सिंह संक्रान्ति: आज पुत्रदा एकादशी पर बदली ग्रहों के राजा की चाल

पंडित उदय शंकर भट्ट

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आज आपका दिन मंगलमयी हो, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है। आज सिंह संक्रान्ति और भाद्रपद की 1 गते है। आज एकादशी भी है और पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाएगा।

आज शुक्रवार को सावन पुत्रदा एकादशी  के साथ ही ग्रहों के राजा सूर्य) का सिंह राशि में गोचर हो रहा है। इस दिन को ग्रह नक्षत्र की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। सूर्य कर्क राशि से निकलकर सिंह राशि में प्रवेश करेंगे जिसे सिंह संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है।

सिंह संक्रान्ति फलम्

  • छोटे (निम्न) कार्यों में शामिल लोगों के लिए यह संक्रान्ति अच्छी है।
  • वस्तुओं की लागत सामान्य होगी।
  • चिन्ता लाती है।
  • लोगों को स्वास्थ्य लाभ होगा और अनाज भण्डारण में वृद्धि होगी।

आज का पंचांग

शुक्रवार, अगस्त 16, 2024
सूर्योदय: 05:51 ए एम
सूर्यास्त: 06:59 पी एम
तिथि: एकादशी – 09:39 ए एम तक
नक्षत्र: मूल – 12:44 पी एम तक
योग: विष्कम्भ – 01:12 पी एम तक
करण: विष्टि – 09:39 ए एम तक
द्वितीय करण: बव – 08:58 पी एम तक
पक्ष: शुक्ल पक्ष
वार: शुक्रवार
अमान्त महीना: श्रावण
पूर्णिमान्त महीना: श्रावण
चन्द्र राशि: धनु

आज का विचा

अपने जीवन का आनंद लेने के लिए आपको जो सबसे आवश्यक चीज चाहिए वह है- खुश रहना, बस यही मायने रखता है।

कहेहू तें कछु दुख घटि होई। काहि कहौं यह जान न कोई॥
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा। जानत प्रिया एकु मनु मोरा॥

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भावार्थ:-मन का दुःख कह डालने से भी कुछ घट जाता है। पर कहूँ किससे? यह दुःख कोई जानता नहीं। हे प्रिये! मेरे और तेरे प्रेम का तत्त्व (रहस्य) एक मेरा मन ही जानता है॥

सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं। जानु प्रीति रसु एतनेहि माहीं॥
प्रभु संदेसु सुनत बैदेही। मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही॥

भावार्थ:-और वह मन सदा तेरे ही पास रहता है। बस, मेरे प्रेम का सार इतने में ही समझ ले। प्रभु का संदेश सुनते ही जानकीजी प्रेम में मग्न हो गईं। उन्हें शरीर की सुध न रही॥

आज का भगवद् चिन्तन

संसार को छोड़ना नहीं, समझना है

विष की अल्प मात्रा भी दवा का काम करती है और दवा की अत्यधिक मात्रा भी विष बन जाती है। विवेक से, संयम से जगत का भोग किया जाये तो कहीं समस्या नहीं है। पदार्थों में समस्या नहीं है, हमारे उपयोग करने में समस्या है। संसार का विरोध करके कोई इससे मुक्त नहीं हुआ। बोध से ही इससे ज्ञानीजनों ने पार पाया है। संसार को छोड़ना नहीं, बस समझना है।

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परमात्मा ने पेड़-पौधे, फल-फूल, नदी – वन, पर्वत – झरने और न जाने क्या- क्या हमारे लिए बनाया है। हमारे सुख के लिए, हमारे आनंद के लिए ही तो सबकी रचना की है। अस्तित्व में निरर्थक कुछ भी नहीं है। प्रत्येक वस्तु अपने समय पर और अपनी स्थिति में श्रेष्ठ है। हर वस्तु भगवान की है। कब, कैसे, कहाँ, क्यों और किस निमित्त उसका उपयोग करना है, यह समझ में आ जाये तो जीवन को महोत्सव बनने में देर नहीं लगेगी।

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