पंडित उदय शंकर भट्ट
आज आपका दिन मंगलमयी रहे, यही शुभकामना है। ‘हिमशिखर खबर’ हर रोज की तरह आज रविवार को भी प्रस्तुत कर रहा है आपके लिए पंचांग, जिसको देखकर आप बड़ी ही आसानी से पूरे दिन की प्लानिंग कर सकते हैं। अगर आप आज कोई नया कार्य आरंभ करने जा रहे हैं तो आज के शुभ मुहूर्त में ही कार्य करें ताकि आपके कार्य सफलता पूर्वक संपन्न हो सकें। ज्योतिष एवं धर्म की दृष्टि से इन मुहूर्तों का विशेष महत्व है।
रविवार का दिन सूर्य देव को समर्पित किया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन उगते सूरज को अर्घ्य देने से इंसान को सूर्य की तरह तेज की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही उनको अपने जीवन में सफलता मिल सकती है।
आज सफला एकादशी का व्रत रखा जाएगा। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखकर जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा और सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करता है उसके सभी काम सफल हो जाते हैं।
सनातन पञ्चाङ्ग की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। एक पूर्णिमा होने पर और दूसरी अमावस्या होने पर। पूर्णिमा से आगे आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के उपरान्त आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं। इन दोनों प्रकार की एकादशियोँ का सनातन हिन्दू धर्म में बहुत महत्त्व है।
आज का विचार
स्वप्न की सृष्टि अल्पकालीन और विचित्र होती है। मनुष्य जब जागता है तब जानता है कि मैं पलंग पर सोया हूँ। मुझे स्वप्न आया। स्वप्न में पदार्थ, देश, काल, क्रिया इत्यादि पूरी सृष्टि का सर्जन हुआ । लेकिन मेरे सिवाय और कुछ भी न था। स्वप्न की सृष्टि झूठी थी। इसी प्रकार तत्त्वज्ञानी पुरुष अज्ञानरूपी निद्रा से ज्ञानरूपी जाग्रतावस्था को प्राप्त हुए हैं। वे कहते हैं कि एक ब्रह्म के सिवा और कुछ है ही नहीं। जैसे स्वप्न से जागने के बाद हमें स्वप्न की सृष्टि मिथ्या लगती है, वैसे ही ज्ञानवान को यह जगत मिथ्या लगता है।
आज का पंचांग
रविवार, जनवरी 7, 2024
सूर्योदय: 07:15
सूर्यास्त: 17:39
तिथि: एकादशी – 00:46, जनवरी 08 तक
नक्षत्र: विशाखा – 22:08 तक
योग: शूल – 04:53, जनवरी 08 तक
करण: बव – 12:50 तक
द्वितीय करण: बालव – 00:46, जनवरी 08 तक
पक्ष: कृष्ण पक्ष
वार: रविवार
पूर्णिमान्त महीना: पौष
चन्द्र राशि: तुला – 16:02 तक
सूर्य राशि: धनु
शक सम्वत: 1945 शोभकृत्
विक्रम सम्वत: 2080 नल
तिथि | एकादशी | 24:41 तक |
नक्षत्र | विशाखा | 21:56 तक |
प्रथम करण द्वितीय करण |
बव बालव |
12:46 तक 24:41 तक |
पक्ष | कृष्ण | |
वार | रविवार | |
योग | शुला | 28:47 तक |
सूर्योदय | 07:19 | |
सूर्यास्त | 17:36 | |
चंद्रमा | तुला | |
राहुकाल | 16:19 − 17:36 | |
विक्रमी संवत् | 2080 | |
शक सम्वत | 1944 | |
मास | पौष | |
शुभ मुहूर्त | अभिजीत | 12:07 − 12:48 |
सफला एकादशी आज
हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है। सफला एकादशी भगवान विष्णु को बेहद प्रिय है। सफला एकादशी अपने नाम के अनुसार सभी कार्य में सफलता दिलाने वाली और मनोकामना पूर्ण करने वाली मानी जाती है। कहा जाता है कि सफला एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं सफला एकादशी की तिथि, पूजा विधि और महत्व के बारे में…
सफला एकादशी पूजा विधि
- सफला एकादशी पर आज सुबह स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णु को ध्यान करते हुए उन्हें पंचामृत से स्नान करवाएं।
- इसके बाद गंगा जल से स्नान करवा कर भगवान विष्णु को कुमकुम-अक्षत लगाएं।
- सफला एकादशी की कथा का श्रवण या वाचन करें और दीपक और कपूर से श्री हरि की आरती उतारें एवं प्रसाद सभी में वितरित करें।
