पंडित उदय शंकर भट्ट
सुप्रभातम्,
आज आपका दिन मंगलमयी रहे, यही शुभकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज शनिवार को भी प्रस्तुत कर रहा है आपके लिए पंचांग, जिसको देखकर आप बड़ी ही आसानी से पूरे दिन की प्लानिंग कर सकते हैं।
आज का पंचांग
सूर्योदय: 07:14
सूर्यास्त: 17:50
तिथि: दशमी – 19:26 तक
नक्षत्र: कृत्तिका – 03:09, जनवरी 21 तक
योग: शुभ – 11:06 तक
करण: तैतिल – 07:35 तक
द्वितीय करण: गर – 19:26 तक
पक्ष: शुक्ल पक्ष
वार: शनिवार
अमान्त महीना: पौष
पूर्णिमान्त महीना: पौष
चन्द्र राशि: मेष – 08:53 तक
सूर्य राशि: मकर
शक सम्वत: 1945 शोभकृत्
विक्रम सम्वत: 2080 नल
तिथि | दशमी | 19:26 तक |
नक्षत्र | कृत्तिका | 27:09 तक |
प्रथम करण | तैतिल | 07:36 तक |
द्वितीय करण | गर | 19:26 तक |
पक्ष | शुक्ल | |
वार | शनिवार | |
योग | शुभ | 11:05 तक |
सूर्योदय | 07:14 | |
सूर्यास्त | 17:49 | |
चंद्रमा | वृषभ | 08:52 |
राहुकाल | 09:53 से 11:13 | |
विक्रमी संवत् | 2080 | |
शक संवत | 1944 | |
मास | पौष | |
शुभ मुहूर्त | अभिजीत | 12:10 − 12:53 |
अधर्मी बलवान होने पर भी भयभीत रहता है
श्रीमदभगवद्गीता का एक प्रसंग है, जो हमें सन्मार्ग की ओर प्रेरित करता है तथा आत्म कल्याण में प्रवृत करता है। कौरवों की ग्यारह अक्षौहिणी सेना के शंख आदि बाजे बजे तो उनके शब्द का पांडव सेना पर कुछ भी असर नहीं हुआ, पर पांडवों की सात अक्षौहिणी सेना के शंख बजे तो उनके शब्द से कौरव सेना के हृदय विदीर्ण हो गए, संजय धृतराष्ट से कुरुक्षेत्र का वर्णन करते हुए कहते हैं। शंख ध्वनि के भयानक शब्द ने आपके पक्ष वालों के हृदय विदीर्ण कर दिए।
अब प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों हुआ? तो इसका समाधान यह है जिनके हृदय में अधर्म, पाप, अन्याय नहीं है, अर्थात जो धर्म पूर्वक अपने कर्तव्य का पालन करते हैं, उनका हृदय मजबूत होता है, उनके हृदय में भय नहीं होता। न्याय का पक्ष होने से उनमें उत्साह होता है। सूर्य वीरता होती है।
दुर्योधन आदि ने पांडवों को अन्याय पूर्वक मारने का बहुत प्रयास किया था। उन्होंने छल- कपट से अन्याय पूर्वक पांडवों का राज्य छीना था और उनको बहुत कष्ट दिए थे। इस कारण उनके ह्रदय कमजोर हो गए थे। श्री रामचरितमानस में भी इस प्रकार का एक उदाहरण आता है। लंकापति रावण से त्रिलोकी डरती थी। वही रावण जब सीता जी का हरण करने जाता है, तब वह स्वयं भयभीत होकर इधर-उधर देखता है। उसकी स्थिति उस कुत्ते जैसी हो गई थी, जो किसी घर में चोरी से घुस रहा हो।
सून बीच दसकंधर देखा। आवा निकट जती के बेषा॥ जाके डर सुर असुर डेराही। निसि न नीद दिन अन्न न खाही॥ सो दससीस स्वान की नाई। इत उत चितइ चला भडिहाई॥ इमि कुपंथ पग देत खगेसा। रह न तेज तन बुधि बल लेसा॥ इसीलिए अन्याय, अधर्म युक्त, आचरण कभी न करना चाहिए।
आज का भगवद् चिन्तन
गृहस्थ में योग
हमारा जीवन भोगमय नहीं योगमय होना चाहिए। सफलता अकेले नहीं आती वह अपने साथ अभिमान को लेकर भी आती है और यही अभिमान हमारे दुखों का कारण बन जाता है। ऐसे ही असफलता भी अकेले नहीं आती, वह भी अपने साथ निराशा को लेकर आती है और निराशा प्रगति पथ में एक बड़ी बाधा उत्पन्न कर देती है। हम अपने जीवन को योगी बनाकर जिएं अथवा भोगी बनाकर ये व्यक्ति के स्वयं के ऊपर निर्भर है।
दु:ख, कटुवचन और अपमान सहने की क्षमता का विकास तथा सुख, प्रशंसा और सम्मान पचाने की सामर्थ्य ही गृहस्थ धर्म का योग भी है। हर स्थिति का मुस्कराकर सामना करने की क्षमता, किसी भी स्थिति को अच्छी या बुरी ना कहकर समभाव में रहते हुए अपने कर्तव्य पथ पर निरंतर आगे बढ़ने का कौशल, यही जीवन का योग है। योगमय जीवन ही योगेश्वर तक पहुंचाता है।
पढ़ते रहिए हिमशिखर खबर, आपका दिन शुभ हो…