छलांग तो लगानी ही पड़ती है। साधारणतः जीवन में किसी बड़े निर्णय को लेने के बाद भी जब व्यक्ति उस दिशा में पहला कदम उठाने से डरता है तो उसे ऐसे ही समझाइश दी जाती है। तैरना सीखने के लिये भी तो पहले पानी में उतरना ही पड़ेगा ना? कहते ही हैं ना कि कितनी भी लम्बी यात्रा हो, प्रारम्भ तो पहले मजबूत कदम से ही होता है। यही सबसे महत्वपूर्ण होता है। यही वो छलांग का आधार है, जो सफलता की संगिनी बनती है।
रामायण के सुंदरकांड की घटना है। वानरों का दल सीता की खोज करते हुए दक्षिण दिशा में समुद्र तट पर पहुंच चुका था। उन्हें जानकारी मिली कि सीता जी लंका की अशोक वाटिका में हैं तो प्रश्न ये उठा कि लंका कौन जाएगा?
जामवंत, अंगद और सभी वानरों ने लंका जाने के लिए हनुमान जी की ओर देखा। हनुमान जी भी इस बड़े अभियान के लिए तैयार हो गए। राम जी की सेना के सबसे बूढ़े व्यक्ति जामवंत जी को प्रणाम करने के बाद हनुमान जी लंका की ओर छलांग लगाने के लिए तैयार थे।
हनुमान जी ने इधर-उधर देखा तो उनकी नजर समुद्र तट के एक छोटे से पहाड़ पर पड़ी। हनुमान जी उस पहाड़ पर चढ़ गए और पैरों का दबाव बनाकर जमकर छलांग लगा दी। हनुमान जी के दबाव से पहाड़ धंस गया और हनुमान जी उड़ गए।
बाद में हनुमान जी से लोगों ने पूछा, ‘आपने छलांग लगाने के लिए पहाड़ को ही क्यों चुना? आप तो जहां खड़े थे, वहीं से छलांग लगा सकते थे।’
हनुमान जी ने उत्तर दिया, ‘मैंने पहाड़ पर खड़े होकर छलांग इसलिए लगाई कि छलांग अगर लंबी लगाना हो तो आपका आधार मजबूत होना चाहिए। अगर आधार मजबूत नहीं होगा तो छलांग गड़बड़ा सकती है।’
सीख – हनुमान जी ने यहां हमें ये शिक्षा दी है कि किसी भी काम की शुरुआत करने से पहले हमें अपना आधार मजबूत कर लेना चाहिए यानी हमें काम से जुड़ा सारा होमवर्क अच्छी तरह कर लेना चाहिए। अगर होमवर्क ठीक से नहीं किया है तो कोई बड़ा काम हाथ में नहीं लेना चाहिए। जीवन में कई बार ऐसे प्रयोग करना पड़ सकते हैं, छलांग लगानी पड़ सकती है तो आधार हमेशा मजबूत बनाए रखना चाहिए। अगर नींव मजबूत नहीं होगी तो मकान भी कमजोर ही बनेगा। मनुष्य जीवन की नींव उसका बचपन है। तैयारियां बचपन से ही करनी चाहिए, तभी जीवन में बड़ी उपलब्धियां हासिल हो सकती हैं।