मानना था कि यदि भाव और श्रद्धा हो तो आज भी उनकी उपस्थिति को आश्रम के कण-कण में अनुभव किया जा सकता है। वे आज भी परोक्ष रूप से हम सभी रामप्रेमियों को राम के आदर्शों पर चलने की प्रेरणा दे रहे हैं।

स्वामी रामतीर्थ मिशन के तृतीय परमाध्यक्ष डाॅ किशोर दास स्वामी जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए काका जी कहना था कि विद्वत्ता और सौम्यता का ऐसा अद्वितीय सम्मिश्रण बहुत कम देखने को मिलता है। स्वामी जी जहां एक ओर भारत के दार्शनिकों में एक थे, वहीं उनकी सादगी और सरलता से परिपूर्ण आचरण किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम था। एक बार जो उनसे मिलता, वह उनका अपना हो जाता। सिद्धांतों के बारे में जहां उनकी दृष्टि प्राचीन परंपराओं से जुड़ी हुई थी, वहीं वह उन्हें आज के संदर्भ में देखने पर भी जोर दिया करते थे। इसीलिए उनकी वाणी में प्राचीनता और आधुनिकता का अद्भुत समन्वय था।

बहन अमृत जी ने अपने उद्बोधन में स्वामी राम से लेकर डाॅ किशोर दास स्वामी जी तक की पावन परंपरा का नाम लेते हुए कहा कि हम सभी सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें एक ऐसे महापुरुष का सान्निध्य मिला, जो शास्त्रों के ज्ञाता होने के साथ ही परमात्मा के प्रति पूर्ण रूप से निष्ठावान हैं। उन्होंने अपने अतीत का स्मरण करते हुए बताया कि उन्हें यह सुअवसर प्राप्त हुआ कि स्वामी हरिओम् जी महाराज से लेकर डाॅ किशोर दास स्वामी जी तक की पावन परंपरा का वह दर्शन कर पाई। वैसे तो प्रत्येक महापुरुष स्वयं में अद्वितीय हुआ करता है लेकिन यह परंपरा इसलिए बाकी से हटकर है, क्योंकि इसमें सदैव तत्त्व ज्ञान को अपने जीवन का लक्ष्य बनाए रखा। प्रत्येक महापुरुष ने हमें यही उपदेश दिया कि खुद को बदलो, सारी सृष्टि बदल जाएगी।

 

टपकेश्वर महादेव मंदिर के श्रीमहंत स्वामी कृष्ण गिरि जी महाराज ने अपने प्रवचन में आदि शंकराचार्य की अद्वैत परंपरा को स्वामी रामतीर्थ मिशन के साथ जोड़ते हुए कहा कि इस नाते उनका संबंध मिशन के साथ अत्यंत गहरा है। उन्होंने अपने उद्बोधन में स्वामी हरिओम् जी महाराज के नाम को लेकर उसकी विशेषता बताते हुए कहा कि जो उनके बारे में उन्होंने जाना है उससे लगता है कि प्रणव उनके जीवन की साधना का आधार था। वह स्वयं ओउम् मय हो चुके थे। गिरि जी महाराज ने उपस्थित रामप्रेमियों को कहा कि उन्हें चाहिए कि वे अपने सद्गुरुओं द्वारा दिए गए उपदेशों को अपने जीवन के साथ जोड़े।

मंच का संचालन करते हुए डा शिवचंद्र दास जी महाराज ने कहा कि साधु समाज में रहते हुए लगभग् 20 वर्ष हो गए हैं, लेकिन ऐसा महापुरुष मेरे देखने में अभी तक नहीं आया, जैसा व्यक्तित्व स्वामी जी का था। उनकी दृष्टि में सब समान थे। स्वामी राम के शब्दों में यदि कहें तो सब स्वामी जी के थे, इसीलिए स्वामी जी सबके थे और आज भी सबके हैं। वे कहीं नहीं गए हैं बल्कि आज भी सबके हृदय में निवास कर रहे हैं। इन शब्दों में उन्होंने दोंनों महापुरुषों के प्रति भावांजलि प्रकट की।

स्वामी रामतीर्थ मिशन देहरादून के अध्यक्ष डा. ललित जी मल्होत्रा अस्वस्थ होने के कारण यद्यपि इस कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो पाए, लेकिन उन्होंने दूरभाष के माध्यम से इन महापुरुषों के प्रति, जिनके ऋण से मुक्त होना असंभव है, अपनी पुष्पांजलि समर्पित की। इस अवसर पर स्थानीय रामप्रेमियों के अलावा दिल्ली से भी रामप्रेमियों ने आकर अपने भाव पुष्प समर्पित करते हुए इन महापुरुषों के प्रति अपनी कृतज्ञता का ज्ञापन किया। इस अवसर पर स्वामी रामतीर्थ कन्या विद्यालय राजपुर की शिक्षिकाओं और छात्राएं भी सम्मिलित हुईं।

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