सुप्रभातम : परमहंस स्वामी रामतीर्थ से सीखें मानसिक शांति पाने का तरीका

परमहंस स्वामी रामतीर्थ का बचपन कई परेशानियों से भरा हुआ था। भूख और आर्थिक बदहाली के बाद भी उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की। शिक्षा प्राप्त करने के बीच में उन्होने किसी चीज को रास्ते में नहीं आने दिया है। स्वामी रामतीर्थ देश के महान संत, देशभक्त, कवि और शिक्षक भी थे, उनका पूरा जीवन प्रेरणादायक रहा है।

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हिमशिखर धर्म डेस्क

भारत के महान संत स्वामी रामतीर्थ ने अपनी विदेश यात्रा के दौरान अमरीका के कई जाने-माने विश्वविद्यालयों व अन्य संस्थानों में प्रवचन दिए। उनके विचार लोगों को मंत्रमुग्ध कर देते थे। उन्हें सुनने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी। स्वामी रामतीर्थ अपनी विदेश यात्रा के दौरान अमेरिका में लगभग दो वर्ष तक रहे। इस दौरान उन्होंने कई सामाजिक और राजनीतिक संस्थाओं सहित जाने-माने विश्वविद्यालयों में प्रवचन दिए। उनके विचार लोगों को मंत्रमुग्ध कर देते थे। उन्हें सुनने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी। एक दिन उनसे मिलने एक ऐसी महिला आई, जिसे शांति और सुख की तलाश थी। वह बहुत दुखी थी क्योंकि कुछ दिन पहले ही उसके बेटे की मृत्यु हो गई थी।

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महिला ने स्वामी जी से कहा, ‘मैं बहुत दुखी हूं और किसी भी कीमत पर सुख पाना चाहती हूं।’ इस पर स्वामी रामतीर्थ ने कहा, ‘प्रसन्नता और शांति पैसों से खरीदी जाने वाली वस्तुएं नहीं हैं। फिर भी, यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हें इसका मार्ग बता सकता हूं।’ स्वामी जी ने उस श्वेत महिला को सलाह दी कि वह किसी नीग्रो बच्चे को गोद ले और उसे अपने बच्चे की तरह पाले, तो उसे शांति मिल सकती है। यह सुनकर वह महिला दुखी मन से बोली कि यह मुझसे हो पाना मुश्किल है। दरअसल, श्वेत महिला के लिए किसी अश्वेत बच्चे को अपनाना तत्कालीन अमेरिकी समाज में काफी चुनौतीपूर्ण था।

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स्वामीजी ने कहा कि ‘यदि तुम ऐसा नहीं कर सकती हो, तो शांति की आशा छोड़ दो।’ आखिरकार महिला ने सोचा कि स्वामीजी की सलाह मान ही लेती हूं। उसने एक नीग्रो बच्चे को गोद ले लिया। सचमुच में कुछ दिन बाद महिला ने महसूस किया कि स्वामीजी की राय एकदम सही थी। गोद लिए हुए नीग्रो बच्चे से उसके हृदय में ऐसी ममता उमड़ी कि वह प्रसन्न रहने लगी। स्वामीजी ने श्वेत और अश्वेत के भेद से रहित जो ममतामयी मंत्र शक्ति उस महिला को दी, वह बेहद चमत्कारी साबित हुई। उससे महिला को बहुत मानसिक शांति प्राप्त हुई।

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