आज का पंचांग: 27 जनवरी, शुभ-अशुभ मुहूर्त का समय

Uttarakhand

सुप्रभातम्,

आज आपका दिन मंगलमयी रहे, यही शुभकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज शनिवार को भी प्रस्तुत कर रहा है आपके लिए पंचांग, जिसको देखकर आप बड़ी ही आसानी से पूरे दिन की प्लानिंग कर सकते हैं।

आज का भगवद् चिन्तन

 सत्संग का फल

धन्य घड़ी सोई जब सत्संगा।

किसी व्यक्ति के जीवन को देखकर यह समझा जा सकता है कि उसने जीवन में किस प्रकार का संग किया होगा। जीवन में संग का बहुत बड़ा प्रभाव होता है। जीवन में सत्संग की प्राप्ति जीवन उत्थान एवं आनंद का मूल है।पारस मणि का संग पाकर लोहा भी स्वर्ण बन जाता है, उसी प्रकार श्रेष्ठ का संग करने से जीवन मूल्यवान एवं श्रेष्ठ अवश्य बन जाता है।

अन्न, धन, ऐश्वर्य, वैभव, पद, प्रतिष्ठा, मान, सम्मान, बल, बुद्धि भले ही जीवन में सब हो लेकिन सुसंग ना हो तो सब स्वर्ण कलश में सुरा के समान ही है। वस्तुएं होते हुए भी वस्तुओं का श्रेष्ठतम उपयोग करना ये हमें सत्संग ही सिखाता है। सत्संग वो चिकित्सालय है, जहाँ मन के समस्त विकारों, मन के समस्त रोगों का पूर्ण निवारण किया जाता है।

आज का विचार

जिंदगी का रास्ता कभी बना- बनाया नही मिलता है, स्वयं को बनाना पड़ता है। जिसने जैसा मार्ग बनाया उसे वैसी ही मंजिल मिलती है

आज का पंचांग

शनिवार, जनवरी 27, 2024
सूर्योदय: 07:12
सूर्यास्त: 17:56
तिथि: द्वितीया – 03:36, जनवरी 28 तक
नक्षत्र: अश्लेशा – 13:01 तक
योग: आयुष्मान् – 08:09 तक
करण: तैतिल – 14:25 तक
द्वितीय करण: गर – 03:36, जनवरी 28 तक
पक्ष: कृष्ण पक्ष
वार: शनिवार
अमान्त महीना: पौष
पूर्णिमान्त महीना: माघ
चन्द्र राशि: कर्क – 13:01 तक
सूर्य राशि: मकर
शक सम्वत: 1945 शोभकृत्
विक्रम सम्वत: 2080 नल

तिथि द्वितीया 27:37 तक
नक्षत्र आश्लेषा 13:01 तक
प्रथम करण तैतिल 14:26 तक
द्वितीय करण गर 27:37 तक
पक्ष कृष्ण
वार शनिवार
योग आयुष्मान 08:08 तक
सूर्योदय 07:12
सूर्यास्त 17:55
चंद्रमा सिंह 13:01 तक
राहुकाल 09:53 से 11:13
विक्रमी संवत् 2080
शक संवत 1944
मास माघ
शुभ मुहूर्त अभिजीत 12:12 − 12:55

गीता अध्याय 1 श्लोक 1


धृतराष्ट्र उवाच।

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय।।

धृतराष्ट्रः उवाच-धृतराष्ट्र ने कहा; धर्म-क्षेत्र धर्मभूमिः कुरू-क्षेत्र-कुरुक्षेत्र समवेता:-एकत्रित होने के पश्चात; युयुत्सवः-युद्ध करने को इच्छुक; मामकाः-मेरे पुत्रों; पाण्डवाः-पाण्डु के पुत्रों ने; च तथा; एव-निश्चय ही; किम्-क्या; अकुर्वत-उन्होंने किया; संजय हे संजय।

धृतराष्ट्र ने कहाः हे संजय! कुरुक्षेत्र की पवित्र भूमि पर युद्ध करने की इच्छा से एकत्रित होने के पश्चात, मेरे और पाण्डु पुत्रों ने क्या किया?

गीता अध्याय 1 श्लोक 2

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सञ्जय उवाच।
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा।
आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत् ॥2॥

संजयः उवाच – संजय ने कहा ; दृष्ट्वा – देखने पर ; तू – और; पाण्डवानीकं – पाण्डव सेना को ; व्यूढं – वज्र व्यूह से खड़ी हुई; दुर्योधनः – राजा दुर्योधन ; तदा – उस समय; आचार्यम् – द्रोणाचार्य ; उपसंगम्य – पास जाकर; राजा – राजा ; वचनम् – शब्द ; अब्रावित् – बोला

गीता अध्याय 1 श्लोक 3


पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।

व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता।। 3।।

पश्य – देखिए ; एताम् – यह ; पाण्डु-पुत्रानाम् – पाण्डु के पुत्रों (पांडवों की); आचार्य – आदरणीय शिक्षक; महतीम् – शक्तिशाली; चमूम् – सेना ; व्यूढाम् – व्यूह रचना से खड़ी की हुई; द्रुपद-पुत्रेण – द्रुपद पुत्र धृष्टद्युम्न के द्वारा, तव – आपके; शिष्येण – शिष्य; धीमाता – बुद्धिमान

दुर्योधन ने कहा: आदरणीय गुरु! आपके ही प्रतिभाशाली शिष्य, द्रुपद के पुत्र द्वारा युद्ध के लिए इतनी कुशलता से तैयार की गई पांडु पुत्रों की शक्तिशाली सेना को देखिए।

धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो

प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो

गौ माता की जय हो।

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