रक्षाबंधन पर आज करें दसविध स्नान, मिलेगा लाभ

पंडित हर्षमणि बहुगुणा

Uttarakhand

रक्षाबंधन के पर्व पर 31 अगस्त को दसविध स्नान अवश्य करें, लाभ मिलोगा —

1-भस्म स्नान – उसके लिए यज्ञ की भस्म थोड़ी-सी लेकर ललाट पर, थोड़ी शरीर पर लगाकर स्नान किया जाता है। यज्ञ की भस्म अपने यहाँ तो है या नहीं पर आश्रम में मिलेगी, फिर भी समझो आप अपने घर पर किसी को बताना चाहें की यज्ञ की भस्म थोड़ी लगाकर श्रावणी पूर्णिमा को दसविध स्नान में लेप करना है तो वहाँ यज्ञ की भस्म कहाँ से आयेगी अतः गौचंदन धूपबत्ती या कोई भी लोवान, गुगल या अन्य कोई घरों में जलाते ही हैं। साधक शाम को गौचंदन धूपबत्ती जलाकर जप करें अपने इष्टमंत्र, गुरुमंत्र का जलते जलते उसकी भस्म तो बचेगी। तो जप भी एक यज्ञ है। अतः गौचंदन की भस्म होगी यज्ञ की भस्म पवित्र मानी जाती है। वैसे गौचंदन है वो, देशी गाय के गोबर, जड़ीबूटी और देशी घी से बनती है। तो यह है पहला भस्म स्नान है ।

2- मृत्तिका स्नान पवित्र मिट्टी
3-गोमय स्नान – गोमय स्नान माना गौ का गोबर उसमें थोड़ा गोझरण ये मिला दिया उसका स्नान, (उसका मतलब थोड़ा ले लिया और शरीर को लगा दिया ) क्यों वेद ने कहा इसलिए गौमाता के गोबर में (देशी गाय के) लक्ष्मी का वास माना गया है। गोमय वसते लक्ष्मी पवित्रा सर्व मंगला । स्नानार्थम् सम संस्कृता देवी पापं हरो मय।। तो हमारे भीतर भक्तिरूपी लक्ष्मी बढ़ती जाय, बढ़ती जाय जैसे गौ के गोबर में लक्ष्मी का वास है वह हमने थोड़ा लगाकर स्नान किया, हमारे भीतर भक्ति रूपी संपदा बढ़ती जाय। गीता में जो दैवी लक्षणों के २६ लक्षण बताए हैं वो मेरे भीतर बढ़ते जाय। ये तीसरा गोमय स्नान है

4-पंचगव्य स्नान – गौ का गोबर, गोमूत्र, गाय के दूध के दही, गाय का दूध और घी ये पंचगव्य। कई बार आपको पता है पंचगव्य पीते हैं। तो पंचगव्य स्नान थोड़ा सा ही बन जाये तो बहुत बढिया नहीं बने तो गौ का गोबरवाला तो है। अर्थात् पाँच तत्व से हमारा शरीर बना हुआ है वो स्वस्थ रहें, पुष्ट रहें, बलवान रहें ताकि सेवा और साधना करते रहें, भक्ति करते रहें ।

5-गोरज स्नान – गाय के पैरों के नीचे की मिट्टी थोड़ी ले ली, और वो लगा ली। ‘गवा खुरेम’ यह वेद में आता है इसका नाम है दशविध स्नान में एक विध। जो रक्षाबंधन के दिन किया जाता है। गवां खुरेम निर्धूतं यद रेनू गग्नेगतं। सिरसा तेन सम्येते महापातक नाशनम्।। अपने सिर पर वो गाय की खुर की मिट्टी लगा दी तो महापातक नाशनम् ये वेद कहते हैं ।

6-धान्यस्नान – जो हमारे गुरुदेव सप्तधान्य स्नान की बात बताते हैं। वो सब आश्रमों में मिलता है। गेंहूँ, चावल, जौ, चना, तिल, उड़द और मूंग ये सात चीजे ही सप्त धान्यस्नान बताया है। धान्योषधि मनुष्याणां जीवनं परमं‌ स्मरेत, तेन स्नानेन देवेश मम पापं व्यपोहतु। सप्तधान्य स्नान ये भी पूर्णिमा के दिन लगाने का विधान है ।

7- फल स्नान – वेद भगवान कहते हैं फल स्नान मतलब कोई भी फल का थोडा रस लगा दिया। और कोई नहीं तो आँवला बढ़िया फल है। आँवला हरा तो मिलेगा नहीं तो थोड़ा आँवले का पाउडर ले लिया और लगा दिया गया हो वह फल स्नान। मतलब हमारे जीवन में अनंत फल की प्राप्ति हो और सांसारिक फल की आसक्ति छूट जाय। इसलिए आज पूर्णिमा को हे भगवान फल के रस से थोड़ा स्नान कर रहे हैं। किसी को और फल मिल जाय और थोड़ा लगा दिया जाय तो कोई घाटा नहीं हैं ।

