देशभर के राम भक्तों को बस उस पल का इंतजार है जब राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी और भगवान राम के दर्शन हो सकेंगे। इससे पहले गुरुवार 18 जनवरी को गर्भगृह में प्रतिमा को स्थापित किया जा चुका है। मंदिर के गर्भगृह में विराजमान रामलला की पहली तस्वीर सामने आई है।
हिमशिखर खबर ब्यूरो
अयोध्या: सदियों से समय की गति को टकटकी लगाए देख रही अयोध्या अब अचानक ठहर-सी गई है। यों सड़कों, घाटों, मंदिरों, मठों में चहल-पहल है, किंतु अयोध्या के मन में अब विश्रांति का भाव है…। एक शांति, जिसकी प्रतीक्षा में साकेत नगरी की आंखें सदियों से पथराई हुई थीं। यहां अनुष्ठानों के नव-आख्यान रचे जा रहे हैं। भारतीय इतिहास का एक अहम अध्याय शुरू होने वाला है। आखिरकार करीब 500 साल बाद भगवान राम के भव्य मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है।
रामलला की मूर्ति पूजन के अनुष्ठान चल रहे हैं। गुरुवार को मूर्ति को गर्भगृह के आसन पर विराजमान कर दिया गया है। इसकी पहली तस्वीर सामने आ गई है। रामलला की श्याम रंग की मूर्ति 51 इंच की खड़ी मुद्रा में है और गर्भगृह मे निर्मित आसन पर विराजमान करवाया गया है। प्रतिमा को 21 जनवरी तक जीवनदायी तत्वों से सुवासित कराया जाएगा, जिसका क्रम गुरुवार से प्रारंभ हो गया।
काशी के आचार्यों के निर्देशन में पूजन प्रक्रिया संपन्न कराई जा रही है। रामलला के अचल विग्रह को अभी ढक कर रखा गया है। आवरण 20 जनवरी को हटाया जाएगा। बृहस्पतिवार को ढकी मूर्ति का ही पूजन किया गया। रामलला के अचल विग्रह, गर्भगृह स्थल और यज्ञमंडप का पवित्र नदियों के जल से अभिषेक किया गया। पूजन के क्रम में ही राम मंदिर के गर्भगृह में रामलला का जलाधिवास व गंधाधिवास हुआ।
उत्साह में राम भक्त
‘बीथीं सकल सुगंध सिंचाई, गजमनि रचि बहु चौक पुराई। नाना भांति सुमंगल साजे, हरषि नगर निसान बहु बाजे।’… लंका पर विजय प्राप्त करके प्रभु श्रीराम के अयोध्या आगमन के समय की रामचरित मानस की ये चौपाइयां रामनगरी में फिर जीवंत हो उठी हैं। समूची अयोध्या में ऐसे ही दृश्य रामनगरी की शोभा को और अलौकिकता देते दिख रहे हैं। श्रीरामलला के गर्भगृह में विराजमान होने में दो दिन शेष हैं। ऐसे में रामरस के पान को हर कोई लालायित है।
प्राण प्रतिष्ठा और संबंधित आयोजनों का विवरण:
1. भगवान श्री रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा योग का शुभ मुहूर्त, पौष शुक्ल कूर्म द्वादशी, विक्रम संवत 2080, यानी सोमवार, 22 जनवरी, 2024 को होगा।
2. शास्त्रीय पद्धति और समारोह-पूर्व परंपराएं: सभी शास्त्रीय परंपराओं का पालन करते हुए, प्राण-प्रतिष्ठा का कार्यक्रम अभिजीत मुहूर्त में संपन्न किया जाएगा। प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व शुभ संस्कारों का प्रारंभ 16 जनवरी 2024 से हो चुका है, जो 21 जनवरी, 2024 तक चलेगा। 19 जनवरी (प्रातः): औषधाधिवास, केसराधिवास, घृताधिवास -19 जनवरी (सायं): धान्याधिवास -20 जनवरी (प्रातः): शर्कराधिवास, फलाधिवास -20 जनवरी (सायं): पुष्पाधिवास -21 जनवरी (प्रातः): मध्याधिवास -21 जनवरी (सायं): शय्याधिवास।
3. अधिवास प्रक्रिया एवं आचार्य: समारोह के अनुष्ठान की सभी प्रक्रियाओं का समन्वय, समर्थन और मार्गदर्शन 121 आचार्य कर रहे हैं। गणेशवर शास्त्री द्रविड़ सभी प्रक्रियाओं की निगरानी, समन्वय और दिशा-निर्देशन कर रहे हैं, तथा काशी के लक्ष्मीकांत दीक्षित मुख्य आचार्य हैं।