आज मकर संक्रांति का पर्वकाल: जानिए, शुभ-अशुभ मुहूर्त का समय

पंडित उदय शंकर भट्ट

Uttarakhand

सुप्रभातम्

आज आपका दिन मंगलमयी रहे, यही शुभकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज सोमवार को भी प्रस्तुत कर रहा है आपके लिए पंचांग, जिसको देखकर आप बड़ी ही आसानी से पूरे दिन की प्लानिंग कर सकते हैं। अगर आप आज कोई नया कार्य आरंभ करने जा रहे हैं तो आज के शुभ मुहूर्त में ही कार्य करें ताकि आपके कार्य सफलता पूर्वक संपन्न हो सकें।

आज मकर संक्रांति का पर्वकाल मनाया जाएगा। रविवार रात्रि में सूर्यदेव के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही मलमास समाप्त हो गया है। आज सूर्यदेव को अर्घ्य देकर अपने सुख-समृद्धि की कामना करें। जातक आज भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक अवश्य करें। किसी जरूरतमंद को यथाशक्ति दान अवश्य करें। आसपास बेजुबानों को भी कुछ खिलाएं। याद रखिए कि परमात्मा दिखावा और पाखंड से कभी खुश नहीं होता। समझदार के लिए ईशारा ही काफी होता है।

संक्रान्ति फलम्

  • वस्तुओं की लागत सामान्य होगी।
  • जीवन में स्थिरता लाती है।
  • लोग खांसी और ठण्ड से पीड़ित होंगे।
  • बारिश के अभाव में सूखे की सम्भावना बनेगी।

आज मकर संक्रांति के पावन पर्व पर भगवान सूर्यदेव के आदित्यहृदय स्त्रोत का पाठ किया जा सकता है। आदित्यहृदयम् सूर्य देव की स्तुति के लिए वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड मे लिखे मंत्र हैं। जब भगवान राम रावण से युद्ध के लिये रणक्षेत्र में आमने-सामने थे, उस समय अगस्त्य ऋषि ने श्री राम को सूर्य देव की स्तुति करने की सलाह दी। आदित्यहृदयम् में कुल ३० श्लोक हैं। आज के समय में आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ प्रसन्नता, आत्मविश्वास के साथ-साथ कार्यों में सफलता पाने तथा मनोकामना सिद्ध करने में किया जाता है।

अथ श्री आदित्य हृदय स्तोत्रम्॥

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥१॥
अर्थ: (भगवान् श्रीराम) युद्ध से थककर, कुछ चिन्ता करते हुये युद्धभूमि में खड़े हैं। रावण युद्ध करने के लिये उनके सामने आकर खड़ा हो गया है ।

देवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥२॥
अर्थ: 
भगवान् अगस्त्य देवताओं के साथ युद्ध को देखने के लिये वहाँ आये । उन्होंने यह (रावण को राम के सम्मुख) देखकर राम के समीप जाकर कहा।

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ||४||
अर्थ: यह ‘आदित्य-हृदय स्तोत्र’ पवित्र और सारे शत्रुओं को नष्ट करने वाला है । इस अक्षय और परम कल्याणकारी स्तोत्र का नित्य जप करने से विजय मिलती है ।

सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनम् आयुर्वर्धनम् उत्तमम् ॥५॥
अर्थ: 
यह सभी प्राणियों का मंगल करने वाला, सारे पापों को नष्ट करने वाला, चिन्ता और शोक का शमन करने वाला और आयु को बढ़ाने वाला उत्तम स्तोत्र है ।

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥६॥
अर्थ: 
रश्मिमान् (अनन्त किरणों से सुशोभित), समुद्यन् (नित्य उदय होने वाले), भास्कर (प्रभा का विस्तार करने। वाले), भुवनेश्वर (जगत् के स्वामी), देवों और असुरों द्वारा नमस्कृत भगवान् विवस्वान् का पूजन करो ।

सर्वदेवतात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥७॥
अर्थ: 
सारे देवता इन्हीं के स्वरूप हैं । ये तेजस्वी और अपनी किरणों से संसार को स्फूर्ति देने वाले हैं । अपनी किरणों को फैलाकर ये देवों और असुरों के साथ-ही-साथ सारे लोकों का भी पालन करते हैं।

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ॥८॥
अर्थ: ये ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इन्द्र, धन प्रदान करने वाले कुबेर, काल, यम, सोम (चन्द्रमा) और जल के स्वामी वरुण देव हैं ।

पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ।
वायुर्वह्निः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ॥९॥
अर्थ: ये ही पितर, वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुद्गण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं के कारक (कर्ता) और प्रभा के स्रोत हैं ।

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः ॥१०॥
अर्थ: आदित्य (अदिति के पुत्र), सविता (संसार को उत्पन्न करने वाले), सूर्य, खग (आकाश में विचरण करने वाले), पूषा (पोषण करने वाले), गभस्तिमान (प्रकाशमान), सुवर्ण सदृश (सोने के समान), भानु (प्रकाश करने वाले), हिरण्यरेता (ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के कारक), दिवाकर (दिन का प्रकाश करने वाले) ।

