हिमशिखर खबर ब्यूरो
केदारनाथ: केदारनाथ के रक्षक के रूप में पूजे जाने वाले भगवान भैरवनाथ के कपाट आज शनिवार को विधिविधान के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। इस अवसर पर पूरा क्षेत्र बाबा भैरवनाथ के जयकारों से गूंज उठा।अब 27 अक्टूबर को केदारनाथ धाम के कपाट शीतकाल के छह माह के लिए विधि-विधान से बंद किए जाएंगे।
केदारनाथ धाम से लगभग एक किमी की दूरी पर भैरवनाथ का मंदिर स्थित है। भैरवनाथ को केदारनाथ धाम के क्षेत्र रक्षक के रूप में पूजा जाता है। प्रत्येक वर्ष शीतकाल के लिए भगवान केदारनाथ के कपाट बंद करने से पूर्व केदारनाथ के क्षेत्र रक्षक भैरवनाथ के कपाट बंद किये जाते हैं। मुख्य पुजारी टी. गंगाधर लिंग ने विश्व कल्याण के लिए यज्ञ-हवन किया। इसके बाद विधि-विधान के साथ शीतकाल के लिए भगवान भैरवनाथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए। मान्यताओं के अनुसार भगवान केदारनाथ के कपाट बंद होने की तिथि से पड़ने वाले पहले शनिवार या मंगलवार को भैरवनाथ के कपाट बंद किए जाते हैं।
बिना छत्त के स्थित है यह मंदिर
भूकुंड भैरव केदारनाथ मंदिर से आधा किमी दूर दक्षिण दिशा में स्थित है। यहां बाबा भैरव की मूर्तियां स्थापित हैं। लेकिन खास बात यह है कि मंदिर में कोई छत्त नहीं है। शीतकाल में जब धाम के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, तब भूकुंड भैरव ही केदारनाथ धाम की रखवाली करते हैं।
कौन हैं भगवान भैरव
भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला। यूं तो भगवान भैरव के 52 रूप प्रचलित हैं लेकिन 8 रूप मुख्य रूप से ज्ञात हैं। इनको संयुक्त रूप से अष्ट भैरव के नाम से जाना जाता है। भैरव भी भगवान शिव के स्वरूप हैं। लोक जीवन में भगवान भैरव को भैरू महाराज, भैरू बाबा आदि नामों से पुकारा जाता है। समाज में भैरव बाबा के चरित्र का भयावह चित्रण कर लोगों के मन में उनके प्रति एक डर और उपेक्षा का भाव भी देखने को मिलता है। दरअसल भैरव वैसे नहीं हैं जैसे कि उनका चित्रण किया जाता है। उनका चरित्र भी बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक है। उनका कार्य भगवान शिव की नगरी की सुरक्षा करना और दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों को दंड देना है।