- भगवान विष्णु के पंचाक्षर मंत्र ‘‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’’ का यथा संभव तुलसी की माला से जाप करें।
- इसके बाद शाम के समय भगवान विष्णु के मंदिर अथवा उनकी मूर्ति के समक्ष भजन-कीर्तन का कार्यक्रम करें।
- इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु सहित देवी लक्ष्मी की पूजा करने से इस जीवन में धन और सुख की प्राप्ति होती है।
सफला एकादशी कथा
चम्पावती नाम से विख्यात एक पुरी है, जो कभी राजा माहिष्मत की राजधानी थी। राजर्षि माहिष्मत के पाँच पुत्र थे। उनमें जो ज्येष्ठ था, वह सदा पापकर्म में ही लगा रहता था। उसने पिता के धन को पापकर्म में ही खर्च किया। वह सदा दुराचारपरायण तथा वैष्णवों और देवताओं की निन्दा किया करता था। अपने पुत्र को ऐसा पापाचारी देखकर राजा माहिष्मत ने राजकुमारों में उसका नाम लुम्भक रख दिया। फिर पिता और भाईयों ने मिलकर उसे राज्य से बाहर निकाल दिया। लुम्भक गहन वन में चला गया। वहीं रहकर उसने प्राय: समूचे नगर का धन लूट लिया । एक दिन जब वह रात में चोरी करने के लिए नगर में आया तो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया । किन्तु जब उसने अपने को राजा माहिष्मत का पुत्र बतलाया तो सिपाहियों ने उसे छोड़ दिया । फिर वह वन में लौट आया और मांस तथा वृक्षों के फल खाकर जीवन निर्वाह करने लगा। उस दुष्ट का विश्राम स्थान पीपल वृक्ष बहुत वर्षों पुराना था । उस वन में वह वृक्ष एक महान देवता माना जाता था। पापबुद्धि लुम्भक वहीं निवास करता था ।
एक दिन किसी संचित पुण्य के प्रभाव से उसके द्वारा एकादशी के व्रत का पालन हो गया। पौष मास में कृष्णपक्ष की दशमी के दिन पापिष्ठ लुम्भक ने वृक्षों के फल खाये और वस्त्रहीन होने के कारण रातभर जाड़े का कष्ट भोगा। उस समय न तो उसे नींद आयी और न आराम ही मिला। वह निष्प्राण सा हो रहा था । सूर्योदय होने पर भी उसको होश नहीं आया। ‘सफला एकादशी’ के दिन भी लुम्भक बेहोश पड़ा रहा । दोपहर होने पर उसे चेतना प्राप्त हुई । फिर इधर उधर दृष्टि डालकर वह आसन से उठा और लँगड़े की भाँति लड़खड़ाता हुआ वन के भीतर गया । वह भूख से दुर्बल और पीड़ित हो रहा था । राजन् ! लुम्भक बहुत से फल लेकर जब तक विश्राम स्थल पर लौटा, तब तक सूर्यदेव अस्त हो गये । तब उसने उस पीपल वृक्ष की जड़ में बहुत से फल निवेदन करते हुए कहा: ‘इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु संतुष्ट हों ।’ यों कहकर लुम्भक ने रातभर नींद नहीं ली । इस प्रकार अनायास ही उसने इस व्रत का पालन कर लिया । उस समय सहसा आकाशवाणी हुई: ‘राजकुमार ! तुम ‘सफला एकादशी’ के प्रसाद से राज्य और पुत्र प्राप्त करोगे ।’ ‘बहुत अच्छा’ कहकर उसने वह वरदान स्वीकार किया । इसके बाद उसका रुप दिव्य हो गया । तबसे उसकी उत्तम बुद्धि भगवान विष्णु के भजन में लग गयी । दिव्य आभूषणों से सुशोभित होकर उसने निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया और पंद्रह वर्षों तक वह उसका संचालन करता रहा। उसको मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। जब वह बड़ा हुआ, तब लुम्भक ने तुरंत ही राज्य की ममता छोड़कर उसे पुत्र को सौंप दिया और वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के समीप चला गया, जहाँ जाकर मनुष्य कभी शोक में नहीं पड़ता।
इस प्रकार जो ‘सफला एकादशी’ का उत्तम व्रत करता है, वह इस लोक में सुख भोगकर मरने के पश्चात् मोक्ष को प्राप्त होता है। संसार में वे मनुष्य धन्य हैं, जो ‘सफला एकादशी’ के व्रत में लगे रहते हैं, उन्हीं का जन्म सफल है। इसकी महिमा को पढ़ने, सुनने तथा उसके अनुसार आचरण करने से मनुष्य राजसूय यज्ञ का फल पाता है।
पढ़ते रहिए हिमशिखर खबर, आपका दिन शुभ हो…