अभी हिन्दी पंचांग का आठवां महीना कार्तिक चल रहा है। कार्तिक माह में भगवान विष्णु की पूजा खासतौर पर की जाती है। इस माह का संबंध भगवान शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय से है।
पंडित उदय शंकर भट्ट
हिमशिखर धर्म डेस्क
ऐसे पड़ा इस माह का नाम कार्तिक
मान्यता है कि तारकासुर नाम के असुर को वरदान मिला था कि उसका वध शिव जी के पुत्र द्वारा ही होगा। उस समय शिव जी देवी सती के वियोग में थे। देवी सती अपने पिता दक्ष के यहां हवन कुंड में कूदकर देह त्याग चुकी थीं। वरदान पाकर तारकासुर ने देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया था। उसका आतंक बढ़ता ही जा रहा था। तब भगवान विष्णु और अन्य देवताओं ने शिव जी से विवाह करने की प्रार्थना की।
उस समय देवी पार्वती शिव जी को पति रूप में पाने के लिए तप कर रही थीं। शिव जी देवी पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न हुए और उनसे विवाह किया। विवाह के बाद कार्तिकेय स्वामी का जन्म हुआ। कार्तिकेय स्वामी ने जन्म के कुछ समय बाद ही तारकासुर का वध कर दिया था। तारकासुर का वध हिन्दी पंचांग के आठवें माह में हुआ था। कार्तिकेय स्वामी के पराक्रम से शिव जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने इस माह को कार्तिक नाम दिया। माह में किए गए पूजा-पाठ से अक्षय पुण्य मिलता है।
मोक्ष का द्वार है कार्तिक मास
कार्तिक माह में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने से धरती के सभी तीर्थों का पुण्य प्राप्त होता है। कार्तिक मास में दीपदान का भी विशेष महत्व बताया गया है। पद्म पुराण, नारद पुराण और स्कन्द पुराण में कार्तिम मास का विशेष माहात्म्य बताया है। इस मास में की गई प्रार्थना सीधे देवों तक पहुंचती है, इसलिए इसे मोक्ष का द्वार भी कहा गया है।
रोज सुबह करें मंत्र जाप
कार्तिक मास में रोज सुबह जल्दी उठ जाना चाहिए। स्नान के बाद घर के मंदिर में या किसी अन्य मंदिर में अपने इष्टदेव के मंत्रों का जाप करना चाहिए। सूर्यदेव को तांबे के लोटे से अर्घ्य अर्पित करें। ध्यान-योग करें। कार्तिक मास में किए गए इन शुभ कामों से शांति मिलती है और नकारात्मक विचार खत्म होते हैं।