हिमशिखर धर्म डेस्क
काका हरिओम्
स्वामी रामतीर्थ मिशन, देहरादून के प्रतीकरूप वार्षिक सम्मेलन का आज समापन दिवस था. विदित हो कि कोविड महामारी के कारण इस बार यह आयोजन online किया गया था. स्वाध्याय के प्रथम सत्र में रामप्रेमियों को प्रेरित किया गया कि वह घर के कोने में ही सही पुस्तकों के लिए जगह जरूर बनाएं अर्थात् जो स्थान घर में मंदिर का है, वही स्थान सद्ग्रंथों का होना चाहिए. स्वाध्याय साधक को ठोस आधार देता है.
हममें से प्रत्येक को स्वामी राम के जीवन-दर्शन की जानकारी होनी चाहिए. इसके बिना हम कैसे स्वयं को रामप्रेमी कह सकते हैं. आप स्वामी रामतीर्थ मिशन के प्रतिनिधि हैं, आपसे ही इसकी गरिमा है. आपका आचरण ही आपके मिशन का प्रचार-प्रसार करने का महत्वपूर्ण टूल है. राम से जुड़कर राम बनिए.
सम्मेलन के दूसरे सत्र में श्रद्धेया बहन अमृत जी ने स्वामी राम द्वारा समझाए सफलता के उन आध्यात्मिक नियमों की चर्चा की, जिनका विश्लेषण स्वामी जी ने जापान और अमेरिका में विशेष रूप से किया था. स्वामीजी ने यह दावा किया है कि जो कर्म को कर्म के लिए करता है, जिसके जीवन में आत्मत्याग की भावना है, जो सबसे प्रेम करता है, जो दूसरों की ओर सहायता के लिए नहीं तकता है अर्थात् जो पूर्णरूप से स्वावलंबी है, असफलता उसके पास फटक नहीं सकती है. स्वामी जी कहते हैं कि
– तू एकदिन भी जी
शहंशाह बनके जी
मत पुजारी बन
स्वयं भगवान् बन के जी.
बहन अमृत ने गुरुवाणी के माध्यम से उस मस्ती का जिक्र किया जो आत्मा में रमण करने वाले महापुरुषों में सहज रूप से हुआ करती है.
इस अवसर पर बहन ने स्वामी हरिॐ जी महाराज और अपनी माताजी का भी स्मरण किया. बहन का कहना था कि मुझे रामतीर्थ मिशन में आकर हमेशा यही लगता है कि मैं अपने मायके में हूं. स्वामी गोविन्द प्रकाश जी, स्वामी अमरमुनि जी और स्वामी किशोर दास जी महाराज ने मुझे सदैव पिता-सा वात्सल्य ही दिया है. मैं उनके प्रति कृतज्ञ हूं. रामचरणों में प्रार्थना है कि वह हमें शक्ति दें कि उनके दिखाए गए मार्ग पर हम चल सकें. सब स्वस्थ हों यही मेरी शुभकामना है.
अपने समापन उद्बोधन में स्वामी रामतीर्थ मिशन, देहरादून के वर्तमान अध्यक्ष डॉ. ललित जी मल्होत्रा ने सभी रामप्रेमियों को धन्यवाद दिया क्योंकि उनके प्रेम और सहयोग के बिना यह संभव नहीं है कि मिशन अपने लक्ष्य को प्राप्त करे. उन्होंने कार्यकारिणी के सदस्यों को अपने बाजू बताते हुए कहा कि उन्हीं के सहयोग से मिशन अपनी गरिमा को स्थापित किए हुए है. स्वामी शिवचन्द्र दास जी और श्री राजेश पैन्यूली के कार्यों की भी ललित जी ने सराहना की. उन्होंने अत्यन्त विनम्रतापूर्वक मिशन की पावन परंपरा के महापुरुषों का स्मरण किया और कहा कि हमारा परिवार सेवक है मिशन का तथा मेरा घर मेरा नहीं है, यह शाखा है मिशन की.
उन्होंने उम्मीद जतायी कि जल्दी सब ठीक होगा, हम सब मिलेंगे.