हिमशिखर धर्म डेस्क
कई लोग हाथ पर हाथ धरै बैठकर भाग्य को कोसते रहते हैं। वे इस बात का रोना रोते रहते हैं कि नसीब न होने के कारण उन्हें किसी काम में सफलता हासिल नहीं हो पा रही है। जबकि सच्चाई यह है कि हमारा भाग्य कर्म के अधीन है। हाथ की लकीरों में अपने भाग्य को खोजने के स्थान पर यदि हाथों को कर्म करने के लिए प्रेरित किया जाए तो भाग्य रेखा खुद ब खुद ही बलवान होती जाएगी और हमारे सभी काम आसान होते चले जाएंगे।
कर्म के अनुसार बदलती हैं रेखा
हस्त रेखा विज्ञान के आधार पर कुछ रेखाओं को छोड़ दे तो बाकी सभी रेखाएं कर्मों के आधार पर बदलती रहती हैं। अपनी हथेली को गौर से देखिए कुछ समय बाद रेखाओं में कुछ न कुछ फर्क जरूर दिखेगा। इसलिए हमेशा कर्म को प्रधानता दी जाती है।
कर्म से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है
‘‘सकल पदारथ जग माहि। कर्महीन नर पावत नाहिं।’’ गोस्वामी तुलसीदासजी ने इस दोहे में स्पष्ट किया है कि इस संसार में कर्म करने पर सभी कुछ प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन कर्महीन इच्छित चीजों को पाने से वंचित रह जाते हैं।
सिंह को भी आलस्य त्यागना होगा
नीतिशास्त्र में कहा गया है कि ‘‘न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।’’ इसका तात्पर्य यह है कि शेर यदि शिकार करने न जाए और सोया रहे तो मृग स्वयं ही उसके मुंह में नहीं चला जाएगा। यानी सिंह को यदि अपनी भूख मिटानी है तो उसे आलस्य त्यागकर मृग का शिकार करना ही पड़ेगा।
पृथ्वी लोक यानी कर्म भूमि
शास्त्रों में पृथ्वी को कर्म भूमि कहा गया है। यहां आप जैसे कर्म करते हैं, उसी के अनुसार आपको फल भी प्राप्त होते हैं। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म को ही प्रधान बताया है और कहा है कि हम मनुष्यों के हाथों में सिर्फ कर्म है। अतः हमें यही करना चाहिए। इसके फल की चिंता हमें भगवान पर छोड़ देनी चाहिए। भगवान अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते हैं। इसलिए जो जैसा कर्म करता है, उसे उसका वैसा फल भी प्राप्त होता है। सीधी बात यह है कि ‘कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करहिं सो तस फल चाखा।’ यानी जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है।