सुप्रभातम् : खुद को और अपनों को समझने का अच्छा मौका है यह लॉक-डाउन

काका हरिओम्
हिमशिखर ब्यूरो

किसी संत से एक जिज्ञासु ने पूछा, ‘ईश्वर ने इतनी तकलीफ क्यों दी है मनुष्य को?’ तो वह संत मुस्कुराए और बोले, ‘ प्रतिकूल को दुःख कहते हैं. और यह स्थिति मनुष्य के अलावा अन्य प्राणियों से भी जुड़ी हुई है.

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‘एक बात और, मनुष्य के दुःख, ज्यादातर, उसकी अपनी ही देन हैं. वह चाहे तो उन्हें सुख के रूप में परिवर्तित कर सकता है.

‘सार यह है कि ईश्वर किसी को दुःख नहीं देता, बल्कि जो उसके रूप-स्वरूप को जान लेता है, वह सदा-सदा के लिए दुःख से छूट जाता है.’

बुद्ध ने अपने आर्य सत्यों में दुःख के कारणों पर ही नहीं उन्हें कैसे समाप्त किया जाए, उन उपायों को भी सुझाया है. उन्होंने सिद्धान्त दिया,कारण नाश से कार्य का विनाश.

अब आइए इन सिद्धान्तों को आज के संदर्भ में जोड़कर देखें. कोविड की जब शुरुआत हुई थी,तो यही समझ नहीं रहा था कि यह हो क्या रहा है. जब बात समझ आई, तो इस बात को लेकर परेशान थे कि इसका कोई इलाज नहीं, इस पर काबू कैसे पाया जाए. अब आशा की किरण मिली है, तो भी हम परेशान हैं. आप मानें-न मानें यह हमारी सब हमारी अपनी करनी का फल है. क्योंकि जब पानी सर के ऊपर से बहने लगता है, तब हम सोचना शुरू करते हैं कि कुछ करना चाहिए. लेकिन तब तक बात पूरी तरह से बिगड़ चुकी होती है. इस तरह पिछले अनुभवों से भी हमने कुछ खास नहीं सीखा है.

मैं मानता हूं लोगों से कट जाना, आर्थिक रूप से पीछे छूट जाना, अपनों के दुख-सुख में साथ न दे पाना खलता है, लेकिन सोचिए कि इसका विकल्प क्या है. ऐसे में शंकर शेष के नाटक ‘एक और द्रोणाचार्य’की यह पंक्तियां याद आती हैं-‘जिस व्यवस्था को तोड़ा नहीं जा सकता, उसमें विश्वास करके ही जीया जा सकता है.’

अतः हमें इसी परिस्थिति में जीना है. जीना है-यह सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है. लेकिन एक बात और भी महत्व की है कि ‘औरों को भी जीने देना है. ‘इस तरह आप घर में, गली-मोहल्ले में आप अकेले नहीं हैं.आपको उनके साथ खुद को एडजेस्ट करना है. इसके लिए जरूरी है अपने स्वभाव के साथ ही दूसरों को भी आप समझें.इस दृष्टि से यह सुअवसर मिला है आपको. ज्यादा समय मिलने के कारण सही समझ आपमें पैदा हो सकती है.

एक साथ आप अपनी साथी, अपनी नई पीढ़ी, अपने बजुर्गों,उनके आपसी संबंधों की अच्छाई-बुराई को आप आसानी से समझ सकते हैं. सबमें दोनों पहलू हैं, इसे स्वीकार किये बिना बात बननेवाली नहीं है. आप खुद भी इस + – से कहां अछूते हैं. लोग आपको समझें और आप नहीं, यह व्यावहारिक सोच नहीं है. संबंधों की स्वीकृति समूचे रूप में होती है. वह सेलेक्टिव नहीं होती. यह मौका मिला है, समझिए और समझाइए. टाइम काटिए नहीं, इसका सदुपयोग कीजिए. टाइम किल करना समझदारी नहीं है, इसमें से जीवन की ऊर्जा निकलनी चाहिए.

 

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