सुप्रभातम् : जरा सोचिए, क्या चाहिए?

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काका हरिओम्

यहां, कुठालगेट के समीप, स्वामी रामतीर्थ मिशन , ओल्ड मसूरी रोड में रहते बरसों बीत गए हैं. एकदम शांत वातावरण. बदलते समय ने इसे भी कई मायनों में प्रभावित किया है. लेकिन तब भी यहां सब ऐसे समा गया जैसे घंटों बरसी वर्षा का पानी कुछ ही मिनटों में यहां न जाने कहां खो जाता है. इस तरह आज भी दिन के शोर में भी उड़ते पंछी के पंखों से उठने वाली फड़फड़ाहट को आप यहां महसूस कर सकते हैं, रात में यह संवेदना और भी व्यापक हो जाती है.

कुछ दिनों से मैं महसूस कर रहा हूं कि चौबीसों घंटे थोड़ी-2 देर बाद सड़कों पर सायरन दौड़ने लगता है. यह आवाज न चाहते हुए भी कानों में कह जाती है कि कुछ ऐसा हो गया है जो होना नहीं चाहिए था.

सुबह से शाम तक कोई न कोई यह कह जाता है, ‘बहुत बुरा हुआ. उसके परिवार का क्या होगा? यह भी भला कोई उम्र थी. अब emi कौन भरेगा. क्या पता था कि ऐसा भी हो जाएगा,’आदि-आदि.

आप यह मत सोचिएगा कि यह लिख कर आपको डराया जा रहा है. इसे आप उस साइन बोर्ड की तरह समझिए जो रास्ते में खड़ा आपको आगाह कर रहा है कि ‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी ‘.

यह संकेत है कि जो हो सकता है, उससे बचाव बचाव संभव है.लेकिन कब,जब सफर करने वाला खुद इस बात का खयाल रखे कि सावधान रहना है.

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हम मानें या न मानें सावधानी बरतने में चूक हुई है, अभी भी हो रही है. जवान मौतें, इसी बात की पुष्टि करती हैं.हम 1पूरा वर्ष बीत जाने के बाद भी इस आई आपदा का मुकाबला कैसे किया जाए, इस बारे में गंभीर नहीं हुए हैं. एक्सपर्ट्स की सलाह को हमने गंभीरता से नहीं लिया. बाजारों में अंधाधुंध भीड़, ‘यह तो कुछ लोगों द्वारा प्रचारित प्रोप्गंडा है,’ असावधानी को सही ठहराने के लिए गलत उदाहरण और साक्ष्य, ‘यह उनके चोंचले हैं जिनके पास खाने को पैसा है,’ ‘काम न करें तो अपनी जमा पूंजी खाएं’ – जैसे तर्कों, बातों से क्या सिद्ध होता है?
ओछी राजनीति ने भी असावधानी के संदर्भ में नशे का सा काम किया है.

मुझे तो लगता है हमें क्या चाहिए, हम इसी का फैसला नहीं कर पाए हैं.

कल के अखबार में समाचार था कि हरिद्वार के व्यापारी लॉकडाउन के पक्ष में नहीं हैं.वह इस निर्णय से भी संतुष्ट नहीं हैं कि जो चार धाम यात्रा पर सरकार ने रोक लगा दी.उनका यह कहना कितना व्यावहारिक है कि सरकार सख्ती से उन नियमों का पालन लोगों से करवाए,जिनका निर्देश सरकार द्वारा दिया गया है.

देखिए,संतुलन तो कहीं न कहीं बैठाना ही होगा. यह निर्णय भी कोई और नहीं,आप ही लेंगे. जरा साेचिए, आपको क्या चाहिए. अपनी जान, परिवार का भविष्य या फिर….

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अब तो आपको शत्रु के स्वभाव की, उसकी मंशा की, उसकी कूटचाल की और उसकी क्षमता की जानकारी है, फिर भी आप उसके दांव में फंसने को तैयार हैं. ध्यान रहे, मौका मिलते ही वह आपको, आपके किसी अपने को बख्शेगा नहीं.

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