जब जब धरती पर धर्म की ग्लानि होती है तब भगवान विष्णु अवतार लेकर धरती को अधर्म से बचाते हैं। गीता में भगवान श्री कृष्ण कहा है-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
अर्थ- हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
अर्थ- साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ।
पंडित उदय शंकर भट्ट
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह अवतरित हुए थे। माना जाता है इस दिन भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष नाम के दैत्य को मारा था। वराह जयंती आज 9 सितंबर, गुरुवार को है। इस मौके पर सुख-समृद्धि की कामना से भगवान विष्णु की विशेष पूजा के साथ व्रत और उपवास किए जाते हैं। साथ ही विष्णु मंदिरों में भजन-कीर्तन भी किए जाते हैं।
भगवान विष्णु का तीसरा अवतार
भगवान विष्णु के 9 अवतार हो चुके हैं। मत्स्य और कूर्म के बाद तीसरा अवतार है वराह। वराह यानी शुकर। इस अवतार के माध्यम से मानव शरीर के साथ परमात्मा का पहला कदम धरती पर पड़ा। मुख शुकर का था, लेकिन शरीर इंसानी था। उस समय हिरण्याक्ष नामक दैत्य ने अपनी शक्ति से स्वर्ग पर कब्जा कर पूरी पृथ्वी को अपने अधीन कर लिया था।
हिरण्याक्ष यानी दूसरे के धन पर नजर रखने वाला
हिरण्य मतलब स्वर्ण यानी सोना और अक्ष मतलब आंखें। इसका अर्थ है कि जिसकी आंखें हमेशा दूसरे के धन पर लगी रहती हों, वो हिरण्याक्ष है। इस नाम का दैत्य भी ऐसा ही था। उसने पूरी धरती पर राज करने, उसे जितने के लिए लोगों को मारना शुरू कर दिया था। संतो को परेशान करने लगा था। इस दैत्य स्वभाव का नाश करने के लिए ही भगवान ने वराह रूप धारण किया।
वराह अवतार से जुड़ी कथा
पुराने समय में दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया तब भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए। भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर सभी देवताओं व ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की। सबके आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया। पृथ्वी का पता लगाने के बाद समुद्र में जाकर अपने दांतों पर रखकर वे धरती को बाहर ले आए।
भगवान वराह ने पहले पृथ्वी की स्थापना की और फिर हिरण्याक्ष को युद्ध के लिए ललकारा। हिरण्याक्ष ने भगवान वराह पर गदा से प्रहार किया, लेकिन पलभर में गदा को छीन प्रभु ने उसे फेंक दिया, इसके बाद भीषण युद्ध में हिरण्याक्ष का भगवान वराह ने वध कर दिया और धरती से बुराई का सर्वनाश कर दिया।