पंडित उदय शंकर भट्ट
आज आपका दिन मंगलमयी है, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है। आज ज्येष्ठ मास की 23 गते है। आज जेष्ठ अमावस्या पर शनि जयंती वट सावित्री व्रत है। इस दिन शनि देव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है, जिससे साधक के सभी कष्ट और दुख दूर हो जाते हैं।
शनिदेव को न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है। यही कारण है कि विधिपूर्वक उनकी पूजा करने से व्यक्ति के सभी प्रकार के रोग, दोष और बाधाएं दूर हो जाती हैं।
मान्यता है कि जेष्ठ अमावस्या पर शनिदेव का जन्म हुआ था। शनिदेव भगवान सूर्य और देवी छाया के पुत्र है और यम और यमुना इनके भाई बहन हैं।
शनि जयंती के दिन शनि देव की पूजा करने से शनि की साढ़ेसाती, ढैया और शनि की महादशा के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं। साथ ही जातक को कर्मों के अनुसार शुभ फल की प्राप्ति होती है।
शनि जयंती का महत्व
शनिदेव को नवग्रहों में प्रमुख स्थान प्राप्त है और वह जातक के कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। शनिदेव सबसे धीमी चाल चलते हैं, इसलिए वह जातक जिन्हें शनि की महादशा, साढ़ेसाती या ढैया परेशान कर रही है, उन्हें शनि जयंती के दिन पूजा निश्चित रूप से करनी चाहिए। ऐसा करने से शनिदेव का आशीर्वाद निरंतर बना रहता है।
वट सावित्री व्रत आज, जानें पूजा-विधि, मुहूर्त
वट सावित्री व्रत इस बार 6 जून, बृहस्पतिवार को रखा जाएगा. हिंदू परंपरा में स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए तमाम व्रत का पालन करती हैं. वट सावित्री व्रत भी सौभाग्य प्राप्ति का एक बड़ा व्रत है. ये व्रत ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को मनाया जाता है. अब जानते हैं वट सावित्री व्रत की सामग्री के बारे में.
वट सावित्री व्रत की आवश्यक सामग्री
वट सावित्री की पूजा वट वृक्ष के नीचे की जाती है. वट सावित्री व्रत की पूजा के लिए अपने आस-पास एक वट वृक्ष ढूंढ लें. इस पूजा की अन्य जरूरी सामग्री है- बरगद का फल, सावित्री और सत्यवान की मूर्ति या तस्वीर, भिगोया हुआ काला चना, कलावा, सफेद कच्चा सूत, रक्षासूत्र, बांस का पंखा, सवा मीटर का कपड़ा, लाल और पीले फूल, मिठाई, बताशा, फल, धूप, दीपक, अगरबत्ती, मिट्टी का दीया, सिंदूर, अक्षत, रोली, सवा मीटर का कपड़ा, पान का पत्ता, सुपारी, नारियल, श्रृंगार सामग्री, जल कलश, पूजा की थाली, वट सावित्री व्रत कथा की पुस्तक आदि.
वट सावित्री व्रत पूजन विधि
वट वृक्ष के नीचे सावित्री सत्यवान और यमराज की मूर्ति स्थापित करें. आप चाहें तो इनकी पूजा मानसिक रूप से भी कर सकते हैं. वट वृक्ष की जड़ में जल डालें, फूल-धूप और मिठाई से पूजा करें. कच्चा सूत लेकर वट वृक्ष की परिक्रमा करते जाएं, सूत तने में लपेटते जाएं. उसके बाद 7 बार परिक्रमा करें, हाथ में भीगा चना लेकर सावित्री सत्यवान की कथा सुनें. फिर भीगा चना, कुछ धन और वस्त्र अपनी सास को देकर उनका आशीर्वाद लें. वट वृक्ष की कोंपल खाकर उपवास समाप्त करें.
इस व्रत में क्यों होती है बरगद की पूजा
वट वृक्ष (बरगद) एक देव वृक्ष माना जाता है. ब्रह्मा, विष्णु, महेश और, सावित्री भी वट वृक्ष में रहते हैं. प्रलय के अंत में श्री कृष्ण भी इसी वृक्ष के पत्ते पर प्रकट हुए थे. तुलसीदास ने वट वृक्ष को तीर्थराज का छत्र कहा है. ये वृक्ष न केवल अत्यंत पवित्र है बल्कि काफी ज्यादा दीर्घायु वाला भी है. लंबी आयु, शक्ति, धार्मिक महत्व को ध्यान में रखकर इस वृक्ष की पूजा होती है. पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए इस वृक्ष को ज्यादा महत्व दिया गया है.
क्या करें विशेष?
एक बरगद का पौधा जरूर लगवाएं. बरगद का पौधा लगाने से पारिवारिक और आर्थिक समस्या नहीं होगी. निर्धन सौभाग्यवती महिला को सुहाग की सामग्री का दान करें. बरगद की जड़ को पीले कपड़े में लपेटकर अपने पास रखें.
आज का भगवद् चिंतन
धर्म की प्रेरणा
धर्म मानव जीवन को मैं और मेरे से ऊपर उठकर सबके लिए जीने की प्रेरणा प्रदान करता है। जब धर्म किसी व्यक्ति के जीवन में आता है तो वह अपने साथ विनम्रता जैसे अनेक सद्गुणों को लेकर भी आता है। धर्म के साथ विनम्रता ऐसे ही सहज चली आती है, जैसे फूलों के साथ सुगंध और सूर्य के साथ प्रकाश। जिस प्रकार बिना मेघों के बरसात नहीं हो सकती उसी प्रकार सद्गुणों के अभाव में धर्म भी घटित नहीं हो सकता।
जीवन में जितनी मात्रा में धर्म रहेगा उतनी ही मात्रा में व्यक्ति मानवता के निकट भी रहेगा। मानवता की पाठशाला का नाम ही धर्म है। धर्म ही जीवन में सत्य, प्रेम, करुणा, औदार्य, आत्मीयता, सहजता, सहनशीलता एवं विनम्रता जैसे दैवीय गुणों को प्रकट करता है।इसीलिए शास्त्रों ने उपदेश किया कि जिस जीवन में धर्म नहीं वह जीवन मानवीय मूल्यों से रहित पशुतुल्य ही है।