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥११॥
अर्थ: हरिदश्व, सहस्रार्चि (हजारों किरणों से शोभायमान), सप्तसप्ति (सात घोड़ों वाले), मरीचिमान् (किरणों से सुशोभित), तिमिरोन्मथन (अंधकार दूर करने वाले), शम्भु (कल्याण करने वाले), त्वष्टा (भक्तों का दुख दूर करने वाले), मार्तण्डक (ब्रह्माण्ड को जीवन देने वाले), अंशुमान (किरणों को धारण करने वाले)।

हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहस्करो रविः ।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः ॥१२॥
अर्थ: हिरण्यगर्भ, शिशिर (सुख देने के स्वभाव वाले), तपन (गर्मी करने वाले), अहस्कर (दिन करने वाले), रवि, अग्निगर्भ (गर्भ में अग्नि धारण करने वाले), अदिति के पुत्र, शंख, शिशिरनाशन (ठण्ड को दूर करने वाले) ।

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुः सामपारगः ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥१३॥
अर्थ: व्योमनाथ (आकाश के स्वामी), तमोभेदी (अंधकार को भेदने वाले), ऋग्वेद-यजुर्वेद सामवेद के पारगामी, घनवृष्टि (वर्षा कराने वाले), अपां मित्र (जल बनाने वाले), विन्ध्यवीथीप्लवंगम (आकाश में तेज गति से चलने वाले ) ।

आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भवः ॥१४॥
अर्थ: आतपी, मण्डली (रश्मि-पुंज को धारण करने वाले), मृत्यु, पिंगल (भूरे रंग वाले), सर्वतापन (सभी को गर्मी देने वाले), कवि (तीनों कालों के ज्ञाता), विश्व, महातेजवान्, रक्त (लाल रंग वाले), सर्वभवोद्भव (सभी प्राणियों को उत्पन्न करने वाले) ।

आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भवः ॥१४॥
अर्थ: आतपी, मण्डली (रश्मि-पुंज को धारण करने वाले), मृत्यु, पिंगल (भूरे रंग वाले), सर्वतापन (सभी को गर्मी देने वाले), कवि (तीनों कालों के ज्ञाता), विश्व, महातेजवान्, रक्त (लाल रंग वाले), सर्वभवोद्भव (सभी प्राणियों को उत्पन्न करने वाले) ।

नक्षत्रग्रहताराणाम् अधिपो विश्वभावनः ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥१५॥
अर्थ: नक्षत्रों ग्रहों-तारों के अधिपति, विश्वभावन (विश्व के रक्षक), तेजस्वियों में भी सबसे अधिक तेजस्वी, द्वादशात्मा (बारह रूपों वाले) – (इन नामों वाले) तुम्हें नमस्कार है ।

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥१६॥
अर्थ: पूर्वगिरि (उदयाचल) के रूप में नमस्कार है, पश्चिमगिरि (अस्ताचल) के रूप में नमस्कार है। ज्योतिर्गणों (प्रकाश करने वाले समूहों तारों, ग्रहों आदि) के अधिपति और दिन के स्वामी को नमस्कार है ।

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥१७॥
अर्थ: जय, जयभद्र और हर्यश्व (विविध रंगों के घोड़ों वाले) -को बारम्बार नमस्कार है । सहस्रांश (हजारों किरणों से सुशोभित) को नमस्कार है । आदित्य को नमस्कार है ।

नमः उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः ।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तुते || १८ |।
अर्थ: 
उग्र, वीर, सारंग (शीघ्र चलने वाले) को नमस्कार है। पद्मप्रबोध (कमलों को विकसित करने वाले) को नमस्कार है । प्रचण्ड तेज वाले, तुम्हें नमस्कार है ।

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूराय आदित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥१९॥
अर्थ: ब्रह्मा शिव और विष्णु के स्वामी, सूर, सूर्यमण्डल रूपी तेज वाले, प्रकाश से परिपूर्ण, सभी का संहार करने वाले, रौद्र रूप वाले को नमस्कार है ।

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ॥२०॥
अर्थ: अंधकार दूर करने वाले, ठंड दूर करने वाले, शत्रु- संहार करने वाले, अमित स्वरूप वाले, कृतघ्नों का नाश करने वाले, ज्योतियों के स्वामी, देवता को नमस्कार है ।

तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥२१॥
अर्थ: तपाये हुये सोने के समान आभा वाले, हरि, विश्वकर्मा, अंधकार का नाश करने वाले, रुचि (प्रकाश स्वरूप), संसार के साक्षी को नमस्कार है ।

नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभुः ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ||२२||
अर्थ: ये सूर्यदेव ही सभी प्राणियों का नाश करते हैं, ये ही उनका सृजन (उत्पत्ति) करते हैं, ये ही उनका पालन करते हैं । ये ही गर्मी देते हैं और ये ही वर्षा करते हैं ।

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥२३॥
अर्थ: ये सभी प्राणियों में (अन्तर्यामी रूप में) स्थित होकर उनके सोने पर जागते रहते हैं। ये ही अग्निहोत्र हैं और अग्निहोत्री को मिलने वाले फल भी ये ही हैं ।

