हिमशिखर धर्म डेस्क
ओशो
सादृश्य के आते ही बड़ी करुणा होती है, बड़ी करुणा महाकरुणा होती है। अंग्रेजी में शब्द बहुत अच्छा है करुणा के लिए, कंपेशन। उसमें अगर आधे कम को हम अलग कर दें, तो पीछे पैशन रह जाता है। दो तरह के लोग हैं, पैसोनेट और कंपैसोनेट। पैशन यानी वासना और कंपेशन यानी करुणा। जब तक कोई आदमी कहता है कि मैं दूसरों से भिन्न हूं, तब तक वासना में जीएगा, पैशन में। और जब जानेगा कि मैं दूसरों के ही समान हूं, तो कंपैशन में प्रवेश कर जाएगा, करुणा में।
दो ही तरह के लोग हैं, वासना से जीने वाले और करुणा से जीने वाले। वासना में वे जीते हैं, जो अहंकार को केंद्र बनाते हैं। करुणा में वे जीते हैं, जो दूसरों के साथ सादृश्य को उपलब्ध हो जाते हैं।
सादृश्य अहंकार की मृत्यु है। और सादृश्य करुणा का जन्म है। सादृश्य यह खबर देता है कि दूसरा भी उतना ही कमजोर है, जितना कमजोर मैं। सादृश्य कहता है, दूसरा भी उतनी ही सीमाओं में बंधा है, जितना सीमाओ में मैं। मुझे भी किसी ने गाली दी है, तो क्रोध आ गया है। और अगर किसी दूसरे को भी गाली दी गई है, तो मैं कठोर न हो जाऊं। करुणा अपेक्षित है, अगर सादृश्य का थोड़ा बोध है।
लेकिन सादृश्य का बोध हमें नहीं है। और इस बोध को समझने से नहीं समझा जा सकता, इस बोध को जन्माने से ही समझा जा सकता है। इसका प्रयोग करना शुरू करें।
जब आप एक छोटे-से बच्चे को डांट रहे हैं बूढ़े होकर, तब आपको कभी भी ख्याल नहीं आता कि आप भी छोटे-से बच्चे थे। इसी तरह डांटे गए थे। और आपको यह भी ख्याल नहीं आता कि यह बच्चा कल इसी तरह बूढ़ा हो जाएगा। अगर बूढ़े को बच्चे में यह सादृश्य दिखाई पड़ जाए, तो इस दुनिया में बूढ़ों और बच्चों के बीच जो कलह है, वह विदा हो जाए। यह कलह विदा हो जाए। उस कलह की कोई जगह न रह जाए।
लेकिन यह दिखाई नहीं पड़ता है हम इसके लिए बिलकुल अंधे हैं। इसलिए हमारे जीवन में महादुख फलित होता है। लेकिन वह अति उत्तम योग और उसमें उपलब्ध होने वाली शांति फलित नहीं होती।