काका हरिओम
योग एक साधन है परम चेतना और विराट से जुड़ने का। क्योंकि इसकी यात्रा शरीर और मन से शुरू होती है, इसलिए सर्वप्रथम इसे साधने का प्रयास होता है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिए उपदेश-श्रीमद्भगवद्गीता में परमचेतना की अनुभूति करने के प्रत्येक साधन को इसीलिए ‘योग’ में समाहित कर लिया है।
इस समय योग को शरीर को स्वस्थ करने और मन को तनाव मुक्त करने तथा इन दोनों की क्षमताओं को बढ़ाने के साधन के रूप में प्रसारित-प्रचारित किया जा रहा है। इसका सांसारिक दृष्टि लाभ है लेकिन आध्यात्मिक संदर्भ या यूं कहें कि इसका परम साधना का लक्ष्य चूक गया है।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को योग की कई परिभाषाएं बताई, लेकिन वह ‘समत्वं योग उच्यते’, कहते हुए संतुलन और समभाव अर्थात् प्राणिमात्र में समदृष्टि की ओर संकेत देे रहे हैं। लेकिन इस स्थिति तक पहुंचने के लिए जरूरी है कि समस्त इंद्रियों पर-मन समेत नियंत्रण हो। यही योग की दृष्टि में आत्मानुशासन है।
योग अपनी संपूर्णता को प्राप्त हो, इसीलिए योग के साथ वेदांत की चर्चा भी शास्त्रों और महापुरुषों ने की है। स्वामी रामतीर्थ और स्वामी विवेकांनद की दृष्टि में इन दोनों का एक साथ अभ्यास ही मुक्ति-मोक्ष, परम स्वतंत्रता के मार्ग को प्रशस्त करता है। स्वामी रामतीर्थ द्वारा की गई कठोर यात्राएं योगाभ्यास का ही तो परिणाम हैं। क्या आप सोच सकते हैं कि एक धोती को पहने, बिना जूता चप्पल के कोई हिमालय की उन ऊंचाईयों पर पहुंच कर खुशी से नाच सकता है, जहां तक पहुंचने की हिम्मत उस क्षेत्र में रहने वाले नहीं कर पाए, उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया। इसी तरह स्वामी विवेकानंद ने विदेशियों को वेदांत श्रवण का अधिकारी बनाने के लिए, विशेष रूप से, पतंजलि द्वारा रचित योगसूत्रों पर सरल सटीक व्याख्या करके राजयोग को संपुष्ट किया।
यहां हमें यह समझने की आवश्यकता है कि योग शरीर और मन को साधने का काम करता है। लेकिन विचारों का, चिंतन का, विवेक का आश्रय लेकर जो शास्त्र हमारे आध्यात्मिक मार्ग को प्रशस्त करता है, वह वेदांत है। इसे हम यह भी कह सकते हैं कि विचारों की परिपक्वता की कसौटी है व्यवहार, जो शरीर और मन के ऊपरी धरातल द्वारा संचालित होता है। शरीर और मन की अवचेतन गहराई का परिष्कार ‘वेदांत’ के द्वारा ही संभव है।
इसलिए आज आवश्यकता है योग के साथ वेदांत के प्रचार प्रसार की भी। इस पूर्वाग्रह को हम सबको मिलकर तोड़ना होगा कि वेदांत कठिन है, एक सामान्य व्यक्ति के लिए नहीं है।