पंडित उदय शंकर भट्ट
आज आपका दिन मंगलमयी है, यही मंगलकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज भी आपके लिए पंचांग प्रस्तुत कर रहा है। आज रविवार का दिन है। आज 23 गते वैशाख है।
आज का पंचांग
रविवार, मई 5, 2024
सूर्योदय: 05:37
सूर्यास्त: 18:59
तिथि: द्वादशी – 17:41 तक
नक्षत्र: उत्तर भाद्रपद – 19:57 तक
योग: वैधृति – 07:37 तक
क्षय योग: विष्कम्भ – 04:04, मई 06 तक
करण: कौलव – 07:11 तक
द्वितीय करण: तैतिल – 17:41 तक
क्षय करण: गर – 04:11, मई 06 तक
पक्ष: कृष्ण पक्ष
वार: रविवार
अमान्त महीना: चैत्र
पूर्णिमान्त महीना: वैशाख
चन्द्र राशि: मीन
सूर्य राशि: मेष
कर्म का महत्व
गीता एक धार्मिक और आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि एक जीवनोपयोगी मनोवैज्ञानिक ग्रंथ भी है, लेकिन इस सब के बावजूद भी क्या हम गीता से जुड़े हुए हैं? गीता में कहा गया है कि मनुष्य फल की इच्छा से रहित होकर कर्म करे। मनुष्य के लिए सबसे अनिवार्य है कर्म। विभिन्न पुस्तकों के माध्यम से मनीषियों द्वारा इस संसार सागर को पार करने अथवा मोक्ष प्राप्ति के तीन मार्ग बतलाए गए हैं-भक्ति, ज्ञान और कर्म। जो व्यक्ति नियमित रूप से कर्म करता हुआ व्यस्त रहता है उसे बाकी चीजों के लिए न तो समय ही मिल पाता है और न उसे बाकी चीजों की जरूरत ही रह जाती है।
भारतीय मनीषियों में स्वामी रामतीर्थ ने तो कर्म को ही सबसे अधिक महत्व दिया है। उनके लिए मानव मात्र की सेवा ही सबसे बड़ी आध्यात्मिकता है जो सात्विक और निष्काम कर्म का ही एक उत्तम रूप है। कुछ लोग अच्छे साधक भी होते हैं इसमें संदेह नहीं, लेकिन थोड़ी सफलता प्राप्त कर लेने के बाद प्राय: अहंकारी हो जाते हैं। भक्ति और ज्ञान की तरह कर्म के मार्ग में ये खतरे नहीं हैं। निरंहकार रहकर अपने कर्म, सेवा अथवा मजदूरी द्वारा दूसरों की मदद करने वाला किसी भी प्रकार से एक योगी से कम नहीं। एक किसान अथवा मजदूर सबसे बड़ा योगी है, क्योंकि पूरे संसार के लोगों का पेट भरने की खातिर वह चुपचाप कर्म रूपी मौन साधना में रत रहता है।
गीता के पठन-पाठन और स्वाध्याय के महत्व को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन क्या केवल गीता सुनने, उसका संदेश रटने मात्र से धर्म लाभ हो सकता है? शायद नहीं। गीता जीवनग्रंथ है। यह जीवन जीने की कला सिखाता है। जब तक जीवन जीने की कला का व्यावहारिक उपयोग नहीं किया जाता, वह व्यर्थ है। गीता का पठन-पाठन और स्वाध्याय जरूरी है ताकि इसका संदेश स्पष्ट हो सके, लेकिन गीता का महत्व गीता से यथार्थ रूप में जुड़ने अर्थात जीवन में कर्म को सर्वोपरि मानने और कर्म में संलग्न होने में है और वह भी पूर्णत: निष्काम भाव से।