आज का कर्म ही कल का भविष्य है, इस बात को यदि मनुष्य ने गांठ बांध ली तो उसका जीवन सफल सिद्ध हो सकता है, उसे न तो किसी बात की समस्या घेर सकती है और न ही संकट का सामना करना पड़ सकता है।
हिमशिखर खबर ब्यूरो
भगवान श्रीकृष्ण जो भी काम करते थे, वह पूरी योजना के साथ करते थे। श्रीकृष्ण ने जब अवतार लिया था, तो वह भी पूरी योजना के साथ लिया था।
श्रीकृष्ण के माता-पिता वसुदेव और देवकी ने कंस को वचन दिया था कि हम हमारी आठ संतानों को आपको सौंप देंगे। उन्होंने छह संतानें कंस को सौंप दी थीं और कंस ने सभी को मार दिया था।
सातवीं संतान का जन्म होने वाला था। उस समय श्रीकृष्ण ने योगमाया से कहा, ‘मेरी मां के सातवें गर्भ को गोकुल में वसुदेव जी की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में पहुंचा दो। कंस को मालूम होगा कि सातवीं संतान का गर्भपात हो गया है। इसके बाद आप यशोदा जी के गर्भ से जन्म लेना। आठवीं संतान के रूप में मैं देवकी जी के गर्भ से जन्म लूंगा। मेरे पिता वसुदेव जी मुझे यशोदा जी के यहां छोड़ेंगे और आपको यहां ले आएंगे। कंस आठवीं संतान के रूप में आपको समझ लेगा। आप योगमाया हैं, आप जानती हैं इसके बाद आपको क्या करना है।
जैसा मैंने बताया है, ठीक वैसा ही हो जाएगा तो मेरा भी जन्म भी वैसे ही होगा, जैसा हमने सोचा है। हमें कंस के अत्याचारों से लोगों को मुक्ति दिलाना है। इसके लिए हमें योजना बनाकर ही काम करना होगा।’
योगमाया ने ठीक वैसे ही किया, जैसा श्रीकृष्ण चाहते थे।
सीख
श्रीकृष्ण से सीख सकते हैं कि हम जो भी काम करें, उसमें दूरदृष्टि होनी चाहिए। हमारा आज का निर्णय भविष्य के लिए बहुत बड़ा परिणाम देने वाला होता है। हमें भूत, भविष्य और वर्तमान पर नजर रखनी चाहिए। अच्छी तरह सोच-समझकर हमें निर्णय लेना चाहिए।