भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक थे स्वामी रामतीर्थ : कुलपति डा. ध्यानी

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नई टिहरी। संसार भर में भारतीय संस्कृति की पताका फहराने वाले महान गणितज्ञ संत स्वामी रामतीर्थ की जयंती पर ऑनलाइन वेदांत गोष्ठी आयोजित की गई। इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि स्वामी रामतीर्थ के अनुपम त्याग, तपस्या और ज्वलन्त देशभक्ति को भुलाया नहीं जा सकता है।

गुरुवार को भारत के आध्यात्मिक इतिहास के सुविख्यात गणितज्ञ संन्यासी स्वामी रामतीर्थ के अवतरण दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित ऑनलाइन वेदांत गोष्ठी में मुख्य अतिथि श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ पीपी ध्यानी ने कहा कि रामतीर्थ का जीवन वेदांत का अनुवाद था। उनके महान व्यक्तित्व में देशप्रेम और मानवप्रेम की महक थी। कहा कि वेदांत की दृष्टि से विश्व ब्रह्मांड की परमशक्ति को ब्रह्म, चैतन्य, आत्मा, सत्, चित्, आनंद आदि कहा जाता है। वेदांत के मार्ग के अनुसार कर्मयोग, भक्तियोग, राजयोग और ज्ञानयोग के मार्ग का सहारा लेकर मानव जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

तीर्थ रक्षा सम्मान समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगी राकेश नाथ ने कहा कि स्वामी रामतीर्थ का लक्ष्य अंधकार के गर्त में पड़े भारत को नई दिशा की ओर ले जाना था। सच्चे अर्थों में भारत का उद्धार उनके बताए हुए मार्ग का अनुशीलन करने से हो सकता है।

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गंगोत्री मंदिर समिति के सचिव दीपक सेमवाल ने कहा कि स्वामी रामतीर्थ की मां गंगा के प्रति अटूट श्रद्धा थी। कहा कि वेदांत को कार्यरूप में परिणत करने ही का नाम सफलता की कुंजी है। प्रत्येक साइन्स की तरह वेदांत के भी दो अंग है, सैद्धांतिक और व्यावहारिक।

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आयोजक काका हरिओम् ने कहा कि स्वामी रामतीर्थ कहते थे कि वेदांत कोई एक मत नहीं, यह असीम है। जैसे शरीर में प्राण, वैसे सृष्टि में वेदांत। वेदांत के बिना संसार अंधकारमय और नरक के समान है। लेकिन वेदांत के व्यावहारिक अभ्यास से ही संसार उज्ज्वल स्वर्ग बन सकता है।

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