8 सर्वोषधि स्नान – सर्वोषधि माने आयुर्वेदिक औषधि खाना नहीं। इस स्नान में कई जड़ीबूटी आती हैं। उसमे दूर्वा, सरसों, हल्दी, बेलपत्र ये सब डालते हैं उसमें वो थोड़ा-सा पाउडर लेके शरीर पर रगड़ के स्नान किया जाता है। मेरी सब इन्द्रियाँ आँख, कान, नाक, जीभ,त्वचा ये सब पवित्र हो। इसमें सर्वोषधि स्नान, और मेरा मन पवित्र रहें| मेरे‌ मन में किसी के प्रति बुरे विचार न आयें ।

9-कुशोदक स्नान – कुश थोड़ा पानी में मिला दिया और थोड़ा पानी हिला दिया। क्योंकि जो अपने घर में कुश रखते हैं ना तो उनके पास कोई मलिन आत्माएं आ सकती। भूत, प्रेत आदि का जोर नहीं चलता। कुश क्या है ? जब भगवान का धरती पर वराह अवतार हुआ था, तो उनके शरीर से रोंगटे उखड़कर जमीन पर गिरने लगे वही आज कुश के रूप में पाये जाते हैं, वो परम पवित्र है। वो कुश जहाँ पर हो वहाँ पर मलिन आत्मा नहीं आती! हों तो भाग जाती हैं। अतः कुश पानी में थोड़ा हिला दिया और प्रार्थना कर दी की, मेरे मन में जो मलिन विचार हैं, गंदे विचार हैं या कभी कभी आ जाते हैं वो सब भाग जाये। हरि ॐ … हरि ॐ … हरि ॐ ,… करके उस पानी से नहा लिये।

10-हिरण्य स्नान – हिरण्य स्नान माने अगर अपने पास कोई सोने की चीज है। कोई सोने का गहना वो बाल्टी में डाल दिया, हिला दिया और स्नान कर लिया। हिलाने के बाद वो निकाल लेना बाल्टी में पड़ा नहीं रहे।

ये दशविध स्नान वेद में बताये है, श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन किया जाता है। आप इसमें से जितने कर सकते हो उतने कर लेने चाहिए। कुछ भी न कर पायें तो जय सियाराम … कह दें प्रभु ! हमसे जितना हो सकता था वो किया और जब स्नान कर रहे हो तो ये श्लोक (मन्त्र) बोलें –
नमामि गंगे तव पाद पंकजं सुरासुरैः वंदित दिव्यरूपम् ।

भुक्तिचं मुक्तिचं ददासिनित्यं भावानुसारेन सदा नराणाम् ।।
गंगेच यमुनेचैव गोदावरी सरस्वती नर्मदे सिंधु काबेरी | जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
ॐ ह्रीं गंगाय ॐ ह्रीं नमः स्वाहा।।
तीर्थों का स्मरण करते हुये स्नान करें। तो ये बड़ा पुण्यदायी स्नान श्रावण पूर्णिमा (रक्षाबंधन) के दिन प्रभात को किया जाना चाहिये ऐसा वेद का आदेश है ।

हां एक विशेष अनुरोध है कि अपने इन तीज त्योहारों को पवित्र बनाने में विशेष सहयोग देने का कष्ट कीजिए। हमने अपने पर्वों पर नशीली वस्तुओं का सेवन कर उनकी महत्ता को समाप्त कर दिया है। रक्षाबंधन हो, दशहरा हो, दीप मालिका या होली जो मस्ती के लिए नहीं अपितु अपनी संस्कृति के महत्व को समझाने के लिए हैं। ब्राह्मणों को यजमान के हाथों पर रक्षा सूत्र बांधते समय यह भी ध्यान दिलाना होगा कि नशा नहीं, जीवन को सुरक्षित रखना आवश्यक है। बहिन अपने भाई को रक्षाबंधन बांधते समय यह भी कहें कि भैया जीवन में नशा नहीं करना चाहिए यह जीवन को नरक बना देता है। इस पर्व पर दशविध स्नान करना है मदिरा से नहीं, उपर्युक्त उपचारों से स्नान करना है। आशा है इस कुप्रवृत्ति पर अंकुश लगाना में बहिनों व आशीर्वाद देने वाले ब्राह्मणों का महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा। समाज सुधारकों को ही महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करना होगा और तभी समाज को एक सन्देश प्रेषित कर नई दिशा प्रदान की जा सकेगी।

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