जॉन एफ. कैरी, (जलवायु के मुद्दे पर अमरीकी राष्ट्रपति के पहले विशेष राजदूत)
Glasgow Climate Summit : जलवायु संकट का सामना करने के लिए दुनिया निर्णायक दशक में प्रवेश कर चुकी है। ग्लासगो, स्कॉटलैंड में इस सप्ताह का वैश्विक जलवायु शिखर सम्मेलन पहले ही इस आपात स्थिति का सामना करने के लिए कहीं अधिक महत्त्वकांक्षी होने की जरूरत जताने में कामयाब हो चुका है। इस तरह से देखा जाए तो शिखर सम्मेलन कामयाबी हासिल कर चुका है।
हम अभी भी तबाही को टाल सकते हैं, लेकिन हमारे पास समय बहुत कम है। सकारात्मक पक्ष यह है कि दुनिया के कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 65 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करने वाले देशों ने औद्योगिकीकरण से पूर्व के समय की तुलना में ग्लोबल वार्मिंंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न होने देने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कदम बढ़ाए हैं।
विज्ञान के अनुसार, यदि हम ऐसा कर पाते हैं तो ग्लोबल वार्मिंग के बहुत विध्वंसक प्रभावों को रोकने में सफल हो जाएंगे। इनमें यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा, दक्षिण कोरिया, जापान और दक्षिण अफ्रीका समेत 27 देश शामिल हैं।
भारत ने 2030 तक 450 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता विकसित करने का लक्ष्य रखा है, और अमरीका ने भारत के इस प्रयास में उसका भागीदार बनने की सहमति जताई है। रूस और सऊदी अरब समेत बड़े तेल उत्पादक भी सख्त कदम और शून्य उत्सर्जन के लक्ष्यों के साथ आगे आ रहे हैं। दुनिया की 70 फीसदी अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करने वाले 100 से अधिक देशों ने भी मीथेन के उत्सर्जन को महत्वपूर्ण तरीके से कम करने का संकल्प लिया है। गौरतलब है कि ग्रीनहाउस गैस मीथेन, पर्यावरण के लिए कार्बन डाइऑक्साइड से कहीं अधिक हानिकारक है। ग्लोबल वार्मिंक को धीमा करने का सबसे तेज और एकमात्र विकल्प है मीथेन उत्सर्जन में कमी लाना।
राष्ट्रपति जो बाइडन के कार्यभार संभालने के पहले दिन ही अमरीका पेरिस जलवायु समझौता में फिर से शामिल हो गया था। इसके अलावा उन्होंने आगे बढ़ कर नेट-जीरो उत्सर्जन का समय रहते लक्ष्य हासिल करने के लिए अमरीकी प्रयासों को गति देने की प्रतिबद्धता भी जाहिर की थी। इसके तहत अमरीका की योजना 2035 तक कार्बन मुफ्त विद्युत प्रणाली विकसित करने और इसके लिए शोध व विकास पर चार गुना खर्च करने की है।
पचास वर्ष पहले जिस तरह अंतरिक्ष की दौड़ शुरू हुई थी, वैसे ही स्वच्छ ऊर्जा क्रांति लाने के लिए तकनीकों की नई पीढ़ी में बाइडन प्रशासन के नवाचार और निवेश एक नई ऊर्जा दौड़ का मार्ग प्रशस्त करेंगे। लेकिन 2030 तक वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 45 प्रतिशत तक की कटौती में अभी भारी अंतर शेष है। यह अंतर पाटना 2050 तक नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य पाने और आपदाएं टालने के लिए बेहद जरूरी है।
अभी भी कई देश पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहे हैं। दुर्भाग्य है कि अकेले कोई भी देश या क्षेत्र इस चुनौती से नहीं निपट सकता। कुछ ही महीनों में हमने महत्वपूर्ण प्रगति होते हुए देखी है, लेकिन हम सबको अपने प्रयासों को रफ्तार देनी होगी। जिंदगियां बचाने के लिए, सेहत सुधारने के लिए और पानी, जमीन व हवा के संरक्षण के लिए हमें जिस तकनीकी बदलाव की जरूरत है, वह औद्योगिक क्रांति के दौर के बाद सबसे बड़ा आर्थिक अवसर भी है।
निजी क्षेत्र आगे बढ़ रहा है और आज दुनिया की सबसे मूल्यवान कार कंपनी सिर्फ इलेक्ट्रिक वाहन बनाती है। स्टील और सीमेंट निर्माता भी अनुसरण कर रहे हैं। स्वच्छ ऊर्जा के लिए इस बदलाव में निवेशकों के खरबों डॉलर दांव पर लगे हैं। ग्लासगो के बाद हमें जरूरत है कि महत्वाकांक्षी लक्ष्यों और ठोस कदमों के लिए प्रतिबद्ध रहें। निजी क्षेत्र को वैश्विक अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए प्रयास दोगुने करने होंगे। यह लड़ाई हमारे जीवन के लिए है, सभी को अपना योगदान देना होगा।