पंडित हर्षमणि बहुगुणा
आज का सूर्योदय सरस्वती वंदना के साथ
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभवस्त्रावृता,
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता,
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा ।।
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं,
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां,
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।
या देवी सर्वभूतेषु विद्या बुद्धिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
आज का दिन भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से अंकित है, आज गणतंत्र दिवस है जो सन् 1950 से मनाया जा रहा है पर आज श्री वसंत पंचमी भी है जो सन् 1947 में भी थी पर उस दिन छब्बीस जनवरी का कोई महत्व नहीं था पर एक सुयोग था कि उस वर्ष पन्द्रह अगस्त को हम स्वतंत्र हुए थे। 1950 से हर वर्ष गणतंत्र दिवस आता है पर श्री वसंत पंचमी उन्नीस वर्ष बाद गणतंत्र दिवस के दिन पहली बार सन् 1966 को और उसके बाद उन्नीस साल बाद आती है। सन् 1947, के बाद सन् 1966, 1985, 2004, व इस वर्ष 2023 को श्री वसंत पंचमी गणतंत्र दिवस के दिन है। इससे पहले आश्विन के महीने अधिक मास आने पर शारदीय नवरात्र में अनेक मनीषियों ने कुछ लिखा था व यह भी लिखा था कि ऐसा कभी नहीं हुआ तब यह आंकलन दिया था कि उन्नीस वर्ष बाद आश्विन मास में अधिक मास आता है, आज गणतंत्र दिवस पर श्री वसंत पंचमी आने पर तरह तरह से आलेख दिखाई दे रहे हैं अतः यह स्पष्ट करने की अभिलाषा जागृत हुई है। इसके कुछ अन्य गणना के कारण भी हैं, जिन्हें फिर कभी स्पष्ट करूंगा।
माघ शुक्ल पञ्चमी को वसन्त पंचमी का पर्व मनाया जाता है, यह पर्व ऋतुराज वसन्त के आगमन का सूचक है, आज से ही होरी और धमार गीत गाए जाते हैं, भगवान को गेंहू और जौ की बालियां अर्पित की जाती हैं, आज के दिन भगवान विष्णु और सरस्वती का विशेष पूजन किया जाता है। लेखनी व पुस्तक की पूजा की जाती है, कई जगह तक्षक पूजन भी किया जाता है। (पंचमी को नाग पंचमी भी कहते हैं) वसन्त कामोद्दीपक होता है, अतः चरक संहिता में स्पष्ट उल्लेख है कि इस ऋतु में वनों का सेवन करना चाहिए, मुख्य रूप से रति और काम की पूजा अर्चना करनी चाहिए। वेदों में भी कहा गया है कि ‘वसन्ते ब्राह्मणमुपनयीत’ अक्षरारम्भ व वेदाध्ययन का उपयुक्त समय आज से ही है।
मधु माधव शब्द मधु से बने हैं, मधु एक विशिष्ट प्रकार का रस है जो जड़ चेतन को उन्मत्त करता है और वसन्त ऋतु में ही इस रस की उत्पत्ति होती है । भगवान विष्णु ने सृष्टि की रचना हेतु ब्रह्मा जी से कहा परन्तु जब सृष्टि की संरचना नहीं हुई व सर्वत्र सुनसान ही दिखाई दिया , उदासी ही उदासी, ऐसा प्रतीत हो रहा था कि किसी पर भी वाणी ही न हो। अतः ब्रह्मा जी ने इस उदासी को दूर करने के लिए अपने कमण्डलु से जल निकाला व वृक्षों पर छिड़का, उन जल कणों से वृक्षों से एक शक्ति उत्पन्न हुई उसके दोनों हाथों में वीणा थी व वह उसे बजा रही थी और दो अन्य हाथों में एक पर पुस्तक व दूसरे पर माला पकड़ी हुई थी। ब्रह्मा जी ने उस देवी से संसार की मूकता को दूर करने की प्रार्थना की। तब उस देवी ने वीणा के मधुर संगीत से सब जीवों को वाणी प्रदान की, अतः उस देवी को सरस्वती का नाम दिया गया। वही सरस्वती विद्या, बुद्धि को देने वाली है। अतः आज के दिन हर घर में सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है। आज के दिन विद्या की अधिष्ठात्री देवी के विषयक जितना भी कहा जाय कम ही कम है। आज से ही विद्याध्ययन प्रारम्भ किया जाय। मां सरस्वती से प्रार्थना है कि हमारी जिह्वा में वास करें। तो आइए आज के पावन पर्व का आनन्द लिया जाए और अपनी वाणी को रस मय बनाया जाय।