स्वामी कमलानंद (डा. कमल टावरी)
जब तक जमीन पर हरियाली है, तब तक हर इंसान का जीवन सुरक्षित है, लेकिन लगातार हो रही जंगलों की कटाई ने धरती के अस्तित्व को चिंता में डाल दिया है। इस समस्या से निपटने के लिए समाधान खोजा जा चुका है। देश के कई इलाकों में गोबर से बनी लकड़ी गौकाष्ठ बनाई जा रही है, जिसे लकड़ी के एक बेहतर विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। यह लकड़ी गाय के पवित्र गोबर से बनी होती है, जिसे तैयार करने में भी ज्यादा समय नहीं लगता। अच्छी बात यह है कि गोबर से बनी ये लकड़ी साधारण लकड़ी की तुलना में बेहद सस्ती और कम धुआं छोड़ती है, जिससे पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होता।
पेड़ की लकड़ियां बारिश में गीली होने पर जलती नहीं है। ऐसी स्थिति में गौकाष्ठ लकड़ी तेजी से आग पकड़ लेती है और वातावरण में गर्मी पैदा कर देती है। यज्ञ, हवन, अंतिम संस्कार और खाना बनाने में गौकाष्ठ लकड़ी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
पर्यावरण बचाने में सहायक
यदि हर श्मशानघाट में गोबर से बनी लकड़ी का इस्तेमाल किया जाए तो इससे निश्चित ही वृक्षों की अनावश्यक कटाई होने से रोकने में सहायता मिलेगी। इससे पर्यावरण की रक्षा और प्रदूषण भी नहीं फैलेगा।
गोबर को मानते हैं पवित्र
हिंदू धर्म में गौ माता को देवतुल्य दर्जा दिया गया है और गोबर को अति पवित्र माना जाता है। पूजा पाठ में भी गोबर से बने पंचगव्य का इस्तेमाल होता है। गोबर के कंडों से दाह संस्कार किया जाता है, यदि गोबर से लकड़ी का निर्माण किया जाए तो यह अति उत्तम है।
क्यों जरूरी है गौकाष्ठ
एक सर्वे के मुताबिक, हर साल शव जलाने के लिए 5 करोड़ पेड़ काटे जाते हैं। देश की करीब एक तिहाई लकड़ी की खपत अंतिम संस्कार में हो रही है, जिसके लिए काफी हद तक जंगलों की कटाई होती है। इससे पर्यावरण के लिए नया संकट पैदा हो रहा है।
मिट्टी की कटाव, उफनती नदियां, पर्यावरण प्रदूषण आदि जंगलों की कटाई का ही नतीजा है। इन संकटों पर विराम लगाने के लिए पेड़ लगाने पर तो फोकस करना ही है, लेकिन गौकाष्ठ को बढ़ावा देना भी एक मजबूत कदम साबित हो सकता है।
कैसे फायदेमंद है गौकाष्ठ
आज घरेलू और औद्योगिक जरूरतों के लिए नेचुरल गैस, पैट्रोल और कोयला पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। यदि ऊर्जा के वैकल्पिक साधन तलाशें तो सौर ऊर्जा इन दिनों काफी चर्चा में है, लेकिन आज गाय से बना गोबर भी ईंधन की लकड़ी के एक अच्छे विकल्प के तौर पर उभर रहा है।
उदाहरण के लिए 500 किलो लकड़ी उत्पादन के लिए करीब 2 पेड़ों की कटाई की जाती है, जिसमें 4000 रुपये का खर्च आता है, जबकि 500 किलो गौकाष्ठ मात्र 300 रुपये में तैयार हो जाती है। गांव में जहां खेती और पशुपालन बड़े पैमाने पर किया जाता है।
यहां गोबर का भी बड़ी मात्रा ढ़ेर रहता है। ऐसी स्थिति में गोबर से बनी गौकाष्ठ ना सिर्फ किसानों और पशुपालकों की आय बढ़ाने में मदद करेगी, बल्कि गांव में रोजगार और आय के साधनों का भी सृजन करेगी।
यदि गोबर के साथ में लैकमड भी मिला दिया जाए तो इसे लंबे समय तक ज्वलनशील बनाया जा सकता है। आधुनिक मशीनों से 1 दिन में करीब 10 क्विंटल गोबर की गौकाष्ठ बनाई जा सकती है, जो बाजार में करीब 7 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव बिकती है।