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ॥ २४ ॥
अर्थ: देवता, किये गये कार्य (यज्ञ) और उन कार्यों का फल भी ये ही हैं। सारे संसार में जो भी कार्य होते हैं, उन सभी कार्यों का फल देने वाले प्रभु भी ये ही हैं ।

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥ २५॥
अर्थ: हे राघव ! विपत्तियों में, कष्ट होने पर, दुर्गम राहों में | और भय होने पर इनका कीर्तन (जाप) करने वाले पुरुष को किसी भी प्रकार का दुख नहीं होता है ।

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यति ॥ २६ ॥
अर्थ: इन संसार के स्वामी, देवों के भी देव (भगवान् सूर्य) की तुम एकाग्र मन से पूजा करो। इसका तीन बार जप करने पर युद्ध में तुम्हारी ही जीत (विजय) होगी । |

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥२७॥
अर्थ: हे महाबाहो ! तुम इसी क्षण रावण को मार सकोगे । यह कहकर अगस्त्य ऋषि जिस प्रकार से आये थे, उसी प्रकार से ही चले गये ।

एतत् श्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा ।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥२८॥
अर्थ: 
यह सुनकर महातेजस्वी राघव का शोक नष्ट हो गया। उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक शुद्ध मन से इसे धारण किया ।

आदित्यं प्रेक्ष्य जपत्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥२९॥
अर्थ: तीन बार आचमन करके शुद्ध होकर भगवान् आदित्य को देखते हुये इस स्तोत्र का जप करने से उन्हें परम हर्ष हुआ । फिर पराक्रमी (भगवान् श्रीराम) धनुष लेकर ।

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागमत् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥३०॥
अर्थ: रावण की ओर देखते हुये विजय प्राप्ति के लिये आगे बढ़े । सारे प्रयास कर (अवश्य ही उसका वध करूँगा- ऐसा उन्होंने निश्चय किया ।

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥३१॥
अर्थ: भगवान् सूर्य ने श्रीराम की ओर प्रसन्न होकर देखा । राक्षसराज रावण के विनाश का समय जानकर देवताओं के मध्य जाकर भगवान् सूर्य बोले- जल्दी करो ।

॥ इति श्रीआदित्यहृदयस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

आज का भगवद् चिंतन

संघर्षशील बनें

जिस जीवन में संघर्ष नहीं होगा उस जीवन में सुख – समृद्धि एवं शांति रुपी मधुर फलों की प्राप्ति भी नहीं हो सकती।संघर्ष वो वृक्ष है जिसकी जडें कड़वी जरूर होती हैं मगर उसके फल बड़े ही मधुर होते हैं। जिस जीवन में आज जितनी मधुरता है उस जीवन में कभी उतना ही संघर्ष भी रहा होगा।

अक्सर हम लोग मधुर फल तो चाहते हैं लेकिन संघर्ष रूपी कड़वाहट का स्वाद नहीं लेना चाहते हैं। हम ये भूल जाते हैं कि जीवन की मधुरता की जड़ संघर्ष है। जो इस कड़वाहट से बचने की कोशिश करते हैं वो जीवन की मधुरता से भी वंचित रह जाते हैं ।

जिसके जीवन का संघर्ष जितना बड़ा होगा उसके जीवन में उतनी मिठास होगी। पहले संघर्ष और फिर मिठास यही तो जीवन का नियम है। भगवान श्री राम के संघर्षों ने उन्हें जन-जन का प्रिय प्रभु राम बना दिया तो योगेश्वर श्रीकृष्ण के संघर्षों ने उन्हें महानायक बना दिया।

आज का पंचांग

सोमवार, जनवरी 15, 2024
सूर्योदय: 07:15
सूर्यास्त: 17:46
तिथि: पञ्चमी – 02:16, जनवरी 16 तक
नक्षत्र: शतभिषा – 08:07 तक
क्षय नक्षत्र: पूर्व भाद्रपद – 06:10, जनवरी 16 तक
योग: वरीयान् – 23:11 तक
करण: बव – 15:35 तक
द्वितीय करण: बालव – 02:16, जनवरी 16 तक
पक्ष: शुक्ल पक्ष
वार: सोमवार
अमान्त महीना: पौष
पूर्णिमान्त महीना: पौष
चन्द्र राशि: कुम्भ – 00:37, जनवरी 16 तक
सूर्य राशि: मकर
शक सम्वत: 1945 शोभकृत्
विक्रम सम्वत: 2080 नल

तिथि पंचमी 26:19 तक
नक्षत्र शतभिषा 07:59 तक
प्रथम करण  बव 15:38 तक
द्वितीय करण  बालव 26:19 तक
पक्ष शुक्ल
वार सोमवार
योग वरीघा 23:08 तक
सूर्योदय 07:19
सूर्यास्त 17:42
चंद्रमा कुंभ
राहुकाल 08:37 − 09:55
विक्रमी संवत् 2080
शक संवत 1944
मास पौष
शुभ मुहूर्त अभिजीत 12:10 − 12:51

पढ़ते रहिए हिमशिखर खबर, आपका दिन शुभ हो… 

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