देहरादून।
चिपको आंदोलन के प्रणेता और प्रसिध्द पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा की स्मृति में उत्तराखंड में सुंदर लाल बहुगुणा प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। राज्यपाल ने इसके लिए स्वीकृति प्रदान कर दी है। इसके अंतर्गत प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में किये गये महत्वपूर्ण योगदान, उसके प्रभाव, पर्यावरण की सुरक्षा एवं उसके समग्र सुधार के सम्बन्ध में किये गये उत्कृष्ट, सराहनीय कार्यों के लिए वर्ष 2023 से प्रति वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस 05 जून के अवसर पर विभिन्न श्रेणियों में पुरस्कार प्रदान किये जायेंगे। इस संबंध में अपर मुख्य सचिव उत्तराखंड आनंद वर्द्धन ने शासनादेश जारी कर दिए।
पुरस्कार की श्रेणियाँ
सुंदर लाल बहुगुणा प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण पुरस्कार प्रति वर्ष 02 श्रेणियों क्रमशः सरकारी एवं गैर सरकारी में दिया जायेगा। प्रत्येक श्रेणी में 03 पुरस्कार (प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय) दिये जायेंगे। प्रत्येक श्रेणी में प्रथम स्थान के लिए 3.00 लाख, द्वितीय स्थान हेतु 2.00 लाख एवं तृतीय स्थान हेतु 1.00 लाख की नगद धनराशि के साथ ब्रहमकमल ट्राफी भी प्रदान की जायेगी।
पात्रता
सरकारी श्रेणी के लिए उत्तराखण्ड राज्य के विभिन्न सरकारी विभाग/कार्यालय/ निगम/बोर्ड/ अभिकरण आदि एवं गैर सरकारी क्षेत्र हेतु कोई भी व्यक्ति / निजी कम्पनी/ संस्थान / सानुदायिक संगठन /स्वयं सहायता समूह/एन जी ओ. आदि. जिसके द्वारा उत्तराखण्ड राज्य में प्रकृति एवं पर्यावरण की सुरक्षा की दृष्टि से उत्कृष्ट कार्य किये गये हों एवं परिणाम परिलक्षित हुए हों, पुरस्कार हेतु पात्र होगे। “प्रकृति एवं पर्यावरण” शब्द की व्याख्या यथा संभव व्यापक परिप्रेक्ष्य में की जाएगी।
आवेदन की प्रक्रिया
उक्त पुरस्कार के आमंत्रण हेतु प्रत्येक वर्ष विस्तृत प्रचार एवं प्रसार किया जाएगा। आवेदन प्राप्त करने की कुल अवधि विज्ञापन के प्रकाशन की तारीख से 45 दिन की होगी। पर्याप्त प्रचार के लिए प्रमुख क्षेत्रीय समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित किया जायेगा। इस विज्ञापन को राज्य पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन निदेशालय, उत्तराखण्ड की वैबसाईट पर भी प्रदर्शित किया जाएगा। उत्तराखण्ड सरकार के विभिन्न विभागों/कार्यालयों/निगमों/बोझै /अभिकरणों आदि तथा कोई भी नागरिक/निजी कम्पनी/संस्थानों/ सामुदायिक संगठनों / स्वयं सहायता समूहों/एन.जी.ओ. आदि जिनके द्वारा पर्यावरण के क्षेत्र में सराहनीय/ उत्कृष्ट कार्य किये गये हों, “सुंदर लाल बहुगुणा प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण पुरस्कार हेतु आवेदन के पात्र होंगे। स्वतः भिजवाए गए अथवा किसी अन्य के द्वारा आवेदित आवेदनों पर भी विचार किया जाएगा। आवेदन कर्ता द्वारा आवेदन के साथ निम्नलिखित
सूचनाएं भेजी जाएँगी-
1.आवेदन कर्ता व्यक्ति/समूह (सरकारी अथवा गैर सरकारी) का नाम, पता तथा अन्य विवरण।
2.कार्य का क्षेत्र
3. आवेदन कर्ता व्यक्ति/ समूह द्वारा किया गया उल्लेखनीय योगदान,
4. आवेदन कर्ता व्यक्ति/ समूह द्वारा किए गए कार्यों से उत्पन्न प्रभाव अथवा संभावित प्रभाव।
5.आवेदन कर्ता व्यक्ति/समूह को पूर्व में प्रकृति एवं पर्यावरण के क्षेत्र में प्राप्त पुरस्कार, प्रशस्ति-पत्र, अनुशंसा, प्रिन्ट-मीडिया / सोशल-मीडिया में प्राप्त मान्यता संबंधी प्रमाण-पत्र आदि।
6.आवेदन कर्ता व्यक्ति/समूह द्वारा किये गये उत्कृष्ट / सराहनीय कार्य संबंधी फोटो एवं वीडियो आदि।
विज्ञापन प्रतिवर्ष जनवरी के प्रथम सप्ताह में जारी किया जाएगा। आवेदन प्राप्त किए जाने हेतु 45 दिन का समय दिया जायेगा। आवेदनकर्ता द्वारा स्वहस्ताक्षरित आवेदन, ऑफ लाईन अथवा ऑन लाईन माध्यम से निदेशक, राज्य पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन निदेशालय को भेजा जायेगा।
आवेदनों का परीक्षण एवं सत्यापन
प्राप्त आवदनों के परीक्षण एवं सत्यापन हेतु राज्य, पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन निदेशालय, उत्तराखण्ड नोडल विभाग के रूप में कार्य करेगा। राज्य, पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन निदेशालय, उत्तराखण्ड द्वारा प्राप्त आवेदनों का पुरस्कार हेतु निर्धारित पात्रता के आधार पर परीक्षण एवं सत्यापन करते हुए. सरकारी एवं गैर सरकारी श्रेणियों में वर्गीकरण का कार्य 15 मार्च तक सम्पन्न किया जायेगा।
सुंदर लाल बहुगुणा का जीवन परिचय
महान पर्यावरण-चिन्तक सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म नौ जनवरी, 1927 को टिहरी जिले में भागीरथी नदी किनारे बसे मरोड़ा गांव में हुआ। 13 साल की उम्र में अमर शहीद श्रीदेव सुमन के संपर्क में आने के बाद उनके जीवन की दिशा बदल गई। सुमन से प्रेरित होकर वह बाल्यावस्था में ही आजादी के आंदोलन में कूद गए थे। वह अपने जीवन में हमेशा संघर्ष करते रहे और जूझते रहे। चाहे पेड़ों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन हो, चाहे टिहरी बांध का आंदोलन हो, चाहे शराबबंदी का आंदोलन हो, उन्होंने हमेशा अपने को आगे रखा। नदियों, वनों व प्रकृति से प्रेम करने वाले बहुगुणा उत्तराखंड में बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए छोटी-छोटी परियोजनाओं के पक्षधर थे। इसीलिए वह टिहरी बांध जैसी बड़ी परियोजनाओं के पक्षधर नहीं थे। उनके दिलोदिमाग और रोम-रोम में प्रकृति के प्रति सम्मान और संरक्षण की भावना थी। उन्होंने अपने कार्यों से अनगिनत लोगों को प्रेरित किया।