हिमशिखर धर्म डेस्क
1943 में महाराज जी फतेहगढ़ पधारे थे. वे जिस घर पहुंचे वहां बुजुर्ग दंपत्ति ही रहते थे. उनका जवान बेटा बर्मा में युद्ध लड़ रहा था. घर पहुंचने के बाद महाराज जी ने रात में वहीं आराम करने के लिए कहा. बुजुर्ग दंपत्ति के पास दो ही चारपाई थी. उन्होंने एक चारपाई और कंबल रात में विश्राम करने के लिए महाराज जी को दिया.
महाराज जी आराम करने लगे. वे रात भर कराहते रहे और बेचैन रहे. वे बुजुर्ग दंपत्ति बैठकर महाराज की देखते रहे करीब चार बजे उनकी कराह बंद हुई और साढ़े चार बजे बेडशीट को लपेटकर बुजुर्ग दंपत्ति को देते हुए कहा “इसे गंगाजी में प्रवाहित कर दो. वहां प्रवाहित करना जहां गंगाजी गहरी हों. और ध्यान रखना कोई देखे नहीं वर्ना पुलिस पकड़ लेगी.”
उन्होंने वैसा ही किया जैसा महाराजजी ने कहा था. लेकिन रास्ते में उन्होंने महसूस किया कि इसमें गोलियों जैसा कुछ भरा हुआ है. लौटकर आये तो महाराज जी ने कहा “चिंता मत करो. तुम्हारा बेटा एक महीने में आ जाएगा.”
करीब एक सप्ताह बाद जब उनका बेटा लौटकर आया तो उसने बताया कि वह मौत के मुंह से निकलकर आ रहा है. युद्ध के दौरान उसकी कंपनी को दुश्मनों ने घेर लिया था और उसके सारे साथी मारे गये. सारी रात गोलीबारी होती रही और चार बजे जब जापानी फौज को लगा कि सारे लोग मारे जा चुके हैं तो वे चले गये. भारतीय फौज की दूसरी टुकड़ी सुबह साढ़े चार बजे वहां पहुंची और वह जिन्दा बचनेवाला अकेला बचा था. (यह वही रात थी जिस रात महाराज जी वहां पधारे थे.)