जयंती पर विशेष : संस्कारों की महत्ता में सरदार वल्लभ भाई पटेल की अहं भूमिका

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पंडित हर्षमणि बहुगुणा


आज ऐसे महापुरुष की जयंती है जिसे हम लौह पुरुष के रूप में जानते हैं। भारतीय रियासतों को भारत गणराज्य में मिलाने का श्रेय भी सरदार पटेल को ही है। कर्त्तव्य के प्रति सजग आपके जीवन की इस घटना से आंका जा सकता है कि आप कितने सहिष्णु थे। एक दिन जब आप अदालत में एक फौजदारी मुकदमे की पैरवी कर रहे थे। मामला साधारण नहीं था, थोड़ी भी असावधानी निर्दोष व्यक्ति को फांसी दिला सकती थी।

जब वे जज के समक्ष अपने तर्क दे रहे थे, तभी एक व्यक्ति ने उन्हें एक कागज पकड़ाया उन्होंने उसे पढ़ा और जेब में रख दिया। मुकदमे की कार्यवाही समाप्त होने के बाद उनके साथी मित्र ने उनसे पूछा कि उस कागज में क्या लिखा था? तो सरदार पटेल ने बताया कि वह तार था और उसमें मेरी पत्नी की मृत्यु का समाचार था।

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उनके मित्र ने कहा कि इतनी बड़ी अनहोनी घटना घटी और आप जिरह (तर्क) में व्यस्त रहे। तो सरदार पटेल ने उत्तर दिया कि और करता भी क्या? पत्नी तो चली गई! क्या फिर उस व्यक्ति को भी मौत के मुंह में जाने देता? मेरी थोड़ी सी भी असावधानी उसे फांसी के फंदे तक पहुंचा सकती थी। ऐसे महापुरुष को शत शत नमन व भावभीनी श्रद्धांजलि समर्पित।

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हम अपने आदर्श पुरुषों से कुछ प्रेरणा लें! यही उनकी जयंतियों को स्मरण करने का लाभ है । ऐसी विभूतियां हमारे समाज को अवश्य दिशा देने का कार्य करेंगी (समाज को सद्बुद्धि भी प्रदान करेंगी)। इसी प्रार्थना के साथ मधुर सुप्रभात व सरदार वल्लभ भाई पटेल जी को विनम्र श्रद्धांजलि।

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