नरेंद्रनगर में टिहरी नरेश के राज दरबार में गाडू घडे की उपस्थिति में 26 जनवरी को वसंत पंचमी के पर्व पर बद्रीनाथ के कपाट खुलने की तिथि घोषित होगी।
हिमशिखर खबर ब्यूरो
जोशीमठ: बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि तय करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। सोमवार को पूजा-अर्चना के बाद जोशीमठ नृसिंह मंदिर से गाडू घड़ा को मंदिर समिति ने डिमरी पुजारियों को सौंपा। इसे बदरीनाथ के कपाट खुलने की पहली प्रक्रिया माना जाता है। 26 जनवरी को वसंत पंचमी के दिन नरेंद्रनगर राजदरबार में बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने की तिथि तय की जाएगी। बताया गया है कि तेल कलश 25 जनवरी को ऋषिकेश पहुंच जाएगा।
भू-वैकुंठ बदरीनाथ धाम
बदरीनाथ धाम को भू-वैकुंठ कहते हैं। यहां पर नारायण योग मुद्रा में विराजमान हैं। शास्त्र मान्यता है कि नारायण की पूजा छह माह मानव व छह माह देवताओं की ओर से नारद जी करते हैं।
बदरीनाथ धाम को अंतिम मोक्ष धाम भी माना गया है। बदरीनाथ मंदिर में भगवान नारायण की स्वयंभू मूर्ति है। भगवान योग मुद्रा में विराजमान हैं। बदरीनाथ की पूजा को लेकर दक्षिण भारत के पुजारी ही पूजा करते हैं। जिन्हें रावल कहते हैं। मूर्ति को छूने का अधिकार भी सिर्फ मुख्य पुजारी को ही है।
बदरीनाथ धाम का माहात्म्य
चमोली जनपद में समुद्रतल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर अलकनंदा नदी के किनारे स्थित बदरीनाथ धाम। विष्णु पुराण, महाभारत और स्कंद पुराण में इस धाम को देश के चार धामों में सर्वश्रेष्ठ बताया है।
केरल के नंबूदरी ब्राह्मण होते हैं मंदिर के मुख्य पुजारी
मंदिर के मुख्य पुजारी केरल के नंबूदरी ब्राह्मण होते हैं। इन्हें रावल कहा जाता है। यह व्यवस्था आदि शंकराचार्य ने स्वयं की थी। इस मंदिर को बदरी विशाल के नाम से पुकारते हैं। इसके पास स्थित अन्य चार मंदिरों योग ध्यान बदरी, भविष्य बदरी, वृद्ध बदरी और आदि बदरी के नाम से पुकारते हैं। इन मंदिरों के समूह को पंच बदरी के रूप में जाना जाता है।