आज का पंचांग: मैं न होता तो क्या होता?

पंडित उदय शंकर भट्ट

Uttarakhand

आज आपका दिन मंगलमयी हो, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है। आज कर्क संक्रान्ति है।

आज का पंचांग

मंगलवार, जुलाई 16, 2024
सूर्योदय: 05:34 ए एम
सूर्यास्त: 07:20 पी एम
तिथि: दशमी – 08:33 पी एम तक
नक्षत्र: विशाखा – 02:14 ए एम, जुलाई 17 तक
योग: साध्य – 07:19 ए एम तक
करण: तैतिल – 08:01 ए एम तक
द्वितीय करण: गर – 08:33 पी एम तक
पक्ष: शुक्ल पक्ष
वार: मंगलवार
अमान्त महीना: आषाढ़
पूर्णिमान्त महीना: आषाढ़
चन्द्र राशि: तुला – 07:52 पी एम तक
सूर्य राशि: मिथुन – 11:29 ए एम तक
शक सम्वत: 1946 क्रोधी
विक्रम सम्वत: 2081 पिङ्गल

कर्क संक्रान्ति फलम्

  • पशुओं के लिए यह संक्रान्ति अच्छी है।
  • धन और समृद्धि लाती है।
  • लोग खांसी और सर्दी से पीड़ित हो सकते हैं।

आज का विचार

व्यक्ति के व्यक्तित्व को दो शब्द परिभाषित करते है, पहला धैर्य और दूसरा व्यवहार। जिसकी प्रेरणा से आपका चरित्र बदल जाय, वही आपका श्रेष्ठ गुरु है।

मैं न होता तो क्या होता? परन्तु ये क्या हुआ?

वो जो कहलवाता है मुझसे मैं कहता हूँ, वो जो बुलवाता मुझसे मैं बोलता हूँ, वो जो लिखवाता है मुझसे मैं लिखता हूँ इसलिए कि मैं उसका साँस रूपी चाभी भरा एक खिलौना हूँ। इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं। मेरा मन और हृदय साफ़ है।

इसी संदर्भ में …..

सुंदरकांड में एक प्रसंग अवश्य पढ़ें !

“मैं न होता, तो क्या होता?”
“अशोक वाटिका” में जिस समय रावण क्रोध में भरकर, तलवार लेकर, सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा। तब हनुमान जी को लगा कि इसकी तलवार छीन कर, इसका सिर काट लेना चाहिये। किन्तु, अगले ही क्षण, उन्होंने देखा। “मंदोदरी” ने रावण का हाथ पकड़ लिया। यह देखकर वे गदगद हो गये! वे सोचने लगे, यदि मैं आगे बढ़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मैं न होता, तो सीता जी को कौन बचाता? बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मैं न होता तो क्या होता? परन्तु ये क्या हुआ?

सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सौंप दिया! तब हनुमान जी समझ गये, कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं! आगे चलकर जब “त्रिजटा” ने कहा कि “लंका में बंदर आया हुआ है, और वह लंका जलायेगा!” तो हनुमान जी बड़ी चिंता मे पड़ गये, कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नहीं है और त्रिजटा कह रही है कि उन्होंने स्वप्न में देखा है, एक वानर ने लंका जलाई है! अब उन्हें क्या करना चाहिए? जो प्रभु इच्छा! जब रावण के सैनिक तलवार लेकर हनुमान जी को मारने के लिये दौड़े, तो हनुमान ने अपने को बचाने के लिए तनिक भी चेष्टा नहीं की और जब “विभीषण” ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो हनुमान जी समझ गये कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया है।  आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नहीं जायेगा, पर पूंछ में कपड़ा लपेट कर, घी डालकर, आग लगाई जाये।

तो हनुमान जी सोचने लगे कि लंका वाली त्रिजटा की बात सच थी, वरना लंका को जलाने के लिए मैं कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता, और कहां आग ढूंढता? पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया! जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं, तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है।

इसलिये सदैव याद रखें, कि संसार में जो हो रहा है, वह सब ईश्वरीय विधान है। हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं। इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि…
मैं न होता, तो क्या होता ?

ना मैं श्रेष्ठ हूँ,
ना ही मैं ख़ास हूँ,

मैं तो बस छोटा सा,
ईश्वर का दास हूँ॥

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